तलाक़ देने का हक सिर्फ आदमियों को मिला हुआ है. इस वजह से कई छोटी-छोटी लड़कियों की जिदगियां बर्बाद हुई हैं. औरतें हर वक़्त इस डर में रहती हैं की कब उनके पति तीन बार 'तलाक़' कह कर उनको छोड़ देंगे. सिर्फ तीन बार एक शब्द कह देने से कोई रिश्ता कैसे ख़त्म हो सकता है. इस्लाम में कहीं भी इस तरह से तलाक़ देने की इजाज़त नही है. शरीयत का ये कानून औरतों के खिलाफ है. इसलिए हम इसमें बदलाव चाहते हैं. जिस तरह से शादी के समय दो वकील मौजूद रहते हैं उसी तरह तलाक़ के वक़्त भी वकील होने चाहिए. और तलाक़ लेने का फैसला आदमी और औरत दोनों का होना चाहिए.दिसम्बर 2015 में अजमेर में एक कन्वेंशन के दौरान महिला विंग ने ये फैसला लिया था. उनका इरादा था कि जल्द से जल्द इस पर काम शुरू हो. अब इस पर एक ठोस कैंपेन शुरू हो गया है. जून में होने वाली संघ की मीटिंग के दौरान इस मामले में आगे फैसला लिया जाएगा.
मुस्लिमों के ट्रिपल 'तलाक़' के खिलाफ उतरेगा RSS का मुस्लिम विंग
RSS राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की महिला विंग ने शुरू किया ये कैंपेन
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Credit: reuters
मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत), एप्लीकेशन एक्ट 1937 के हिसाब से इस्लाम में आदमियों को हक है. अगर वो चाहें तो तीन बार 'तलाक़' कहकर अपनी शादी वहीं ख़त्म कर सकते हैं. अपनी बीवी को छोड़ सकते हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के राष्ट्रीय मुस्लिम मंच(MRM) की महिला विंग ने इस इस्लामी तरीके के खिलाफ कैंपेन शुरू किया है. उनका कहना है कि काफी समय से वो लोग बदलाव की कोशिश कर रहे हैं. देश में हर धर्म के लिए एक जैसे नियम कानून होने चाहिए. हर शादी और तलाक़ का रिकॉर्ड होना चाहिए. जैसे बच्चों का पैदा होना और किसी का मरना रजिस्टर करवाना ज़रूरी होता है. उसी तरह तलाक़ भी रजिस्टर होने चाहिए. हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में MRM की महिला विंग की हेड, शहनाज़ अफज़ल ने कहा,
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