आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला?
यह साल 2000 की बात है. विष्णु तिवारी अपने पिता और दो भाइयों के साथ उत्तर प्रदेश के ललितपुर के एक गांव में रहते थे. उनका पढ़ाई में मन नहीं था. सो स्कूल छोड़ दिया था. परिवारिक कामों में मदद किया करते थे. उसी साल सितंबर महीने में विष्णु के गांव से 30 किलोमीटर दूर सिलवन गांव की एक दलित महिला ने विष्णु पर आरोप लगाया कि उन्होंने उसका बलात्कार किया है. टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट
मुताबिक़, महिला के आरोप के बाद विष्णु पर दलित महिला के बलात्कार, आपराधिक धमकी, यौन शोषण आदि को लेकर एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज़ किया गया. बाद में एक ट्रायल कोर्ट ने विष्णु को दोषी पाया और आजीवन कारावास की सजा सुना दी.
2003 में विष्णु को आगरा सेंट्रल जेल ले जाया गया. अखबार ने आगरा सेंट्रल जेल के सीनियर सुपरिटेंडेंट वीके सिंह के हवाले से बताया कि विष्णु सौम्य स्वभाव के थे. वह अच्छे रसोइए थे. कैदियों के लिए खाना बनाने के साथ ही वह जेल के अंदर साफ़-सफाई का काम भी देखते थे. उनका आचरण हमेशा से अच्छा था. परिवार से उन्हें बेहद लगाव था. वह अपने पिता से मिलने को लेकर बेसब्री से इंतज़ार करते थे.
पिता का निधन
करीब छह साल पहले विष्णु के पिता ने उनसे मिलने आना बंद कर दिया. बाद में पता चला कि उनका निधन हो गया. विष्णु के जेल में रहते हुए उनके भाई की भी मौत हो गई. आजतक से बातचीत में विष्णु ने बताया कि जेल में रहते हुए उनके परिवार के कुल चार सदस्य चल बसे. वे किसी के अंतिम संस्कार में भी नहीं जा सके.
साल 2005 में विष्णु ने हिम्मत करके ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया था. लेकिन बात बनी नहीं. फिर 14 साल की सजा पूरी होने के बाद विष्णु ने दया याचिका के लिए मन बनाया. ऐसे में जेल अधिकारी और राज्य के लीगल सर्विस अधिकारी आगे आए और पिछले साल इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई.

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि विष्णु को गलत तरीके से दोषी ठहराया गया. (स्क्रीनग्रैब: एएनआई)
सुनवाई के बाद बीती 28 जनवरी को जस्टिस कौशल जयेंद्र ठाकर और गौतम चौधरी की बेंच ने कहा कि बलात्कार के मामले में विष्णु दोषी नहीं हैं. अदालत ने माना कि एफआईआर तीन दिन की देरी से दर्ज करवाई गई थी. और जिस महिला के साथ मार-पीटा किए जाने की बात कही गई थी, उसके निजी अंगों पर चोट के कोई निशान नहीं मिले थे. मामला असल में जमीन विवाद का था, जिसको लेकर उसके पति और ससुर ने शिकायत दर्ज की थी.
विष्णु तिवारी को निर्दोष करार देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने जजमेंट में कहा है कि रिकार्ड्स और फैक्ट्स को देखते हुए वह आश्वस्त है कि अभियुक्त को गलत तरीके से दोषी ठहराया गया था. ऐसे में ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटकर अभियुक्त को बरी किया जा रहा है. इसके साथ ही कोर्ट ने ऐसे केसों में जल्द सुनवाई करने के भी कड़े निर्देश दिए हैं.
माता-पिता, भाइयों की मौत
आज तक
से बात करते हुए विष्णु तिवारी ने बताया कि जेल की सजा के दौरान उनके परिवार में चार लोगों की मौत हो गई. पहले माता-पिता गुजर गए. इसी सदमे ने दो भाइयों की भी जान ले ली. लेकिन उन्हें किसी की भी मौत में जाने नहीं दिया गया. उनका दावा है कि उन्हें जेल से एक कॉल तक नहीं करने दिया जाता था.
अपना सबकुछ खो चुके विष्णु को सरकार से अब उम्मीद है कि सरकार उसे आगे का जीवन बिताने के लिए कुछ मदद करे. इस सिलसिले में आगरा सेंट्रल जेल के सीनियर सुपरिटेंडेंट वीके सिंह ने टीओआई से बातचीत करते हुए बताया कि एक ढाबा खोलकर जीवन की नई शुरुआत करने की योजना बना रहे हैं.
जेल से बाहर निकलकर विष्णु ने क्या कहा?
रिहा होने के बाद विष्णु ललितपुर पहुंचे. आजतक से बातचीत में उन्होंने सिस्टम पर सवाल उठाए. विष्णु ने बताया कि 20 साल जेल में रहने के बाद उन्हें गांव में अजनबी जैसा लग रहा है. उन्होंने कहा,
मेरा सबकुछ लुट गया. कुछ नहीं बचा है. मेरे पास न जमीन है, न मकान है. जो हुनर था हाथों में वह भी खत्म हो गया. किराए पर रह रहे हैं. सरकार से विनती है कि आगे की जिंदगी के लिए कुछ मदद करे नहीं तो हमें तो आत्महत्या करनी पड़ेगी.एक गलत फैसले से विष्णु को जो नुकसान हुआ, उसकी भरपाई नहीं हो सकती. उन्हें इस बात की संतुष्टि भर है कि कम से कम वे निर्दोष साबित हुए. वे कहते हैं,
'मुझे तो लगने लगा था कि जेल में ही मर जाएंगे. लेकिन निर्दोष होकर घर आ गए. इस बात की खुशी है. मुझे दुनिया को दिखाना था कि मैंने कुछ गलत नहीं किया है.'मीडिया से बातचीत में उन्होंने बताया कि असल में 20 साल पहले जमीन और पशुओं को लेकर एक विवाद हुआ था. इसके बाद दूसरे पक्ष ने थाने में शिकायत की थी. थाने में तीन दिन तक एफआईआर नहीं हुई. इसके बाद राजनीतिक दबाव डलवाकर एससी-एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करवाया गया था.
NHRC ने मांगा जवाब
मामले को लेकर नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन ने झूठे बलात्कार के मामले में विष्णु के 20 साल जेल में बिताने को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है. टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट
मुताबिक़ कमीशन ने पूछा है कि विष्णु के पुनर्वास के लिए सरकार क्या कदम उठा रहे हैं. मानवाधिकार आयोग ने यह भी पूछा है कि सरकार इतने सालों से क्या कर रही थी? सेंटेंस रिव्यू बोर्ड ने मामले का आकलन क्यों नहीं किया? आयोग ने 6 हफ़्तों में उत्तर प्रदेश के चीफ़ सेक्रेट्री और डायरेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस से जवाब मांगा है.
सोशल मीडिया पर क्या चल रहा?
विष्णु तिवारी के जेल से रिहा होने की ख़बर वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर कई लोग विष्णु को न्याय दिलाने की मांग कर रहे हैं. प्रशासन और कोर्ट से विष्णु को हर्ज़ाना देने को कह रहे हैं.
मामले को लेकर झारखंड बीजेपी प्रवक्ता प्रतुल शाह देव ने ट्वीट कर कहा कि बड़ा प्रश्न यह है कि विष्णु तिवारी पर गलत आरोप लगाने वाली महिला पर मुकदमा दर्ज होगा और क्या उसे भी कड़ी सजा मिलेगी? बड़ा प्रश्न यह है कि विष्णु तिवारी पर गलत आरोप लगाने वाली महिला पर मुकदमा दर्ज होगा और क्या उसे भी कड़ी सजा मिलेगी?