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खिलौनों की तरह बेचता था हथियार, मायावती के खासमखास को मारा, क्या है संजीव जीवा की कहानी

हथियारों के लिए संजीव जीवा का अपना नेटवर्क था, इसलिए उसे मुख़्तार अंसारी का साथ मिला था.

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संजीव जीवा, मुख्तार अंसारी का करीबी माना जाता था. (फोटो सोर्स- इंडिया टुडे)

लखनऊ की एक अदालत में गैंगस्टर संजीव माहेश्वरी उर्फ़ जीवा की हत्या कर दी गई है. बुधवार, 7 जून को संजीव जीवा सुनवाई के लिए कोर्ट पहुंचा था. उसी दौरान वकील के भेस में आए एक हमलावर ने उसे गोली मार दी. संजीव जीवा कुछ देर अदालत के एक कार्यालय में पड़ा रहा. वहीं उसने दम तोड़ दिया. हमले में एक महिला और एक बच्ची के भी घायल होने की जानकारी आ रही है. फिलहाल अदालत के अंदर और बाहर अफरातफरी का माहौल है. ताजा अपडेट के मुताबिक आरोपी को पकड़ लिया गया है. उसका नाम विजय यादव बताया गया है.

कौन था संजीव जीवा?

पश्चिमी उत्तर-प्रदेश कई कुख्यात गैंगस्टरों के लिए भी जाना जाता है. संजीव माहेश्वरी उर्फ़ संजीव जीवा भी पश्चिमी उत्तर-प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले से आता है. शुरुआती दिनों में जीवा एक दवाखाने पर बतौर कंपाउंडर काम करता था. यहां काम करने के दौरान जीवा ने उस दवाखाने के मालिक को ही अगवा करके फिरौती मांगी. उसके बाद कोलकता के एक व्यापारी के बेटे को भी अगवा किया. उससे 2 करोड़ की फिरौती मांगी. शुरुआत में संजीव जीवा की अदावत, पश्चिमी यूपी के ही एक और कुख्यात गैंगस्टर सुशील उर्फ़ मूंछ से चलती थी. प्रॉपर्टी पर अवैध कब्जे और रंगदारी को लेकर. साल 2006-07 में जीवा गैंग ने सुशील गैंग के मेंबर हरवीर सिंह की हत्या कर दी थी. उसके बाद से दोनों गैंग्स के बीच शुरू हुई अदावत कभी ख़त्म ही नहीं हुई.

संजीव जीवा (फोटो सोर्स- यूपी पुलिस)

बाद में जीवा हरिद्वार के नाजिम गैंग में घुसा. ये गैंग हरिद्वार से लेकर मुजफ्फरनगर और शामली तक अपहरण, डकैती, हत्या और लूट जैसी वारदातों को अंजाम देता था. और फिर जीवा सतेंद्र बरनाला के साथ जुड़ गया. इस दौरान उसकी अपना गैंग खड़ा करने की भी इच्छा थी.

लेकिन संजीव जीवा चर्चा में तब आया, जब 10 फरवरी 1997 को उसका नाम ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या में सामने आया. ब्रह्मदत्त द्विवेदी बीजेपी के नेता थे. उन्हें यूपी के चर्चित गैस हाउस कांड में पूर्व सीएम मायावती को बचाने के लिए याद किया जाता है. ब्रह्मदत्त की हत्या के मामले में संजीव को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी.

मुख्तार का चहेता बना जीवा

जीवा अपराध की दुनिया में तेजी से आगे बढ़ रहा था. वो मुन्ना बजरंगी गैंग के संपर्क में भी आया. इसी क्रम में मुख्तार अंसारी से भी उसका संपर्क हुआ. कहते हैं कि मुख्तार अंसारी को अत्याधुनिक हथियारों का शौक था और जीवा के पास हथियार जुटाने का नेटवर्क था. एके-47 जैसे घातक हथियार बेचना जीवा के बाएं हाथ का खेल था. इसीलिए मुख्तार ने जीवा को अपने साथ ले लिया था. आगे चलकर यूपी के एक और चर्चित हत्याकांड में इन दोनों का नाम आने वाला था. साल 2005 में हुए कृष्णानंद राय हत्याकांड में मुख्तार अंसारी और संजीव जीवा पर आरोप लगे थे. हालांकि कुछ साल बाद मुख्तार और जीवा को इस मामले में कोर्ट से बरी कर दिया गया.

संजीव जीवा (फोटो सोर्स- यूपी पुलिस)

इंडिया टुडे ने पुलिस रिकॉर्ड के हवाले से बताया है कि संजीव जीवा पर 20 से ज्यादा मुक़दमे दर्ज हुए. इनमें से कई मामलों में वो बरी हो चुका था. कहा जाता है कि उसके गैंग में 35 से ज्यादा सदस्य थे. बागपत का रहने वाला अनुज दोघट संजीव के काम देखता था. संजीव जीवा पर जेल से भी गैंग ऑपरेट करने के आरोप लगते रहे हैं. बीते साल प्रशासन ने उसकी संपत्ति भी कुर्क की थी.

साल 2017 में कारोबारी अमित दीक्षित उर्फ़ गोल्डी की हत्या हुई थी. इस मामले में अदालत ने जीवा सहित 4 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. तब से जीवा लखनऊ जेल में बंद था. उसकी पत्नी पायल साल 2017 में राष्ट्रीय लोकदल की टिकट पर मुजफ्फरनगर शहर सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ चुकी है. साल 2021 में पायल ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा था कि जीवा की जान को ख़तरा है. दो साल बाद 7 जून, 2023 को लखनऊ की एक अदालत में जीवा की हत्या कर दी गई.

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