जब भारत की संसद में लोकसभा है तो राज्यसभा की जरूरत क्यों पड़ी?
देवेंद्र फडणवीस सीएम तो बन गए, लेकिन अब उन्हें ये टेस्ट पास करना होगा
ये भी जानिए कि अगर वोटिंग के दिन कोई विधायक न पहुंचा तो उसका क्या होगा.
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देवेंद्र फडणवीस सीएम पद की शपथ ले चुके हैं. उन्हें बहुमत साबित करना पड़ सकता है. फोटो-पीटीआई
देवेंद्र फडणवीस सीएम पद की शपथ ले चुके हैं. वहीं एनसीपी के अजित पवार ने भी मंत्री के तौर पर शपथ ली है. यानी महाराष्ट्र में बीजेपी और अजित पवार वाली एनसीपी की सरकार बन चुकी है. बीजेपी ने 173 विधायकों के समर्थन का दावा किया है. इसमें बीजेपी के 105, एनसीपी के 54 और अन्य निर्दलीय विधायक शामिल हैं. हालांकि एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने अजित पवार के बीजेपी के साथ जाने के फैसले को उनका निजी फैसला बताया है. बीजेपी को समर्थन देने के मुद्दे पर पार्टी बंट गई है. अब बारी है फ्लोर टेस्ट की देवेंद्र फडणवीस को अब बहुमत साबित करना होगा. बीजेपी के प्रवक्ता शहनवाज हुसैन ने कहा है कि सरकार 30 नवंबर को बहुमत साबित करेगी. इसके बाद से फ्लोर टेस्ट न्यूज़ कीवर्ड बना हुआ है. सरकार चलाने के लिए मुख्यमंत्री और उसकी कैबिनेट के पास सदन का भरोसा होना चाहिए. सदन के भरोसे का मतलब कुल सदस्यों के 50 फीसदी से कम से कम एक ज़्यादा. इसी भरोसे का प्रदर्शन होता है विश्वास मत के तहत. विश्वास मत सरकार की तरफ से लाया जाता है. और इसके लिए वोटिंग कराई जाती है.
फ्लोर टेस्ट के दौरान विधायक अलग-अलग तरह से वोट करते हैं - मौखिक, ईवीएम या बैलेट पेपर के ज़रिए. बहुमत साबित नहीं होने का मतलब है कि सरकार सदन का भरोसा खो चुकी है. इसके बाद मुख्यमंत्री सहित पूरी कैबिनेट के पास इस्तीफे के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं बचता. कई बार सरकारें जब ये देखती हैं कि उनके पास पर्याप्त संख्या में विधायक नहीं हैं, तो विश्वास मत से पहले ही इस्तीफा हो जाता है. जैसा कि कर्नाटक के मामले में हुआ था. बहुमत साबित नहीं कर पाने की वजह से येदियुरप्पा को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था. तकनीकी रूप से, किसी राज्य के मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है. स्पष्ट बहुमत वाले मुख्यमंत्रियों के मामले में विश्वास मत की कार्यवाही महज़ एक औपचारिकता होती है. लेकिन जब किसी पार्टी के पास स्पष्ट बहुमत नहीं होता तो राज्यपाल उस पार्टी के नेता को सीएम पद की शपथ दिलाते हैं जो बहुमत होने का दावा करता है. ऐसे दावों के पुष्टि हर हाल में विश्वास मत के ज़रिए कराई जाती है. और विश्वास मत के लिए विधायकों को विधानसभा पहुंचना होता है. इसी बात से एक और बात निकलती है. कि सारे विधायक अगर वोटिंग के दिन न पहुंचे तो क्या होगा? सभी विधायक नहीं आए तब क्या होगा? नियम ये हैं कि सदन में मौजूद विधायकों की संख्या के आधार पर बहुमत साबित करना होता है. वर्तमान में महाराष्ट्र विधानसभा में 288 सीटें हैं. बहुमत के लिए 145 का आंकड़ा चाहिए. मान लीजिए कि किसी पार्टी के विधायक विधानसभा में नहीं पहुंचे. ऐसे में बहुमत का आंकड़ा नीचे खिसक आएगा. उदाहरण के लिए अगर सदन में 20 विधायक नहीं पहुंचे, तो विधानसभा में विधायकों की संख्या हो जाएगी. 268. यानी बहुमत के लिए चाहिए 135. और अगर ऐसा हो गया, तो क्या होगा. यही आप आगे पढ़ेंगे. सदन में नहीं आने वाले विधायकों का क्या होगा विधायक पार्टी लाइन पर ही चलें. पार्टी के कहने पर सदन में पहुंचकर वोट करें. इसके लिए पार्टियां अपने सांसदों-विधायकों के लिए तीन तरह की व्हिप जारी करती हैं. जैसी स्थिति महाराष्ट्र में है, उसके हिसाब से यही लगता है कि पार्टियां अपने विधायकों के लिए एक थ्री लाइन व्हिप जारी करेंगी. ऐसी स्थिति में विधायकों को सदन में जाना ही पड़ता है और वोट भी पार्टी लाइन पर ही डालना होता है. थ्री लाइन व्हिप के उल्लंघन पर दलबदल कानून के तहत सदन से बर्खास्तगी की कार्रवाई तक की जा सकती है.
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