वैभव 35 साल के हैं. पटना के रहने वाले हैं. लगभग डेढ़ साल पहले उनके पैरों में दर्द शुरू हुआ था. उस समय उन्होंने इतना ध्यान नहीं दिया. पर कुछ समय के साथ उनके पैरों पर नीले रंग के निशान पड़ने लगे. ऐसा लगता था जैसे स्किन के नीचे खून जमा हो रहा है. पैर सूजने लगा. वैभव को लगा उनको कोई स्किन की बीमारी हुई है. उन्होंने डॉक्टर को दिखाया. उनके टेस्ट हुए तो पता चला उनके पैर में गैंगरीन हो गया है. पैर की नसों में खून के थक्के बन गए हैं जिनके कारण उनके पैरों को पर्याप्त खून नहीं मिल रहा था. वैभव बहुत लकी थे कि समय रहते लक्षण साफ़ पता चल गए. बीमारी का पता लगाया जा सका. अगर और देर हो जाती तो उनका पैर काटने की नौबत आ जाती.
शरीर की नसों में खून के थक्के बनने को मेडिकल भाषा में थ्रोम्बोसिस कहा जाता है. ये थक्के शरीर की किसी भी नस में बन सकते हैं. दिल, ब्रेन, आंतें वगैरह. जब कोविड की वैक्सीन लगना शुरू हुई थी तब कई ऐसी रिपोर्ट्स आई थीं कि वैक्सीन लगने के बाद नसों में खून के थक्के बन रहे हैं. यानी क्लॉटिंग हो रही है. इस वजह से कई लोगों ने डर के मारे वैक्सीन नहीं लगवाई थी. हालांकि एक्सपर्ट्स ने ये साफ़ कह दिया था कि ऐसा न के बराबर होता है. इसलिए डरने की ज़रूरत नहीं है.
थ्रोम्बोसिस होना यानी खून के थक्के बनना ख़तरनाक होता है. जानलेवा भी. ऐसा क्यों होता है, इसके पीछे कई कारण हैं. वैभव चाहते हैं हम अपने शो पर थ्रोम्बोसिस के बारे में बात करें. इसके लक्षण लोगों को बताएं ताकि समय रहते ये पकड़ में आ सके. तो सबसे पहले एक्सपर्ट्स से जानते हैं थ्रोम्बोसिस क्या होता है. थ्रोम्बोसिस क्या होता है? ये हमें बताया डॉक्टर गौरव गुप्ता ने.

-शरीर के हर अंग में ब्लड सप्लाई होता है.
-क्योंकि शरीर के हर अंग को ऑक्सीजन और पोषण चाहिए होता है.
-ये ऑक्सीजन और पोषण अंगों को खून की नसों द्वारा मिलता है.
-अगर खून की नसों में रुकावट आ जाए तो उस अंग को नुकसान पहुंचेगा.
-ये रुकावट थ्रोम्बोसिस से आती है.
-थ्रोम्बोसिस का मतलब हुआ खून के थक्के बनना.
-खून एक तरल पदार्थ है, पर अगर उसके अंदर थक्के बन जाएं तो वो नुकसान करते हैं.
-उस अंग को नुकसान पहुंचता है, जिसके ब्लड सप्लाई में रुकावट आ गई हो. हेल्थ रिस्क -ये निर्भर करता है कि खून के थक्के कहां बने हैं.
-अगर ये दिल में बनते हैं तो उससे हार्ट अटैक पड़ता है.
-अगर ये ब्रेन में बनते हैं तो उससे स्ट्रोक पड़ता है.

-अगर खून के थक्के पैर में बनते हैं तो उसे गैंगरीन हो जाता है.
-अगर खून के थक्के पेट में हों तो अंतड़ियों की गैंगरीन हो सकती है. लक्षण -अगर खून के थक्के दिल में बन गए हैं तो पेशेंट को सीने में दर्द होगा.
-हार्ट अटैक पड़ेगा, अगर हार्ट अटैक ज़्यादा सीरियस है यानी खून के थक्के बहुत बड़े हैं तो जान भी जा सकती है.
-अगर खून के थक्के ब्रेन में हो जाएं तो उसे स्ट्रोक कहते हैं.
-इसमें पेशेंट को लकवा मार जाता है.
-अगर आंतों में थक्के बन गए हैं तो पेशेंट को पेट में बहुत दर्द होता है.
-पेट फूलने लगेगा.
-अगर पैर में खून के थक्के बन जाएं तो पैर में दर्द होगा.
-पैर ठंडा पड़ जाएगा.
-पैर में नीलापन आ जाएगा.
-यही चीज़ ज़्यादा होने लगती है तो उसे कहते हैं गैंगरीन.

-जब गैंगरीन हो जाता है तो पैर को काटना तक पड़ता है.
-थ्रोम्बोसिस हमेशा अचानक और भयंकर रूप में नहीं होता.
-कई बार ये धीरे-धीरे भी होता है.
-यानी खून के थक्के बनने के दो तरीके हैं.
-अक्यूट यानी अचानक खून के थक्के बन गए.
-दूसरा है क्रोनिक यानी धीरे-धीरे खून के थक्के बनते हैं.
-अभी जिनकी बात हुई, वो थे अचानक होने वाले लक्षण.
-ये लक्षण जानलेवा होते हैं.
-धीरे-धीरे खून के थक्के बनने पर लक्षण अचानक नहीं होते, पर समय के साथ पता चलते हैं.
-जैसे दिल के मरीज़ को चलने-फिरने में दर्द होता है.
-सांस फूलती है.
-एकदम से हार्ट अटैक नहीं पड़ेगा.
-ब्रेन में धीरे-धीरे खून के थक्के जमने पर चक्कर आ सकते हैं.
-बेहोशी हो सकती है.
-पैरालिसिस होता है पर काफ़ी हल्का. ठीक भी हो सकता है.
-पैर में खून के थक्के धीरे-धीरे जमने पर चलने में दर्द होगा.
-रेस्ट करने पर ठीक हो जाएगा.

-अचानक से कुछ नहीं होगा पर हिंट मिल जाता है कि कुछ प्रॉब्लम शुरू हो गई है.
-लक्षण किसी भी दिन बढ़ सकते हैं.
-अंतड़ियों में खून के थक्के जमने पर खाना खाने में पेट में दर्द होगा.
-उसके बाद आराम हो जाएगा. कारण -अगर परिवार में थ्रोम्बोसिस की हिस्ट्री रही है.
-लाइफस्टाइल के कारण जैसे डायबिटीज.
-ब्लड प्रेशर.
-सिगरेट पीते हैं.
-एक्सरसाइज नहीं करते.
-खानपान का ध्यान नहीं रखते.
-शराब ज़्यादा पीना.
-स्ट्रेस लेना.
-अगर आप ये चीज़ें अवॉयड करें तो खून के थक्के बनने से बच सकते हैं.
-पर जेनेटिक कारणों का आप कुछ नहीं कर सकते. इलाज -इलाज लक्षणों के आधार पर किया जाता है.
-अगर किसी को हार्ट अटैक पड़ा है तो पेशेंट को अस्पताल लेकर जाना पड़ेगा.
-हार्ट के डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा.

-हो सकता है डॉक्टर आपको एंजियोग्राफी करवाने के लिए बोलें.
-एंजियोग्राफी (एक तरह का एक्सरे) जान बचाने के लिए बहुत ज़रूरी है.
-एंजियोग्राफी से पता चलता है कि मरीज़ को दवाइयों से ठीक करना है, एंजियोप्लास्टी (सर्जरी) करवाना है या बाईपास सर्जरी करनी है.
-अगर ब्रेन में खून के थक्के हैं तो न्यूरोलॉजिस्ट से मिलना पड़ेगा.
-आपका सीटी स्कैन होगा.
-उसके बाद पता चलता है कि क्या करना है. दवाई देनी है या एंजियोप्लास्टी (सर्जरी) होनी है.
-पैरों में खून के थक्के जमने पर पैरों की एंजियोग्राफी (एक तरह का एक्सरे) होगी.
-उसके बाद पता चलता है कि दवाई देनी है, एंजियोप्लास्टी यानी छल्ला होना है या बाईपास होना है.
-वही चीज़ पेट में भी होती है.
-खून के थक्कों का पता लगाने के लिए एंजियोग्राफी बेहद ज़रूरी है.
-एंजियोग्राफी होने के बाद इलाज तय किया जाता है.
-दवाइयां तो चलती ही हैं.
-दवाइयों से डायबिटीज कंट्रोल करना ज़रूरी है.
-ब्लड प्रेशर कंट्रोल करना ज़रूरी है.
-अगर लिपिड्स की बीमारी है तो लिपिड्स को कंट्रोल करना ज़रूरी है.
-लिपिड्स यानी फैट, जिसे कंट्रोल करना है.
-एक्सरसाइज और डाइट का ध्यान रखना ज़रूरी है.
-शराब से दूर रहें.
जैसे डॉक्टर साहब ने बताया, नसों में खून के थक्के अचानक से बन सकते हैं या समय के साथ. दोनों ही केसेस में कुछ लक्षण हैं, जिनपर आपको ध्यान देना ज़रूरी है. अगर नहीं दिया तो जान पर भी बन आ सकती है. इसलिए ध्यान रखें, लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाएं.