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साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को मिला प्रतिष्ठित PEN अवॉर्ड

अंतरराष्ट्रीय साहित्य में ख्याति के लिए ये अवॉर्ड मिला है.

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साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल. (फोटो: यूट्यूब)

साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को पेन अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय साहित्य में ख्याति के लिए 2023 का नाबोकॉव अवॉर्ड (PEN/Nabokov Award) दिया है. PEN अमेरिका एक ग़ैर-लाभकारी संस्था है, जो साहित्य और मानवाधिकारों में किए काम को मान्यता देती है. गुरूवार, 2 मार्च को अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में विनोद कुमार शुक्ल (Vinod Kumar Shukla) को ये पुरस्कार मिलेगा. शुक्ल के अलावा प्रसिद्ध नाटककार एरिका डिकर्सन-डेस्पेंज़ा को भी इस अवॉर्ड के लिए चुना गया है.

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पुरस्कार के लिए विनोद कुमार शुक्ल को चुनने वाले जजों के पैनल में लेखक-संगीतकार अमित चौधरी, ईरानी-अमेरिकी पत्रकार रोया हाकाकियन और इथियोपियाई-अमेरिकी लेखिका माज़ा मेंगिस्टे थे. पैनल ने कहा,

"शुक्ल के गद्य और पद्य में सूक्ष्म और अनचीन्ही चीज़ों का अवलोकन है. उनके लेखन में जो आवाज़ सुनाई पड़ती है, वो एक गहरी बुद्धिमत्ता वाले चितेरे की है. गोया दिन में सपने देखने वाला एक व्यक्ति, जो बीच-बीच में हठात चकित हो उठता है."

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ये अवॉर्ड हर साल एक ऐसे लिक्खाड़ को दिया जाता है, जिनकी मौलिकता ठहरती हो और जिनके शिल्प कौशल का सानी न हो. शुक्ल से पहले ये अवॉर्ड विश्व साहित्य के एक से एक दिग्गजों को ही मिला है. मसलन, केन्याई लेखक गुगी वा थिऔन्गो, कनाडाई कवियित्री ऐनी कार्सन और एम नोरबे से फिलिप, अमेरिकी लेखिका सैंड्रा सिस्नेरोस और आयरिश उपन्यासकार एडना ओ'ब्रायन.

शुक्ल 87 बरस के हैं. छत्तीसगढ़ के रायपुर में रहते हैं. साहित्यिक सुर्खियों से दूर. सफ़ेद चंपा के फूलों वाले अपने घर में.

हमारे संपादक सौरभ द्विवेदी जो कहते हैं, उससे हम एकमत हैं कि विनोद कुमार शुक्ल को कहीं से भी पढ़ा जा सकता है. कहीं तक भी पढ़ा जा सकता. शुक्ल ने अनुपम कविताएं भी लिखीं और कहानियां भीं. अगर आपको उनके लेखन की खिड़की चाहिए ही, तो उनके उपन्यास 'दीवार में एक खिड़की रहती है' से दाख़िल हो जाइए. जादुई यथार्थवाद की अद्भुत मिसाल है ये कहानी. 1999 में छपी इस किताब के लिए शुक्ल को साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला है. यहां से विनोद कुमार शुक्ल के रचना संसार में ढुकिए और 'नौकर की कमीज़', 'पेड़ पर कमरा', 'वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह' और 'सब कुछ होना बचा रहेगा' से समृद्ध होते जाइए.

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अंत में, समकालीन कवि-लेखक व्योमेश शुक्ल से एक पंक्ति उधार लेते हुए -- जीवन कितना कम कितना विनोद कुमार शुक्ल है.

वीडियो: विनोद कुमार शुक्ल की एक कविता 'जो मेरे घर कभी नहीं आएंगे'

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