'कुलदीप भी आ गया ऑनलाइन. कुलदीप ऑनलाइन है, ये सब ऑनलाइन हैं, ऐसे ही बैठे हुए हैं.'जवाब में युवराज ने कहा,
'ये %$# लोगों को कोई काम नहीं है. इसको और युज़ी को. युज़ी को देखा, क्या वीडियो डाला अपनी फैमिली के साथ'उस वक्त दोनों ही प्लेयर्स ने यह बात मज़ाक में की. लोगों ने भी इस पर कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं दी. बल्कि लोग रोहित से ज्यादा नाराज़ थे क्योंकि रोहित ने इसी वीडियो में युज़वेंद्र और उनके पिता के डांस पर कमेंट किया था. लेकिन अब युवराज सिंह के कमेंट पर लोग नाराज़गी जता रहे हैं. गुस्साए लोगों ने ट्विटर पर #युवराज_सिंह_माफी_मांगो ट्रेंड करा दिया. युवराज ने अभी तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
# क़ानून क्या कहता है?
युवराज ने कुलदीप और चहल के लिए जिस शब्द का इस्तेमाल किया वो एक दलित जाति का नाम है. देश के कई राज्यों में यह जाति महादलितों में शामिल है. इस शब्द का इस्तेमाल किसी का मज़ाक उड़ाने या उसे नीचा दिखाने के लिए करना कानूनन अपराध है. इसे लेकर हमने लखनऊ जिला न्यायालय की अधिवक्ता शशि पाठक और सुप्रीम कोर्ट ट्रेनी रश्मि सिंह से बात की. उन्होंने कहा,'इन कमेंट्स पर अगर SC/ST कमीशन में शिकायत की जाए तो कमीशन मुकदमा दर्ज करा सकता है. हालांकि, जिनके लिए इस शब्द का इस्तेमाल हुआ वो इस समुदाय से नहीं आते ऐसे में उन पर मानहानि के अलावा कोई केस नहीं हो सकता. अगर यह बात किसी SC/ST समुदाय के व्यक्ति को संबोधित कहकर कही जाती तो यह SC/ST एक्ट की धारा 3 (1) (X) के तहत दंडनीय अपराध है. इसमें छह महीने से लेकर पांच साल तक की सजा का प्रावधान है.'
# समाज के हाल
सामाजिक तौर पर इन शब्दों का प्रयोग सालों से होता आया है. कई लोग यह भी कहते हैं कि अगर राजपूत को राजपूत और ब्राह्मण को ब्राह्मण बुलाना अपमानजनक नहीं है तो किसी दलित को उसकी जाति से बुलाना अपमानजनक क्यों है? ऐसा कहने वालों को देखना चाहिए कि किसी सवर्ण को उसकी जाति से बुलाते वक्त उसमें आदर भाव दिखता है. जैसे ब्राह्मण को लोग पंडिज्जी बुलाते हैं. मेरी तरफ राजपूतों को बाऊ साहब कहा जाता है. इन शब्दों और दलित जातियों के लिए प्रयुक्त होने वाले शब्दों में मूलभूत अंतर ही यही है कि उन्हें अपमानित करने के लिए ही उनकी जाति से बुलाया जाता है. अगर ऐसा नहीं होता तो इन शब्दों को ग़ालियों की तरह ना यूज किया जाता. युवराज सिंह ने भले ही यह अनजाने में कहा हो, भले ही उन्हें उस शब्द का मतलब न पता हो, भले ही उनकी मंशा किसी को आहत करने की न रही हो. लेकिन ये एक जातिसूचक शब्द है और इसका इस्तेमाल नहीं किया जाना था.धोनी के रिटायर होने की बात करने वालों को साक्षी ने 'अच्छे से' झाड़ दिया