खंडहर
स्नेह सिक्त गांव अब अतीत हो रहे
स्नेह सिक्त गांव अब अतीत हो रहे
शहर खंडहर से अब प्रतीत हो रहे
ज्योत्स्ना में ज्योति मगर शांति नहीं
अरुणिमा में लाली मगर कांति नहीं
भाव शून्य शब्द सारे गीत हो रहे
शहर खंडहर से अब प्रतीत हो रहे
पवित्रता मलीन और मित्रता उदास
यंत्रणा की भूमि पर अंकुरा संत्रास
शत्रु के पर्याय आज मीत हो रहे
शहर खंडहर से अब प्रतीत हो रहे
धवल आवरण के तले भ्रष्ट आचरण
अन्य महासिंधु में सतत संतरण
न्यायमूर्ति धर्मपाल क्रीत हो रहे
शहर खंडहर से अब प्रतीत हो रहे
क्या होता जाता दुनिया को और कहां को जाते हम
देह छिलते चौराहों पर खुद को तन्हा पाते हम
सच्चाई की राह भी अब
मंजिल को जाती न लगती
महाधुंध की ओर सरकती
पल-पल ही लगती धरती
छंद हीन लय हीन सुरों से कैसे कोई पाये सम
क्या होता जाता दुनिया को और कहां को जाते हम
एक पल में कोई तोला है
अगले पल लगता माशा
अपनी-अपनी सुविधा के हित
गढ़ते मिलते परिभाषा
झूठे वादों की बस्ती में खाते फिरते लोग कसम
क्या होता जाता दुनिया को और कहां को जाते हम
मानवता दीवार टंगी सी ध्वंस राग बस गाते हम
क्या होता जाता दुनिया को और कहां को जाते हम