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एक कविता रोज़: जो दिल का हाल है, वही दिल्ली का हाल है

अल्फाज और अंदाज के लिए मशहूर शायर मलिकजादा मंजूर अहमद नहीं रहे, आज उन्हीं की गजल पढ़िए.

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फोटो - thelallantop
शायर मलिकजादा मंजूर अहमद नहीं रहे चेहरे पे सारे शहर के गर्द-ए-मलाल है. कल लखनऊ में उनका इंतकाल हो गया. 90 साल के थे. मुनव्वर राणा उनके बारे में लिखते हैं.
उनकी हैसियत का अंदाज़ा इस बात से लगाया का सकता है कि वो यूनिवर्सिटी में एम.ए. के जिन बच्चों को पढ़ाते थे, इनके कोर्स में वो ख़ुद शामिल थे!
आज उन्हीं का लिखा पढ़िए.

चेहरे पे सारे शहर के गर्द-ए-मलाल है जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है

उलझन घुटन हिरास तपिश कर्ब इंतिशार वो भीड़ है के सांस लेना भी मुहाल है

आवारगी का हक़ है हवाओं को शहर में घर से चराग ले के निकलना मुहाल है

बे-चेहरगी की भीड़ में गुम है हर इक वजूद आईना पूछता है कहां ख़द्द-ओ-ख़ाल है

जिन में ये वस्फ़ हो कि छुपा लें हर एक दाग़ उन आइनों की आज बड़ी देख-भाल है

परछाइयां कदों से भी आगे निकल गईं सूरज के डूब जाने का अब एहतिमाल है

कश्कोल-ए-चश्म ले के फिरो तुम न दर-ब-दर 'मंजूर' कहत-ए-जिंस-ए-वफ़ा का ये साल है