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ईरानी लड़की की मौत के बाद सड़क पर उतरी महिलाएं, हिजाब फेंककर विरोध जताया

ईरान में साल 1979 से ही महिलाओं के लिए हिजाब पहनना अनिवार्य है.

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महसा अमीनी को 13 सितंबर को ईरान की मोरैलिटी पुलिस ने हिरासत में लिया था (फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट)

ईरान में पुलिस हिरासत में 22 साल की लड़की महसा अमीनी (Mahsa Amini) की मौत के बाद भारी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. 17 सितंबर को महसा के अंतिम संस्कार के दौरान कई महिलाओं ने हिजाब उतार कर विरोध जताया. ईरान में महिलाओं के लिए हिजाब पहनना अनिवार्य है. महसा को उसके होमटाउन साकेज में दफनाया गया. महसा अमीनी अपने परिवार के साथ राजधानी तेहरान घूमने आई थीं. बीते 13 सितंबर को ईरान की मोरैलिटी पुलिस (गश्त-ए-इरशाद) ने उसे हिरासत में लिया था. पुलिस के मुताबिक उसने ड्रेस कोड का पालन नहीं किया था.

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मोरैलिटी पुलिस पर मारपीट के आरोप

सोशल मीडिया पर महसा को हिरासत में लिए जाने के दौरान का वीडियो भी वायरल है. इसमें दिखता है कि पुलिस वाले उसे जबरदस्ती वैन में उठाकर ले जा रहे हैं. मोरैलिटी पुलिस पर महसा के साथ मारपीट के आरोप लगे हैं हालांकि पुलिस ने इससे इनकार कर दिया है. ईरान की सरकारी मीडिया के मुताबिक अमीनी की मौत हार्ट फेल होने की वजह से हुई. पुलिस ने बताया है कि उसकी मौत 16 सितंबर को हुई.

वहीं बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, तेहरान के कासरा अस्पताल ने बताया कि 13 सितंबर को जब महसा को हॉस्पिटल लाया गया तो उसके शरीर में कोई हरकत नहीं थी. हालांकि बाद में अस्पताल के सोशल मीडिया अकाउंट से इस बयान को हटा लिया. उधर ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने गृह मंत्रालय को आदेश दिया कि इस मामले में एक जांच शुरू करे.

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प्रदर्शन के दौरान गोलीबारी

महसा अमीनी के अंतिम संस्कार के दौरान महिलाओं ने ईरान सरकार के खिलाफ 'तानाशाह मुर्दाबाद' के नारे भी लगाए. साकेज में ये प्रदर्शन राजधानी तेहरान से 460 किलोमीटर दूर हो रहे थे. रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदर्शनकारियों ने स्थानीय गवर्नर के ऑफिस तक मार्च भी किया. एक वीडियो भी सामने आया, जिसमें सुरक्षाबल प्रदर्शनकारियों पर गोली चला रहे हैं. प्रदर्शन के दौरान कई लोग घायल भी हुए.

महसा की मौत का दुनियाभर में विरोध हो रहा है. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने मांग की है कि इस घटना की विस्तृत जांच होनी चाहिए. संस्था ने कहा है कि इसके लिए जिम्मेदार सभी पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए.

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ईरान में हिजाब के खिलाफ महिलाओं का संघर्ष

ये पहली बार नहीं है जब ईरान की महिलाओं ने खुलकर हिजाब का विरोध किया है. हिजाब और महिलाओं पर थोपे गए दूसरे ड्रेस कोड के खिलाफ देश के अलग-अलग इलाकों में आंदोलन चलते रहे हैं. साल 2014 में भी तेहरान के इंकलाब स्ट्रीट पर महिलाओं ने अपने हिजाब हवा में फेंककर व्यापक रूप से कठोर इस्लामिक कानूनों का विरोध किया था. इसी तरह साल 2018 में भी इस आंदोलन ने जोर पकड़ा था.

इस साल 12 जुलाई को भी महिलाओं ने हिजाब हटाकर विरोध जताया था. 12 जुलाई को ईरान की सरकार 'हिजाब और शुद्धता का राष्ट्रीय दिवस' के रूप में मनाती है. ईरान में महिलाओं के दमन का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दशकों बाद महिलाओं को पहली बार स्टेडियम में जाकर लीग फुटबॉल मैच देखने की इजाजत मिली थी. साल 1979 से पुरुषों के मैच देखने को लेकर महिलाओं पर पाबंदी थी.

साल 1979 में ईरान की इस्लामिक क्रांति के बाद वहां शरिया कानून लागू किया गया था. ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह खोमैनी ने घोषणा की थी कि महिलाएं हर सार्वजनिक जगह पर हिजाब या इस्लामी ड्रेस पहनेंगी. खोमैनी ने यह घोषणा अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च) के अवसर पर की थी. शरिया कानून का पालन नहीं करने पर जुर्माना लगाने या सजा देने का ऐलान किया गया. उस वक्त भी ईरान की महिलाओं ने खोमैनी के फैसले का जमकर विरोध किया था.

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