कुछ लोग या विशेषज्ञ वेनेज़ुएला वाले तर्क के सामने स्कैंडिनेवियन कंट्रीज का उदाहरण देते हैं और मानते हैं कि भारत जैसे विकासशील देश में सोशल वेलफेयर स्कीम्स बेहद जरूरी हैं. और ये भी कि वेनेज़ुएला की तुलना भारत से नहीं की सकती क्योंकि दोनों के वेलफेयर में स्ट्रक्चरली बहुत बड़ा अंतर है. और ये आर्थिक अंतर, पॉलिटिकल अंतर के चलते है. सवाल तो एक और भी है कि कहाँ पर सोशल वेलफेयर स्कीम्स वाली हद ख़त्म होती है और कहाँ से फ्रीबीज़ वाली शुरू. कहाँ तक शॉर्ट टर्म वाली LOC और कहाँ से लौंग टर्म की सीमा लगती है. तो इस वीडियो में जानते हैं कि कैसे सोशल वेलफेयर स्कीम के चलते देश के कई राज्य क़र्ज़ में डूब गए हैं? फिस्कल प्रूडेंस यानी वित्तीय अनुसाशन v/s फ्रीबीस की डिबेट क्या है? और भारत जैसे विकासशील देश को क्या एप्रोच रखनी चाहिए?
आसान भाषा में: 'मुफ्त देने' की राजनीति का क्या असर हो रहा है?
भारत सरकार के पूर्व Finance Secretary NK Singh के नेतृत्व में एक कमेटी बनी. साल 2017 में इसने एक रिपोर्ट पेश की. रिपोर्ट के मुताबिक राज्यों का Debt to GDP Ratio 20% होना चाहिए. माने अगर GDP 100 रूपये है तो क़र्ज़ 20 रूपये से ज्यादा नहीं होना चाहिए.
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