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'मैं रथ का टूटा हुआ पहिया हूं लेकिन मुझे फेंको मत'

पढ़िए धर्मवीर भारती की कविता- टूटा पहिया.

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फोटो - thelallantop

एक कविता रोज़ में आज धर्मवीर भारती की ये कविता

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टूटा पहिया

मैं रथ का टूटा हुआ पहिया हूं लेकिन मुझे फेंको मत! क्या जाने कब इस दुरूह चक्रव्यूह में अक्षौहिणी सेनाओं को चुनौती देता हुआ कोई दुस्साहसी अभिमन्यु आकर घिर जाए! अपने पक्ष को असत्य जानते हुए भी बड़े-बड़े महारथी अकेली निहत्थी आवाज़ को अपने ब्रह्मास्त्रों से कुचल देना चाहें तब मैं रथ का टूटा हुआ पहिया उसके हाथों में ब्रह्मास्त्रों से लोहा ले सकता हूं! मैं रथ का टूटा पहिया हूं लेकिन मुझे फेंको मत इतिहासों की सामूहिक गति सहसा झूठी पड़ जाने पर क्या जाने सच्चाई टूटे हुए पहियों का आश्रय ले !
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‘ठोकर दे कह युग – चलता चल, युग के सर चढ़ तू चलता चल’

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