ऋतिक रोशन की फिल्म आ रही है. काबिल. इसमें उनके साथ यामी गौतम भी हैं. दोनों ऐसे किरदार में हैं जो देख नहीं सकते हैं. एक दूसरे से प्यार करते हैं. फिल्म में कई जगह ऋतिक रोशन घड़ी पहने हुए दिख रहे हैं. जैसा कि ट्विटर वालों की जिम्मेदारी है, उन्होंने इसके मजे लेने शुरू कर दिए. उनका कहना है कि एक आदमी जो देख नहीं सकता, घड़ी कैसे पहन सकता है? फिर तो कल को ये भी कहने लगेंगे कि दोनों ने इतना अच्छा मेक-अप कैसे किया हुआ है? ज्यादा लॉजिक ना लगाओ लेकिन ये घड़ी वाला मसला गंभीर है.

आपको भी लगेगा कि बताओ ट्विटर वालों ने क्या गलत कहा? ये फिल्म वालों के पास दिमाग वगैरह नहीं होता. कोई भी जो देख नहीं सकता वो घड़ी कैसे देखेगा?

लेकिन फिल्म के डायरेक्टर संजय गुप्ता ने इसका जवाब दिया है. उन्होंने एक फोटो ट्वीट की है. कहा बहुत से लोग काबिल में ऋतिक की घड़ी पर सवाल उठा रहे हैं. प्लीज कोई इन जीनियस लोगों को समझाओ. इस फोटो में एक घड़ी दिख रही है. ये घड़ी असल में एक ब्रेल वॉच है.

संजय ने कहा, ''विश्वास कीजिए, जब आप फिल्म देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि घड़ी का फिल्म में अहम रोल है. अभी मैं इसके बारे में ज्यादा नहीं बता सकता. सोशल मीडिया में जो चल रहा है उसे देखकर लगता है कि हम ऐसे देश में रह रहे हैं जहां लोगों को दूसरे की मेहनत पर पानी फिराने में मजा आता है.'' ब्रेल वॉच ब्रेल वॉच असल में बारह डिजिट तक ब्रेल लिपि में डॉट्स बने होते हैं. उभरे हुए. दोनों तरह की ब्रेल घड़ियां आती हैं. डिजिटल और एनालॉग. एनालॉग वाली में सुइयां होती हैं और ऊपर ग्लास का ढक्कन लगा होता है. जो देख नहीं सकते वो इस ढक्कन को उठाकर हाथ से छूकर डॉट्स से समय पता कर सकते हैं. डिजिटल घड़ियों में डॉट्स बदलते रहते हैं. इनके अलावा अब तीसरी तरह की घड़ियां भी होती हैं. इनमें समय बताने के लिए आवाज़ आती है.

एनालॉग ब्रेल वॉच

स्मार्ट डिजिटल ब्रेल वॉच
ब्रेल लिपि ब्रेल लिपि का नाम लुई ब्रेल के नाम पर दिया गया है. लुई फ्रांस के थे. एक एक्सीडेंट की वजह से उन्होंने अपनी आंखें खो दी थीं. इसके बाद 1824 में 15 साल की उम्र में उन्होंने मिलिट्री की एक पुरानी नाईट कोडिंग का सहारा लेकर अपने शब्दों की कोडिंग की. 1829 में उन्होंने इस कोडिंग को सबके सामने पेश किया. बाद में इस कोडिंग को म्यूजिक नोटेशन में भी इस्तेमाल किया गया.

लुई ब्रेल की मूर्ति
ब्रेल लिपि जिस मिलिट्री कोडिंग पर बनाई गई है उस मिलिट्री कोडिंग को चार्ल्स बार्बिएर ने बनाया था. नेपोलियन ने रातों को सैनिकों के बीच बातचीत करने के लिए कोई सिस्टम बनाने की बात की थी. बार्बियर के सिस्टम में 12 डॉट्स थे जिनसे 36 अलग-अलग साउंड बनते थे. सैनिकों के लिए इसे रीड कर पाना कठिन था. इसे रिजेक्ट कर दिया गया.

ब्रेल लिपि
1821 में बार्बियर पेरिस के रॉयल इंस्टिट्यूट ऑफ़ ब्लाइंड गए. जहां वो लुई ब्रेल से मिले. ब्रेल को इस कोडिंग में दो दिक्कतें नज़र आईं. पहली ये कि इससे केवल स्वर का पता चलता है. शब्दों की मात्राएं नहीं पता चलतीं. दूसरी, 12 डॉट्स ज्यादा हैं. इससे उंगलियों को ज्यादा चलाना पड़ता है और एक सिंबल से दूसरे सिंबल पर पहुंचने में समय लगता है. इसके लिए ब्रेल ने 6 डॉट्स का सिस्टम बताया. धीरे-धीरे ये और विकसित हुआ. बहुत सी चीजें इसमें जुड़ीं, जिससे सिर्फ शब्द ही नहीं मात्राओं, कम डॉट्स से ज्यादा चीजों को पता करना, संकेत, लोगोग्राम इसमें जुड़ते गए.
फिलहाल काबिल का दूसरा ट्रेलर देखिए-
https://www.youtube.com/watch?v=0GnPd4WzwpI
ये स्टोरी निशांत ने की है.