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राहुल ने लंदन में क्या बोला जो भारत में बवाल हो गया?

राहुल गांधी के केंब्रिज भाषण की पूरी कहानी.

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राहुल ने 1995 में केंब्रिज से डेवलपमेंट स्टडी में एमफिल किया था (फाइल फोटो- आजतक)

28 फरवरी को राहुल गांधी केंब्रिज पहुंचे तो सबसे पहला अपडेट यही आया कि उन्होंने दाढ़ी ट्रिम करवा ली है. अब ये खबर तो थी नहीं. हद से हद एक ट्रिविया था. खबर तब बनी, जब ये सामने आया कि राहुल गांधी ने केंब्रिज में कहा क्या. इसपर हो रही चर्चा एक कीवर्ड के इर्द-गिर्द घूम रही है - पेगसस. लेकिन राहुल ने कई और टिप्पणियां भी कीं, जिनका संबंध भारत में लोकतंत्र की सेहत और संस्थाओं के चरमराने से है. ज़ाहिर है, सरकार की ओर से पलटवार होना ही था. कहा गया कि राहुल ने फिर विदेशी ज़मीन पर भारत की छवि को खराब किया.
विरोधी पार्टियों के नेता कभी भूले से भी एक-दूसरे को सही कह दें, तो फिर नेता किस काम के. लेकिन अगर भारत की सबसे बड़ी पंचायत में निर्वाचित एक प्रतिनिधी अगर केंब्रिज जैसे मंच पर कुछ कह रहा है, तो उसका संज्ञान लेना आवश्यक हो जाता है. इसीलिए आज की बड़ी खबर में हम ये समझने की कोशिश करेंगे कि राहुल ने जो कहा, उसमें दम कितना है. और क्या उसे इस बिनाह पर खारिज किया जा सकता है, कि घर की बातों पर बाहर रोना ''अच्छे'' लोगों की निशानी नहीं है.

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आइए सबसे बेसिक सवाल से शुरुआत करें. कि राहुल गांधी केंब्रिज गए क्यों थे. और चले भी गए, तो इसमें खास बात क्या है. तो जवाब ये है कि साल 1209 में इंग्लैंड की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़े कुछ छात्र केंब्रिज नाम के कस्बे में चले आए. क्योंकि ऑक्सफोर्ड में उनकी स्थानीय लोगों से बन नहीं रही थी. केंब्रिज आकर इन्होंने किराए के कमरों में पढ़ाई शुरू की. 1226 के आसपास इन छात्रों की संख्या इतनी हो गई, कि इन्होंने पढ़ाई-लिखाई का पूरा तंत्र बना लिया. विधिवत पढ़ाई होने लगी, कोर्स चलने लगे और एक चांसलर तक नियुक्त कर लिया गया. हॉस्टल बनाने के लिए घरों को किराए पर लिया गया. इसके बाद इंग्लैंड के राजा हेनरी तृतीय ने लड़कों और अध्यापकों द्वारा चलाई जा रही इस मुहिम को संरक्षण दिया और यहां से यूनिवर्सिटी ऑफ केंब्रिज की नींव पड़ी.

अपने 814 सालों के इतिहास के साथ, केंब्रिज यूनिवर्सिटी दुनिया की तीसरी सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी है, जो लगातार काम कर रही है. दुनियाभर में यहां होने वाले शोध का लोहा माना जाता है. भारत से भी हर साल हज़ारों की संख्या में छात्र केंब्रिज के अलग-अलग कोर्स में दाखिले के लिए फॉर्म भरते हैं. इसी यूनिवर्सिटी का मैनेजमेंट कॉलेज है Cambridge Judge Business School. हर कॉलेज की तरह केंब्रिज जज में भी समय-समय पर वक्ताओं को बुलाया जाता है. सो यहां के MBA प्रोग्राम ने राहुल गांधी को बुलाया था. बहैसियत विज़िटिंग फेलो आए राहुल इसी कॉलेज से पढ़े भी हैं. उन्होंने 1995 में यहां से डेवलपमेंट स्टडी में एमफिल किया था. लेकिन रॉल विंची नाम से. क्योंकि राजीव गांधी की हत्या के बाद उनकी सुरक्षा को लेकर चिंता थी.

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खैर, 28 फरवरी को हुए राहुल के संबोधन का शीर्षक था - Learning to Listen in the 21st Century. माने 21 वीं सदी में सुनना-समझना कैसे सीखें. राहुल का संबोधन 1 घंटे लंबा था, जिसमें ढेर सारे विषय थे. उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा के किस्से सुनाए और बात को अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती प्रतिद्विद्विता तक ले गए. राहुल ने कहा कि समय के साथ दुनिया भर में मैनुफैक्चरिंग सेक्टर ऐसे देशों में शिफ्ट हुआ है, जहां लोकतांत्रिक मूल्यों की परवाह नहीं की जाती. मिसाल के लिए चीन. और इसके पीछे तरह तरह के तर्क दिये जाते हैं. ज़रूरत है ये समझने की, कि लोकतांत्रिक देशों के भीतर मैनुफैक्चरिंग को कैसे बढ़ाया जाए.

रूस-अमेरिका और ग्लोबल मैनुफैक्चरिंग पर राहुल ने जो कहा, उसपर भारत में ज़्यादा ध्यान दिया नहीं गया. खबरें वहां से निकलीं, जहां उन्होंने मोदी सरकार का ज़िक्र करना शुरू किया. उन्होंने कहा कि महिलाओं को गैस सिलेंडर देना और आम लोगों के बैंक अकाउंट खुलवाना अच्छे कदम हैं. और इनमें खोट नहीं निकाला जा सकता. जब विपक्षी नेता सरकार के किसी काम की तारीफ करें, तो तुरंत समझ लेना चाहिए कि एक बहुत बड़ा ''लेकिन'' आने वाला है. ऐसा ही यहां हुआ. उन्होंने अगली ही लाइन में प्रधानमंत्री पर देश के बुनियादी ढांचे को बर्बाद करने का आरोप लगा दिया. राहुल गांधी, ने कहा, 

‘लोकतंत्र के लिए जरूरी ढांचा संसद, स्वतंत्र प्रेस, न्यायपालिका होते हैं. आज यह सब विवश होते जा रहे हैं. इसलिए हम भारतीय लोकतंत्र के मूल ढांचे पर हमले का सामना कर रहे हैं. भारतीय संविधान में भारत को राज्यों का संघ बताया गया है. उस संघ को बातचीत की जरूरत है. यह वह बातचीत है जो खतरे में है. आप देख सकते हैं तस्वीर जो संसद भवन के सामने की है विपक्ष के नेता कुछ मुद्दों पर बात कर रहे थे और उन्हें जेल में डाल दिया गया. ऐसा 3 या 4 बार हुआ है. जो हिंसक था.’

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यूनियन ऑफ स्टेट्स और सांप्रदायिकता जैसे विषयों पर राहुल ने कमोबेश वही कहा, जो वो पहले भी कह चुके हैं. लेकिन इसके बाद उन्होंने मोदी सरकार पर विपक्षी नेताओं की जासूसी का आरोप लगाया. राहुल ने कहा, 

‘बड़े पैमाने पर राजनीतिक नेताओं के फोन में पेगासस है. मेरे फोन में भी पेगासस था. मुझे इंटेलिजेंस अफसरों ने बुलाकर कहा था कि आप फोन पर जो कुछ भी कहें, बेहद सतर्क होकर कहें, क्योंकि हम इसे रिकॉर्ड कर रहे हैं. यह एक ऐसा दबाव है, जो हम महसूस करते हैं.’

जहां से बात पेगसस पर आई, सरकार को पलटवार का मौका मिल गया. केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने राहुल पर एक बार फिर विदेश जाकर रोना-धोना करने का आरोप लगाया. अनुराग ठाकुर ने पेगासस मुद्दे पर कहा, 

‘यह कहीं और नहीं बल्कि राहुल के दिल-दिमाग में हुआ है. उनकी क्या मजबूरी थी जो अपना फोन जमा नहीं करवाया. ऐसा क्या था उनके फोन में. एक के बाद एक हार को वे पचा नहीं पा रहे हैं, जिस तरह से वे विदेश धरती पर, कभी विदेशी दोस्तों के जरिए भारत को बदनाम करते हैं, इससे ये सवाल सामने आता है कि कांग्रेस का एजेंडा क्या है?’

अनुराग ठाकुर ने राहुल गांधी को इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी की याद भी दिलाई. वो इसलिए क्योंकि भारत के दौरे पर आईं इटली की पीएम ने कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की थी. उन्होंने कहा था कि - प्रधानमंत्री मोदी दुनिया के सबसे चहेते नेताओं में से एक हैं.' अनुराग ठाकुर का बयान आने के बाद भाजपा की ओर से कई और नेताओं ने भी प्रतिक्रिया दी. चौतरफा हमला हुआ, तो राहुल के बचाव में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे आए. उन्होंने कहा,

‘बीजेपी पर जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि हमने इस (पेगासस) मुद्दे को कई बार संसद में उठाया है, लेकिन सरकार इसका जवाब नहीं देती है. बीजेपी जनता को गुमराह कर रही है. ऐसा कई नेताओं के साथ हुआ है.’ 

जो आप आज होता देख रहे हैं, वो मार्च 2018 में भी हो चुका है. तब राहुल गांधी सिंगापुर यूनिवर्सिटी गए थे. तब भी राहुल ने मोदी सरकार पर विभाजनकारी नीतियां अपनाने का इल्ज़ाम लगाया था. और तब भी सरकार और भारतीय जनता पार्टी की ओर से यही प्रतिक्रिया आई थी कि राहुल गांधी ने विदेशी धरती पर भारत का अपमान किया है.

जैसा हमने पहले कहा, विरोधी नेता एक दूसरे की सरकारों के खिलाफ बोलने को अभिशप्त हैं. फिर पेगसस को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई कमेटी ने जो रिपोर्ट अदालत को सौंपी थी, उसमें ये तो कहा गया था कि जो 29 फोन जांच के लिए आए, उनमें से 5 में कोई मालवेयर होने के सबूत मिले. सादी भाषा में आप इसे वायरस भी कह सकते हैं. लेकिन ये पेगसस ही था, ये दावे से नहीं कहा जा सकता. तो राहुल के पेगसस वाला दावा फिलहाल दावा है ही है, तथ्य नहीं. लेकिन एक सत्य ये भी है, कि स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा था कि भारत सरकार ने कमेटी की जांच में सहयोग नहीं दिया.

तो एक ग्रे एरिया है. जिसमें ढेर सारे मत हैं. यही बात संस्थाओं पर हो रहे हमलों पर लागू होती है. भारत में मज़बूत सरकारों के कार्यकाल में संस्थाओं पर दबाव का इतिहास रहा है. लेकिन क्या इसे हमला कहा जाए, इसपर बहस अभी जारी है.

तो राहुल या अनुराग ठाकुर, दोनों में से किसी एक को सही या गलत बताना बहुत मुश्किल है. लेकिन एक बात पर विचार किया जाना ज़रूरी है, कि क्या किसी के ऐतराज़ को इसलिए खारिज किया जा सकता है, कि वो विदेशी धरती पर जताया गया. हम इसका फैसला दर्शकों पर छोड़ते हैं कि क्या विदेश में होने वाली आलोचना और तारीफ में पिंक एंड चूज़ की नीति अपनाई जा सकती है. और क्या सरकार की आलोचना को देश की आलोचना माना जा सकता है.

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