1961 के इस दौर का 2019 से एक कनेक्शन तो जोड़ा जा ही सकता है. जब विजय मांजरेकर 1961/62 में भारतीय टीम को जितवा रहे थे, तो उन्हें भी नहीं पता था कि इसी साल पैदा हुआ एक बच्चा क्रिकेट में अपना नाम बिना बल्ला थामे ही बना लेगा. लेकिन आज की तारीख में क्रिकेट के सभी जानकारों को पता है कि क्रिकेट जगत में हर्षा भोगले का क्या रुतबा है. हालांकि हर्षा की हस्ती को उन्हीं विजय मांज़रेकर के बेटे संजय मांज़रेकर गंभीरता से नहीं ले रहे.
संजय मांजरेकर एक बार नहीं बल्कि बार-बार कसम खाकर ऐसी गलतियां करते हैं. साल 2006 में सचिन तेंडुलकर का चोटिल होना हो, 2018 में फीफा विश्वकप को बोरिंग कहना हो, 2019 में रविन्द्र जडेजा को 'बिट्स एंड पीसिज़ क्रिकेटर' कहना हो या फिर विश्वकप 2019 में महेन्द्र सिंह धोनी के प्रदर्शन पर सवाल उठाना हो. संजय मांज़रेकर की बदतमीजी और बड़बोलेपन के ऐसे कितने ही किस्से हैं. जिसमें उन्हें क्रिकेटर्स तो क्रिकेटर्स, सोशल मीडिया फैंस से भी खरी खोटी सुननी पड़ी है.
इस लिस्ट में जो नया विवाद जुड़ा है वो है मांज़रेकर और हर्षा भोगले विवाद. दरअसल भारत और बांग्लादेश के बीच खेले गए पहले पिंक बॉल टेस्ट में संजय मांज़रेकर और हर्षा भोगले एक साथ कॉमेंट्री कर रहे थे. तभी हर्षा ने एक सवाल किया कि
'जब इस मैच का पोस्टमार्टम किया जाएगा तो गेंद की विज़ीबिलिटी एक चीज होगी, जिसके बारे में ध्यान देना होगा.'इस पर मांज़रेकर ने कहा,
'मुझे ऐसा नहीं लगता. गेंद का दिखना कोई मसला नहीं है.'इसके बाद हर्षा ने कहा,
'खिलाड़ियों से पूछना होगा कि वे क्या सोचते हैं.'लेकिन अकसर बड़बोलेपन के लिए मशहूर मांज़रेकर साहब ने भोगले के इस सवाल पर अपनी बद्तमीज़ी का काउंटर अटैक कर दिया. मांज़रेकर ने अपने क्रिकेट खेलने के अनुभव को गिनवाया और कहा,
'आपको पूछना होगा, हमें नहीं. हर्षा केवल आपको ही जानने की जरूरत है, जिसने क्रिकेट खेला है उसे नहीं.'इसके जवाब में हर्षा ने कहा,
'क्रिकेट खेलने के आधार पर सवाल पूछने की वजह कुछ सीखने से नहीं रोक सकते. ऐसा होता तो टी-20 क्रिकेट हो ही नहीं पाता.'जवाब में मांजरेकर ने कहा,
'बात मानता हूं लेकिन सहमत नहीं हूं.'यानी कि इस पूरी बातचीत में अपनी गलती को मानते हुए भी मांज़रेकर गलती मानने को तैयार नहीं हुए. इसके बाद सोशल मीडिया पर एक बार फिर से मांज़रेकर की जमकर आलोचना हो रही है.
इस बात को ऑस्ट्रेलिया के मशहूर कॉमेंटेटर मार्क निकल्स के उदाहरण से भी समझा जा सकता है, जिन्होंने बेहद कम फर्स्ट-क्लास मैच खेले हैं और कोई भी अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेला. लेकिन वो क्रिकेट के एक सफल कॉमेंटेटर हैं. जिन्होंने रिची बेनो के साथ भी कॉमेंट्री की है. उनको लेकर कभी भी इस तरह के सवाल बाहर के किसी कॉमेंटेटर या मीडिया ने नहीं उठाए. लेकिन ऐसा उदाहरण अब भारत में देखने को मिल गया है.
बिना बल्ला उठाए भी मांज़रेकर से बेहतर कॉमेंटेटर हैं हर्षा: अगर क्रिकेट के मैदान पर उतरकर खेलने की ही बात है तो मांज़रेकर ने अपने 9 साल के अंतराष्ट्रीय करियर में 111 मैच खेले हैं, जिसमें उन्होंने कुल 4037 रन बनाए हैं. जबकि दूसरी तरफ हर्षा भोगले हैं. हर्षा ने क्रिकेट के प्रति अपनी दीवानगी की वजह से IIM Ahmedabad से पढ़ाई करने के बावजूद क्रिकेट को चुना.

ऑस्ट्रेलियाई पूर्व कप्तान एलन बॉर्डर के साथ हर्षा भोगले. फोटो: Harsha Bhogle Facebook
हर्षा ने साल 1980 में 19 साल की उम्र में ऑल इंडिया रेडियो के लिए कॉमेंट्री शुरु की थी. इस उम्र में संजय भारतीय क्रिकेट में दूर-दूर तक नहीं दिखते थे. जबकि साल 1991-92 में उन्हें पहली बार ऑस्ट्रेलिया ब्रॉडकास्ट कॉर्पोरेशन ने अपने यहां कॉमेंट्री के लिए बुलाया. उनसे पहले उन्होंने किसी भी भारतीय कॉमेंटेटर को ये मौका नहीं दिया था.
हर्षा का क्रिकेट से क्या नाता है इसके लिए ये आंकड़ें साफ-साफ गवाही देते हैं. उन्होंने अपने करियर में अब तक 400 से अधिक वनडे अंतरराष्ट्रीय मैचों में कॉमेंट्री की है. जबकि वो 100 से ज्यादा टेस्ट भी कवर कर चुके हैं. इतना ही नहीं 1996 से लेकर 2019 तक उन्होंने ज्यादातक विश्वकप कवर किए हैं. पांच टी20 विश्वकप में भी हर्षा बतौर कॉमेंटेटर शामिल रहे हैं. वहीं टी20 में भी वो लगातार बने हुए हैं. उन्होंने आईपीएल के भी छह सीज़न्स को कवर किया है. जबकि पांच चैम्पियन्स लीग भी उनके नाम के साथ जुड़ी हैं.
हर्षा का फैन बेस क्या है इसे जानने के लिए हम ये आंकड़ा भी देख सकते हैं कि उनके ट्विटर पर कुल 8.3 लाख से अधिक फॉलोअर्स हैं. जबकि कई ऐसे अन्य स्पोर्ट्स मीडिया पर्सन उनके आस-पास भी नज़र नहीं आते.
बड़े-बड़े क्रिकेटर्स और अखबारों ने भी हर्षा के योगदान की तारीफ की है:
प्रमुख अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स ने तो यहां तक कहा था कि
# ''वॉर्न और भोगले दोनों अपने-अपने क्षेत्र में बिल्कुल एक जैसे हैं. इन दोनों ने ही एक जटिल और मुश्किल कला को आसान बना दिया, जिसे कइयों ने कॉपी किया, लेकिन कोई भी उतना कामयाब नहीं हो सका.''

कॉमेंटेटर हर्षा भोगले और दिग्गज शेन वॉर्न. फोटो: Harsha Bhogle Facebook
हिन्दुस्तान टाइम्स का ये कोट आज के समय में संजय मांज़रेकर पर भी सटीक बैठता है.
# ऑस्ट्रेलिया के लिजेंड एडम गिलक्रिस्ट ने तो भोगले को भारत का रिची बेनो बताया था, साथ ही कहा था कि वो भारत से क्रिकेट के गुरु हैं. रिची बेनो को क्रिकेट कॉमेंट्री के क्षेत्र में आदर के साथ देखा जाता है.लिजेंड सचिन ने तो भोगले की और भी बढ़कर तारीफ की है. सचिन ने एक बार कहा था कि
''मुझे एहसास हुआ कि उनसे कई बार बात करते हुए आपको किसी चीज़ के बारे में एक नया ही नज़रिया मिलता है.''

कॉमेंटेटर हर्षा भोगले के साथ सचिन तेंडुलकर. फोटो: Harsha Bhogle Facebook
जबकि क्रिकेट की बड़ी वेबसाइट क्रिकइंफो ने लिखा था कि
''जब उन्होंने भारतीय टेलीविजन पर अपने पैर जमा लिए तो वो भारत के ऐसे पहले सुपरस्टार बन गए जो खिलाड़ी नहीं थे.''संजय मांज़रेकर कॉमेंट्री कर रहे हैं. लेकिन वो कॉमेंटेटर फर्स्ट नहीं हैं, जबकि हर्षा भोगले क्रिकेटर नहीं कॉमेंटेटर हैं. मांज़रेकर को भारत के लिए क्रिकेट खेलने की वजह से कॉमेंट्री के लिए पिच तैयार मिली. जबकि हर्षा भोगले ने बिना किसी बैकग्राउंड के क्रिकेट कॉमेंट्री में अपनी जगह बनाई है. ये उनका क्रेडिट है कि वो आज भी क्रिकेट जगत का एक क्रेडिबल नाम है. हर्षा भोगले आज देश के सबसे सफल क्रिकेट कॉमेंटेटर माने जाते हैं.
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