दरअसल हमने अपने सामने किसी लड़की या महिला को क्रिकेट के अलावा दूसरे स्पोर्ट्स में देखा नहीं. भैया लोग खूब दिखते थे, क्रिकेट से लेकर तैराकी तक में. लेकिन ग्रीनपार्क में एडमिशन लेकर खेलने वाली लड़कियों को हटा दें तो खेलकूद वाली लड़कियां हमारे लिए वैसी ही थीं जैसे इंक्रीमेंट. बस दूर से ही दिखने वाली.
ऐसे में हम मल्लेश्वरी का ज़िक्र आते ही खुश हो जाते थे. फिर दिन-महीने और साल बीते. पढ़ाई-लिखाई के बाद नौकरी शुरू कर दी. मल्लेश्वरी दिमाग के किसी कोने तक सीमित हो गईं. फिर एक रोज, इसी नौकरी के दौरान साल 2021 के जून में एक बार फिर से ज़िक्र आया मल्लेश्वरी का.
जून महीने की 22 तारीख को ख़बर आई कि मल्लेश्वरी को दिल्ली स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर नियुक्त किया गया है. यह नियुक्ति दिल्ली सरकार ने की. इस नियुक्ति के साथ दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने तमाम बातें, वादे, घोषणाएं कीं. लेकिन हमारा मन तो फिर से मल्लेश्वरी में अटक गया था. ऐसे में हमने सोचा कि क्यों ना एक बार फिर से खोजबीन की जाए. सिडनी 2000 के पहले और बाद में आखिर कैसा था मल्लेश्वरी का जीवन? इस खोजबीन में जो मिला, वो जस का तस आपके सामने रख रहे हैं.
सबसे बेसिक तो ये है कि कर्णम मल्लेश्वरी वेट लिफ्टिंग में ओलंपिक्स मेडल जीतने वाली भारत की पहली और अभी तक इकलौती महिला खिलाड़ी हैं. लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि साल 2000 के सिडनी ओलंपिक्स में ब्रॉन्ज़ मेडल जीतने से पहले ही मल्लेश्वरी स्टार बन चुकी थीं.
साल 1994 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड, साल 1995 में राजीव गांधी खेल रत्न और फिर 1999 में पद्म श्री पुरस्कार से नवाजा गया. हालांकि, बुलंदियों तक का सफर तय करना मल्लेश्वरी के लिए आसान नहीं था. # कुछ ऐसी थी शुरुआत कर्णम मल्लेश्वरी का जन्म आंध्र प्रदेश के आमदालावालसा कस्बे के वूसावानीपेटा गांव में 1 जून 1975 को हुआ. द हिंदू के मुताबिक मल्लेश्वरी की उनकी पहली कोच उनकी मां ही थीं. उन्होंने बचपन से ही मल्लेश्वरी और उनकी तीन और बहनों को वेट लिफ्टिंग की ट्रेनिंग दी. दरअसल, मल्लेश्वरी की मां श्यामला का मानना था कि वेटलिफ्टिंग से उनकी बेटियां स्ट्रॉन्ग बन जाएंगी.
मल्लेश्वरी के चाचा और उनके बेटे पहले से ही इसकी प्रैक्टिस करते थे तो घर में प्रेरणा की भी कमी नहीं थी. और इस प्रेरणा को प्रेरित किया था मल्लेश्वरी के पिता ने. जिनकी रेलवे में नौकरी ही स्पोर्ट्स की वजह से लगी थी. वे वॉलीबॉल और फुटबॉल दोनों खेलते थे.
बचपन में मल्लेश्वरी की मां एक बांस में दोनों तरफ वजन टांग देती थीं. जिसे मल्लेश्वरी और उनकी बहनें उठातीं. घरवालों का इतना सपोर्ट मिलने के बाद ही मल्लेश्वरी ने तय कर लिया था कि वो भारोत्तोलन यानी वेट लिफ्टिंग में ही अपना करियर बनाएंगी. मल्लेश्वरी की रुचि को देखते हुए उनके पैरेंट्स ने उन्हें अम्मी नायडू जिम में दाखिला दिला दिया. यह जिम श्रीकाकुलम में स्थित है.

दिल्ली स्पोर्ट्स यूनीवर्सिटी की वाइस चांसलर नियुक्त होने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (बीच में) और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया (बाईं तरफ) के साथ कर्णम मल्लेश्वरी (Karnam Malleswari). (फोटो: PTI)
इसके बाद तो मल्लेश्वरी तो जैसे वेट लिफ्टिंग में रम गईं. उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी. जिम में लंबा समय बिताने लगीं. घर पर भी अलग से प्रैक्टिस करतीं. इस समय उनकी उम्र 12 साल थी. हेवी ट्रेनिंग के कारण मल्लेश्वरी की न्यूट्रिशन डिमांड भी बढ़ती जा रही थी. ऐसे में उनकी मां खूब बचत करतीं और इस बचत के पैसे से मल्लेश्वरी को पौष्टिक खाना खिलातीं.
यही नहीं, जब मल्लेश्वरी दूसरी जगहों पर वेट लिफ्टिंग में हिस्सा लेने जाने लगीं, तो उनकी मां भी उनके साथ जातीं. उनके पास मिट्टी के तेल से चलने वाला स्टोव होता. श्यामला इन प्रतियोगिताओं के दौरान अपने हाथ का बना खाना ही मल्लेश्वरी को खिलातीं. थोड़े समय बाद मल्लेश्वरी और उनके पैरेंट्स की मेहनत रंग लाई. नीलम शेट्टी अपन्ना के रूप में मल्लेश्वरी को अपनी पहली प्रोफेशनल कोच मिली. धीरे-धीरे राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भी मल्लेश्वरी का नाम होने लगा. # आते-आते रह गया ओलंपिक्स गोल्ड 90 के दशक में मल्लेश्वरी के करियर को पंख लगे. साल 1991 में उन्होंने अंबाला में सीनियर नेशनल्स प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल जीता. यहां से सीधे वे अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए क्वॉलिफाई कर गईं. दो साल बाद यानी 1993 में मेलबर्न में वर्ल्ड चैंपियनशिप हुई. 54 किग्रा भार कैटेगरी में मल्लेश्वरी ने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया. इसके एक साल बाद मल्लेश्वरी विश्व चैंपियन बनीं. इस्तांबुल में हुई वर्ल्ड चैंपिनयशिप में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता. ऐसा करने वाली वे पहली भारतीय महिला थीं.
इसी साल यानी 1994 में हिरोशिमा में एशियन गेम्स आयोजित हुए. यहां मल्लेश्वरी ने सिल्वर मेडल जीता. साल 1995 में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में उन्होंने अपना खिलाब बरकरार रखा. एक बार फिर से गोल्ड मेडल जीता. हालांकि, अगले साल उनका प्रदर्शन उस स्तर का नहीं रहा और उन्हें ब्रॉन्ज से ही संतोष करना पड़ा. साल 2000 का ओलंपिक्स आते-आते मल्लेश्वरी के खाते में कुल 29 अंतरराष्ट्रीय मेडल थे. इनमें से 11 गोल्ड थे.

एक कार्यक्रम के दौरान Karnam Malleswari. (फोटो: आजतक)
और फिर इसी साल हुए सिडनी ओलंपिक्स में मल्लेश्वरी ने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम करके इतिहास रच दिया. हालांकि, मल्लेश्वरी का मानना है कि एक गलतफहमी की वजह से गोल्ड मेडल उनसे दूर रह गया. एक टीवी इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि गोल्ड मेडल जीतने के लिए उन्हें केवल 132.5 किलो वजन उठाना था. हालांकि, गलतफहमी की वजह से उन्हें लगा कि 137.5 किलो वजन उठाना है. ऐसे में उन्होंने पहले 130 किलो वजन उठाया और फिर 137.5 किलो उठाने के प्रयास में वे विफल हो गईं.
इस ब्रॉन्ज़ के बाद मल्लेश्वरी का करियर पहले रुका और फिर खत्म हो गया. दरअसल साल 2000 के ओलंपिक्स के बाद साल 2001 में उनके बेटे का जन्म हुआ और फिर 2002 में उनके पिता की मौत हो गई. इसके चलते उन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा नहीं लिया और फिर 2004 के एथेंस ओलंपिक्स में भी वह नहीं खेल पाईं. और इसी के बाद उन्होंने रिटायर होने का फैसला कर लिया.