लेकिन वक्त को कुछ और मंज़ूर था. वक्त ने, वक्त से पहले ही इस लिजेंड को अपने पास बुला लिया. क्रिकेट विश्वकप 2007 में पाकिस्तान टीम की विदाई के साथ ही वूल्मर की भी विदाई हो गई. जमैका के टीम होटल में वूल्मर की लाश मिली. लेकिन उनकी मौत कैसे, हुई ये राज़ उनकी मौत के 13 साल बाद भी राज़ ही है.
बॉब वूल्मर की शुरुआत
चलिए शुरू से शुरू करते हैं. साउथ अफ्रीका में पले-बढ़े और इंग्लैंड के लिए खेले वूल्मर का नाता हिन्दुस्तान से भी है. जब हिन्दुस्तान आज़ाद हुआ, तो वूल्मर अपनी मां के पेट में थे. 14 मई, 1948 को उनका जन्म कानपुर के ग्रीन पार्क क्रिकेट स्टेडियम के पास एक अस्पताल में हुआ. वूल्मर के पिता उस वक्त यूनाइटेड प्रोविंस के लिए रणजी ट्रॉफी खेलते थे.

बॉब वूल्मर की डेब्यू की तस्वीर. फोटो: Twitter
इसके बाद जल्द ही वूल्मर परिवार के साथ इंग्लैंड शिफ्ट हुए. वहां वो केन्ट स्कूल में गए. क्रिकेट के प्रति प्यार ने उन्हें स्कूल टीम तक पहुंचा दिया. साल 1968 में 20 साल की उम्र में उन्होंने केन्ट टीम के लिए डेब्यू कर लिया. इसके बाद 1975 में वो इंग्लैंड की नेशनल टीम तक पहुंच गए. उन्होंने लॉर्ड्स के मैदान पर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ डेब्यू किया. उन्होंने टीम के लिए शानदार प्रदर्शन भी किया. 1972 से 1976 तक वो वनडे टीम के सदस्य रहे. लेकिन केरी पैकर द्वारा चलाई गई वर्ल्ड सीरीज़ ब्रेक-अप ग्रुप में शामिल होने के बाद लगभग वूल्मर के लिए रास्ते बंद हो गए. वो 1981 तक टीम में अंदर-बाहर होते रहे. लेकिन 1982 के दक्षिण अफ्रीकी विद्रोही दौरों में हिस्सा लेने के बाद उनके लिए सब खत्म हो गया.
क्रिकेट खेलने से विदाई के बाद भी वूल्मर क्रिकेट से विदा नहीं हो सके. उन्होंने अब खिलाड़ियों को तैयार करने का मन बना लिया. क्रिकेट के कल को पहचानने वाले वूल्मर ने तकनीक के सहारे टीमों और खिलाड़ियों को तैयार करना शुरू किया.
वॉरिकशर के साथ वूल्मर ने अपने कोचिंग करियर की शुरुआत की. वूल्मर की शुरुआत भी शानदार रही. उन्होंने 1990 के दशक में टीम को कई ट्रॉफी जितवाईं. डॉमेस्टिक की चार में से तीन बड़ी ट्रॉफी वॉरिकशर के पास थी, जिसकी वजह से क्रिकेट साउथ अफ्रीका ने उन्हें कोचिंग का ऑफर दे दिया. यहां पर इंग्लैंड को भी एक कोच की तलाश थी. लेकिन इंग्लैंड ने वो मौका गंवाया, जिसके लिए उसे बाद में अफसोस भी रहा.
क्रिकेट कोचिंग में तकनीक की शुरुआत
एक वक्त था, जब बॉब वूल्मर की कम्प्यूर और तकनीक वाली सोच को उनके साथी खिलाड़ी, टीम मेंबर और क्रिकेट विशेषज्ञ बेवकूफी मानते थे. लेकिन वूल्मर क्रिकेट के पहले ऐसे कोच रहे, जिनकी कोचिंग में ही क्रिकेट जगत में कम्प्यूटर का इस्तेमाल हुआ. वूल्मर मैच या प्रैक्टिस के बाद खिलाड़ियों को उनकी गलतियां दिखाते थे.
साउथ अफ्रीका का 1994 से वो वक्त शुरू हुआ, जिसने वर्ल्ड क्रिकेट को हिला दिया. वो टीम, जिसने बैन के बाद 1992 में क्रिकेट में वापसी की, वो देखते ही देखते दुनिया की बड़ी-बड़ी टीमों के लिए खतरा बन गई. 1995 से 2000 के बीच साउथ अफ्रीका की टीम इतनी कंसिस्टेंट थी कि उन्हें हरा पाना आसान नहीं था. वूल्मर की कोचिंग में हैन्सी क्रोनिए, शॉन पोलॉक, जोन्टी रोड्स, जैक कैलिस जैसे खिलाड़ियों ने टीम को वनडे की बेहतरीन टीम बना दिया.

बॉब वूल्मर. फोटो: Twitter
भले 1992 में साउथ अफ्रीका मौका गंवा चुकी थी. लेकिन 1996 और 1999 में वूल्मर के अंडर गई टीम को फेवरेट माना गया. साउथ अफ्रीका की इस कामयाबी के पीछे बॉब की दूर की सोच और तकनीक का अहम रोल था. जब 1996 विश्वकप में तकनीक की मदद से साउथ अफ्रीका ने ग्रेम हीक को शिकार बनाया, तो धीरे-धीरे लोगों ने भी अब बॉब को सराहना शुरू किया. वूल्मर ने उस वक्त रणनीति बनाई थी और बताया था-
''अगर हीक को एक स्पेल में बिना रन बनाए रोक लिया जाए, तो ऑफ स्टम्प की बॉल को मिड विकेट की दिशा में खेलने की कोशिश करेगा. फिर गेंदबाज़ फैनी डीविलियर्स ने जाल बिछाया और ब्रायन मैकमिलन ने कैच पकड़कर उन्हें चलता कर दिया.''वूल्मर मैच से पहले विरोधी टीम और खिलाड़ियों का खेल कम्प्यूटर पर देखकर कमज़ोरी पकड़ते थे. उसके बाद अपने खिलाड़ियों का भी ऐनालिसिस करते थे. उन्होंने खेल में ये तक डिसाइड किया कि किस खिलाड़ी को कहां खड़ा करना है और किस खिलाड़ी की तकनीक में सुधार की ज़रूरत है. कुछ लोग इसे खेल के नियमों के खिलाफ बताते हैं, लेकिन क्रिकेट के मैदान पर ऐसा भी पहली बार हुआ कि किसी ईयरपीस के जरिए कोई कोच, कप्तान से बात कर रहा है.
1999 विश्वकप के दौरान ये घटना क्रोनिए और वूल्मर के बीच हुई. वूल्मर ड्रेसिंग रूम से ही क्रोनिए को निर्देश देते दिखे थे. वूल्मर मैदान के बाहर ऐसी रणनीति बनाते थे, जिसका सीधा फायदा क्रोनिए को मैच में होता था.

1999 विश्वकप सेमीफाइनल
वूल्मर की कोचिंग में दक्षिण अफ्रीका का प्रभाव ऐसा था कि पहली छह सीरीज़ में साउथ अफ्रीका ने वाइटवॉश किया. लेकिन 1999 विश्वकप सेमीफाइनल में साउथ अफ्रीका और वूल्मर का सफर खत्म हो गया. उस वक्त तक साउथ अफ्रीका की टीम ने 117 वनडे मैचों में 83 मुकाबले अपने नाम किए थे, जिसकी जीत का प्रतिशत 72.80 का था.
वूल्मर कोचिंग के क्षेत्र में बहुत ज़्यादा क्रिएटिव और एडवेंचरस थे. लेकिन अपने खिलाड़ियों को तैयार करने का उनका तरीका बहुत सिम्पल था. वो खेल को एंजॉय करवाते थे, जिससे खिलाड़ी बेहतर होते थे.
2001 में आईसीसी प्रोग्राम डायरेक्टर की ज़िम्मेदारी
अब तक वूल्मर केन्ट, साउथ अफ्रीका के साथ ऐसी टीम को सिखा रहे थे, जो बड़े लेवल के क्रिकेट के लिए तैयार थीं. लेकिन अब वूल्मर पर एक बड़ी जिम्मेदारी आई. ये ज़िम्मेदारी थी क्रिकेट को दुनिया के नक्शे में देश-देश तक पहुंचाने की. आईसीसी चाहती थी कि क्रिकेट का प्रसार भारत, पाकिस्तान, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, वेस्टइंडीज़ से भी आगे हो.
2001 में आईसीसी ने उन्हें केन्या, नामीबिया, नैदरलैंड्स और कनाडा जैसे देशों की ज़िम्मेदारी सौंपी. आईसीसी चाहती थी कि इन देशों में क्रिकेट बेहतर हो, जिससे की क्रिकेट स्टैंडर्ड उठाया जा सके. वूल्मर ने इस ज़िम्मेदारी को भी शानदार तरीके से उठाया. उन्होंने 18 महीने बाद होने वाले विश्वकप के लिए इन टीमों को तैयार करना शुरू कर दिया.

केन्याई क्रिकेटर पीटर ओन्गोन्डो. फोटो: Peter Twitter
वूल्मर ने इन टीमों को तैयार करने के लिए सबसे पहले उनका मनोबल बढ़ाया. केन्याई टीम के तेज़ गेंदबाज़ पीटर ओन्गोंडो ने एक इंटरव्यू में वूल्मर की एक बात का ज़िक्र करते हुए कहा था कि वो हमेशा कहते थे-
''एक अच्छी गेंद, अच्छी ही रहती है. फिर चाहे उसे वकार यूनुस फेंके या पीटर ओन्गोंडो.''लेकिन वूल्मर इस बात को भी अच्छे से पहचानते थे कि सिर्फ इन टीमों का मनोबल बढ़ाने से काम नहीं बनेगा. वो ये जानते थे कि अगर इन टीमों को इंटरनेशनल लेवल पर स्थापित करना है, तो इनका विश्वकप या आईसीसी टूर्नामेंट में परफॉर्म करना बहुत ज़रूरी है.
इन टीमों को 18 महीने की कोचिंग के बाद जब 2003 विश्वकप आया, तो खासकर केन्या और नीदरलैंड्स ने शानदार प्रदर्शन किया. केन्या ग्रुप बी में चार जीत के साथ नंबर दो पर रही और सेमीफाइनल तक पहुंची. जबकि नीदरलैंड्स की टीम ने मैच तो एक जीता, लेकिन कई बार उसके खिलाड़ियों ने लड़ने का ज़ज़्बा दिखाया.
इस कोचिंग का असर 2003 से ज़्यादा 2007 विश्वकप में दिखा, जब एसोसिएट नेशन ने बॉब वूल्मर की टीम पाकिस्तान को ग्रुप स्टेज में हराकर बाहर कर दिया, जबकि भारत भी एक कमज़ोर टीम यानी बांग्लादेश से हारकर बाहर हो गया.
पाकिस्तान में हमलों के बीच वूल्मर बने कोच
साउथ अफ्रीका के बाद बॉब वूल्मर को पाकिस्तान क्रिकेट टीम की मुश्किल जिम्मेदारी मिली. पाकिस्तान क्रिकेट के लिए ये वक्त बहुत ही ज़्यादा अशांति वाला था. उस वक्त पाकिस्तान क्रिकेट के सीनियर खिलाड़ियों और बोर्ड में खींचतान चल रही थी. पाकिस्तानी कप्तान इंज़माम के बाद टीम का अगला कप्तान कौन होगा, ये सवाल आ चुका था. दूसरी तरफ पाकिस्तान में अटैक भी काफी हो रहे थे. इस वजह से वो अपने देश में बहुत ज्यादा डोमेस्टिक क्रिकेट भी खेल पा रहे थे. लेकिन ऐसे मुश्किल वक्त में भी बॉब ने पाकिस्तान का कोच बनने की जिम्मेदारी कुबूल की.
वूल्मर को 2004 से लेकर 2007 विश्वकप तक के लिए टीम का कोच बनाया गया.

पाकिस्तानी तेज़ गेंदबाज़ और बॉब के शुरुआती रिश्ते अच्छे नहीं रहे. फोटो: Shoaib Twitter
लेकिन 2006 तक उनकी टीम के खिलाड़ियों से छींटाकशी की खबरें आईं. वूल्मर का शोएब अख़्तर से भी विवाद हुई. भारत में खेली चैम्पियन्स ट्रॉफी के दौरान ऐसी खबरें आईं कि जयपुर में टीम बस से लौटते वक्त शोएब ने वूल्मर को थप्पड़ मारा था. लेकिन बाद में दोनों ने ही इस खबर को नकार दिया.
वहीं इंग्लैंड में 2006 के बॉल टेम्पिरिंग कांड का ठीकरा भी बॉब के सिर ही फोड़ा गया. लेकिन वूल्मर के साथ सबसे बुरा होना अभी बाकी था. विश्वकप 2007 में चोट की वजह से शोएब अख्तर और मोहम्मद आसिफ टीम से बाहर हो गए. इसके बाद पाकिस्तान की टीम अपने पहले दोनों ग्रुप मैच हार गई. इसमें भी एक मैच तो आयरलैंड ने पाकिस्तान को हराया था.
आयरलैंड से मिली इस इस हार से पहले वूल्मर ने कहा था-
''आयरलैंड एसोसिएट्स देशों में सबसे बेहतरीन है. आईसीसी चाहती है कि एसोसिएट देश बड़ी टीमों को परेशान करें. उम्मीद करते हैं, वो हम नहीं होंगे.''इस हार के साथ पाकिस्तान की टीम बाहर हो गई. और उससे भी बुरा हुआ 18 मार्च की सुबह, जब होटल के कमरे में वूल्मर की मौत की खबर मिली. उस मौत की अनसुलझी गुत्थी आज भी मिस्ट्री बनी हुई है.
वूल्मर को क्रिकेट का एक महान सेवक माना जा सकता है, जिसने सिर्फ गेंद और बल्ला पकड़कर ही नहीं, बल्कि खिलाड़ियों को खेल सिखाकर भी क्रिकेट को नई ऊंचाइयां दीं.
शोएब अख़्तर ने बताया वीरेंद्र सहवाग के 'बाप-बाप होता है' वाले किस्से का सच