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एक कविता रोज: विद्रोही की एक कविता

रमाशंकर यादव विद्रोही की आज बरसी है.

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फोटो - thelallantop
विद्रोही (पूरा नाम रमाशंकर यादव 'विद्रोही') को गुजरे आज एक साल हो गया. यह वाक्य एक झूठ की तरह भी पढ़ा जा सकता है क्योंकि विद्रोही जैसे व्यक्तित्व गुजर नहीं सकते. मुक्तिबोध पर लिखते हुए श्रीनरेश मेहता ने अपने एक संस्मरण में फरमाया कि पुण्यात्मा का यश उसकी पीठ पर लिखा होता है और वह इसलिए उसे देख नहीं पाता. यह यश उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है. यश आयु से विशाल होता है. इस बयान में पुण्यात्मा की जगह विद्रोही पढ़ा जा सकता है. विद्रोही अपनी कविताओं में बराबर जिंदा हैं और याद किए जा रहे हैं. आज एक कविता रोज़ में पढ़िए विद्रोही की एक कविता. -अविनाश मिश्र
मरने को चे ग्वेरा भी मर गए और चंद्रशेखर भी लेकिन वास्तव में कोई नहीं मरा है सब जिंदा हैं जब मैं जिंदा हूँ इस अकाल में मुझे क्या कम मारा गया है इस कलिकाल में अनेकों बार मुझे मारा गया है अनेकों बार घोषित किया गया है राष्ट्रीय अखबारों में पत्रिकाओं में कथाओं में, कहानियों में कि विद्रोही मर गया. तो क्या मैं सचमुच मर गया! नहीं मैं जिंदा हूँ और गा रहा हूं.

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