The Lallantop

अनदेखी: वेब सीरीज़ रिव्यू

लंबे समय बाद आई कुछ उम्दा क्राइम थ्रिलर्स में से एक.

post-main-image
'अनदेखी' वेब सीरीज़ के सबसे मारक दृश्यों में से एक. यहां सिर्फ एक पुलिसवाला नहीं खड़ा. अपने ही डिपार्टमेंट के हाथों मजबूर पुलिसवाला खड़ा है, जिसे एक गुंडा जान से मारने की धमकी दे रहा है.
कोई चीज़ फिक्शन तभी तक होती है, जब तक वो आपके सामने या आपके साथ न घटी हो. ये बात हम कह रहे हैं सोनी लिव पर स्ट्रीम हो रही 10 एपिसोड वाली वेब सीरीज़ 'अनदेखी' को देख चुकने के बाद. बंगाल के सुंदरबन में एक पुलिसवाले की हत्या हो गई है. केस की छानबीन कर रहे डीएसपी घोष को पता चलता है कि इसमें जंगल में रहने वाली दो ट्राइबल लड़कियों का हाथ है. वो उन्हें ढूंढने लगते हैं. डीएसपी साहब की ये इन्वेस्टिगेशन उन्हें सुंदरबन से मनाली लेकर जाती है. मनाली के एक रिज़ॉर्ट में अटवाल और गरेवाल नाम की दो बड़ी पंजाबी फैमिलीज़ के बच्चों की शादी हो रही है. यहां की स्टैग पार्टी में एक लड़की का कत्ल हो जाता है. और वो मर्डर वेडिंग फिल्म बनाने वाली टीम के एक लड़के ऋषि के कैमरे में रिकॉर्ड हो जाता है. अगले दिन रिज़ॉर्ट का माहौल इतना नॉर्मल है, जैसे कल रात क्या हुआ, किसी को याद ही नहीं. ये सब देखकर ऋषि अपनी टीम (दोस्तों) के मना करने के बावजूद पुलिस में चला जाता है. अब घोष को दो कातिलों को पकड़ना है. लेकिन इस प्रोसेस में उनका जो हश्र होता है, वो पुलिस डिपार्टमेंट की कलई खोलकर रख देता है. ये और ऐसी तमाम छोटी मगर मोटी बातें, इस सीरीज़ को वो बनाने में मदद करती हैं, जो ये असल में है. लंबे समय में आई उम्दा क्राइम थ्रिलर.
अनदेखी का पोस्टर.
अनदेखी का पोस्टर.


'अनदेखी' में अधिकतर एक्टर्स या तो बंगाली बैग्राग्राउंड से हैं या नए हैं. हर्ष छाया को छोड़कर. हर्ष ने अटवाल परिवार के मुखिया उर्फ पापाजी का रोल किया है, जो दिनभर शराब के नशे में धुत्त गालियां बकता रहता है. वाजिब वजहों से शुरुआती कुछ एपिसोड के बाद ही उन्हें देखकर चिढ़ होने लगती है. हर्ष ने इस किरदार को काफी रियल और एंटरटेनिंग बनाने की कोशिश भी की है लेकिन वो वन टोन कैरेक्टर बनकर रह जाता है. वो कमोबेश सीरीज़ का सबसे ज़रूरी किरदार है लेकिन उसे सिर्फ पावर और पैसे की सनक में रहने वाले शख्स के तौर पर दिखाया गया है. और शायद यही उस किरदार के कर्मों की सज़ा है. पापाजी ने एक बचपन में एक लड़के के 'सिर पर हाथ' रखा था, रिंकू नाम का वो लड़का अब पूरा हिमाचल अपनी जेब में लेकर घूमता है. ये रोल किया है सूर्य कुमार ने. सूर्य इससे पहले ज़्यादा दिखे नहीं हैं. लेकिन ये कैरेक्टर उनकी पर्सनैलिटी पर सूट करता है. वो अपने पापाजी को बचाने के लिए पुलिस से ही पुलिस की जासूसी करवा रहा है. रिंकू का किरदार अपने परिवार की तरह इस सीरीज़ की भी रीढ़ है.
क्रेज़ी पापाजी के किरदार में हर्ष छाया.
क्रेज़ी पापाजी के किरदार में हर्ष छाया.


फिल्मों के शौकीन बंगाली डीएसपी घोष का किरदार निभाया है दिब्येंदु भट्टाचार्य ने. कभी ओवर-एक्साइटेड न होने वाला जीवट पुलिसवाला, जो इलाके के सबसे पावरफुल आदमी के घर हो रही शादी के बीच अपनी इन्वेस्टिगेशन करता है. उसे रोकने के लिए रिंकू बहुत सारे जुगाड़ लगाता है लेकिन ये आदमी उसका तोड़ निकाल लेता है. एक तरह से ये किरदार सीरीज़ को कॉमिक रिलीफ देता है लेकिन इसकी लाइफ में रिलीफ की भारी कमी है. जिस पुलिस स्टेशन में वो काम कर रहा है, वहां हर आदमी उसके खिलाफ खड़ा है. लेकिन ये चीज़ उसे न परेशान करती है, न ही अपना काम करने से रोक पाती है. घोष और रिंकू की एक पर्सनल टसल चल रही है. रिंकू डीएसपी को 'इंस्पेक्टर' बुलाता है और घोष रिंकू के नाम के बाद एक पॉज़ लेकर 'पाजी' कहता. देखने के बाद ये बात ज़्यादा बेहतर समझ आएगी. बंगाल से भागी ट्राइबल लड़की के रोल में हैं अपेक्षा पोरवाल. 2017 मिस यूनिवर्स इंडिया में सेकंड रनर अप रही थीं. लेकिन कोई एक्टर अपने लिए कैसा किरदार चुनता है, उससे भी उसके बारे में बहुत कुछ पता चलता है. आम तौर पर ब्यूटी क्वींस के बारे में ये धारणा रहती है कि उन्हें एक्टिंग नहीं आती. यहां आपकी वो धारणा बैकसीट पर है. ऋषि नाम के कैमरामैन का रोल किया है अभिषेक चौहान ने. अभिषेक को शुरुआत में जो थोड़ा बहुत काम करने को मिलता है, उसमें वो डीसेंट लगते हैं. लेकिन वो 'अनदेखी' का इकलौता किरदार है, जिसके भीतर थोड़ी इंसानियत बची हुई है. सीरीज़ के आखिर में ये बात और पुख्ता तरीके से सामने आती है.
पापाजी का औरस पुत्र रिंकू पाजी उर्फ राजेंद्र सिंह अटवाल के किरदार में सूर्या सिंह.
पापाजी का औरस पुत्र रिंकू पाजी उर्फ राजेंद्र सिंह अटवाल के किरदार में सूर्या सिंह.


दमन और तेजी की लव स्टोरी, उस भयावह माहौल में ब्रीदर का काम करती है. क्योंकि ये पूरी कहानी ही उन दोनों की शादी के दौरान घटती है. ये कपल अमरीका से सिर्फ शादी करने के लिए इंडिया लौटकर आया है. इनके सामने और इनके साथ इतना कुछ हो जाता है कि इनके बीच चीज़ें बदलने लगती हैं. लेकिन बीतते समय के साथ वो चीज़ें रेपिटेटिव और कंफ्यूज़िंग होती चली जाती हैं. सीरीज़ में दमन का रोल अंकुर राठी ने किया है और तेजी के किरदार में आंचल सिंह नज़र आईं हैं.
तेजी और दमन के किरदार में अंकुर और आंचल.
तेजी और दमन के किरदार में अंकुर और आंचल.


'अनदेखी' में पुलिस इन्वेस्टिगेशन वाला एंगल काफी नया लगता है. हमारी फिल्मों या सीरीज़ के पुलिसवाले, या तो विलन होते हैं या हीरो. यहां डीएसपी घोष अपना काम कर लें, यही बहुत लगता है. पुलिस इन्वेस्टिगेशन को करीब से देखने का मौका नहीं मिलता. क्योंकि इससे पहले कि आप पुलिस की गाड़ी के करीब पहुंचें, गाड़ियां पलट जाती हैं. लेकिन 'अनदेखी' में हो रही चीज़ें देखकर आपको लगता है कि पुलिस अफसरों की लाइफ भी उतनी आसान नहीं है, जितनी बाहर से देखकर लगती है. ऊपर से करप्शन और फेवर्स की अदला-बदली ने हालत और बद्तर कर रखी है.
 डीएसपी घोष के रोल में दिव्येंदू भट्टाचार्य. ये सीरीज़ सिर्फ इनकी बाकमाल परफॉरमेंस के लिए भी देखी जा सकती है.
डीएसपी घोष के रोल में दिव्येंदू भट्टाचार्य. ये सीरीज़ सिर्फ इनकी बाकमाल परफॉरमेंस के लिए भी देखी जा सकती है.


'अनदेखी' में फाइनली अभिषेक के किरदार ऋषि के साथ जो होता है, वो काफी निराशाजनक और मनोबल तोड़ने वाला लगता है. एक दर्शक के तौर पर वो चीज़ बहुत दुखी करती है. अगर हमारी फिल्में सच और सही का साथ देने वालों के साथ भी इतनी रियलिस्टिक हो जाएंगी, तो फिर वो वैसे किरदार लाएंगी कहां से. हमें तो यही बताया जाता रहा है कि फिल्में समाज का आइना होती हैं. और अगर हम इस बारे में और बात करते रहे, तो आपके लिए गेस करना काफी आसान हो जाएगा कि हम क्या बात कर रहे हैं. बहरहाल, दूसरी चीज़ जो इस सीरीज़ का नुकसान करती है, वो है बाद में लाए जाने वाले ढेरों नए कैरेक्टर्स. इन किरदारों में से मुस्कान को छोड़कर कोई भी सीरीज़ के किसी काम नहीं आता.
वीडियो वाली टीम के मेंबर ऋषि के रोल में अभिषेक चौहान.
वीडियो वाली टीम के मेंबर ऋषि के रोल में अभिषेक चौहान.


'अनदेखी' वैसे तो 10 एपिसोड की सीरीज़ है, जिसका हर एपिसोड आधे घंटे से थोड़ा लंबा है. लेकिन इसे खत्म करने में आपको साढ़े 6 घंटे आराम से लगेंगे. लेकिन ये समय खर्च करना आपको खलेगा नहीं. क्योंकि 'अनदेखी' काफी समय के बाद आई बड़ी नीट एंड क्लीन टाइप क्राइम थ्रिलर सीरीज़ है. इस सीरीज़ को देखते हुए बीच-बीच में आपको करिश्मा कपूर वाली 'शक्ति' और प्रकाश झा की 'राजनीति' जैसी फिल्में याद आती हैं. जो कि बेशक इस सीरीज़ के लिए कॉम्प्लिमेंट है. हर एपिसोड के बाद मजबूत क्लिफहैंगर्स इसे शुरू करने के बाद रुकने नहीं देते. इसमें इसका प्रेडिक्टेबल न होना भी एक बड़ा रोल प्ले करता है. ये सीरीज़ पूरी गति से अपने अंजाम की ओर बढ़ती चली जाती है और खत्म होने के साथ दूसरे सीज़न की गुंजाइश छोड़कर जाती है.