हेडिंग चौंकाऊ है. मगर इसके लिए हम नहीं बीजेपी जिम्मेदार है. गुजरात की बीजेपी. जो इसी साल होने वाले चुनावों की तैयार में लग गई हैं. मामला यहां के सरकारी स्कूलों का है. गुजरात के छोटा उदेपुर जिले में पहली क्लास में दाखिल होने वाले बच्चों का स्वागत किया जाता है. जिला शिक्षण अधिकारी ने बताया कि ये बैग्स ई-टेन्डरिंग के जरिए खरीदे गए हैं.यहां पहली क्लास के बच्चों को स्कूल बैग फ्री में दिए जाते हैं. सरकारी सामान है तो स्किटर्स भी लगे थे. जब एक-एक कर ये स्टिकर्स हटने लगे तो दिखा यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का फोटो.

गुजरात सरकार के स्किटर वाला बैग जो बच्चों में बांटे गए
गुजरात सरकार के स्टिकर के नीचे उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की तस्वीरें और स्लोगन देखने मिले. गुजरात सरकार ने शाला प्रवेशोत्स्व कार्यक्रम के दौरान बच्चों को दिए गए स्कूल बैग बांटे गए. इन पर लगे स्टिकर्स के नीचे अखिलेश सरकार की प्रिंटेड तस्वीरें देखने को मिलीं. साथ ही ये भी लिखा था- खूब पढ़ो, खूब लिखो. इस तरह की शिकायतों के बाद जिला शिक्षण अधिकारी ने जाँच के आदेश दिए हैं. ये देख सब चौंक गए. जब मामला आगे उछला तो सफाई आई कि ये बैग्स ई-टेंडरिंग के जरिए खरीदे गए हैं.

स्टिकर हटाया तो अखिलेश यादव का फोटो दिखा
इससे पहले भी गुजरात में पार्टी विस्तार के काम में लगे कार्यकर्ताओं को संदेश भेज रही है स्टेट बीजेपी का एक और अजीबोगरीब बाक्या सामने आया है. ये एक रेकॉर्ड किया हुआ मैसेज है. जैसे ही उधर से कॉल रिसीव होती है, आवाज आती है प्रदेश अध्यक्ष जीतू वधानी की. मगर एक पेच है. जब किसी को ये कॉल जाती है, तो स्क्रीन पर नाम नजर आता है अरविंद केजरीवाल का.
दिल्ली के मुख्यमंत्री. आप के सुप्रीमो. वो भला बीजेपी कार्यकर्ताओं को क्यों फोन करेंगे. और जो करेंगे भी तो गुजरात चुनाव में कमल दल की वापसी की अपील क्यों करेंगे.
ये सारी गफलत हुई मुंबई की उस एजेंसी के चलते, जो बीजेपी के लिए ये काम कर रही है. पहले यही कंपनी आम आदमी पार्टी के लिए ये काम करती थी. उसके लिए एक नंबर तय हुआ था. 022-79497000. ये नंबर अरविंद केजरीवाल के नाम से सेव कर लिया गया. ट्रू कॉलर पर. ट्रू कॉलर एक ऐप जो कॉल आते ही बता देती है कि किसका फोन है. ये किसका का जवाब फोन यूजर्स के डाटा बेस में हुई एंट्री के आधार पर होता है.

अब यही नंबर बीजेपी के लिए यूज हो रहा है. उसके 48 हजार विस्तारकों तक पहुंचने के लिए. मगर पुराने डेटा के चलते स्क्रीन पर केजरीवाल नजर आ रहे हैं. जैसा कि आपको ऊपर की तस्वीर में दिखा.
बीजेपी के लिए ये दूसरा विधानसभा चुनाव है, जब नरेंद्र मोदी परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से गुजरात में डे टु डे बेस पर सक्रिय नहीं हैं. इससे पहले ये 1998 में हुआ था, जिसकी अपनी ही एक कहानी है.

आडवाणी को सुनते हुए नरेंद्र मोदी, केशुभाई पटेल और शंकर सिंह वाघेला Source- @IndiaHistorypic Twitter
अस्सी के दशक में मोदी केशुभाई और शंकर सिंह वाघेला के बैनर तले संगठन देखते थे. 1995 के चुनाव में तो उनकी गिनती ही केशुभाई और शंकर सिंह के बाद होती थी. प्रेक्षक कहते थे कि केशुभाई का चेहरा, शंकर सिंह का एग्रेसन और नरेंद्र भाई की सांगठनिक क्षमता ने भाजपा को पहली बार अपने दम राज्य में सत्ता दिलाई. मगर इसके कुछ ही महीनों के बाद विद्रोह हो गया. शंकर सिंह वाघेला ने अपने हिस्से के विधायक लिए और खजुराहो चले गए. उस वक्त के मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की मेहमानी छानने.
अटल ने दखल दिया तो वाघेला माने. मगर दो शर्तों के साथ. केशुभाई मुख्यमंत्री पद छोड़ें और नरेंद्र भाई गुजरात छोड़ें. पार्टी ने दोनों बातें मानीं. नरेंद्र मोदी को केंद्रीय संगठन में महासचिव की जिम्मेदारी मिल गई. मगर उनका मन गुजरात में था. वह लगातार वापसी की कोशिशें करते रहे. 1998 तक आते आते केशुभाई भी मोदी विरोधी हो चुके थे. इसलिए इस साल हुए चुनावों में उन्हें पहली बार गुजरात से दूर रहना पड़ा. वह गुजरात से दूर थे, मगर अमित शाह सरीखे उनके समर्थक लगातार वहां सक्रिय थे. उधर मोदी दिल्ली में अपनी फील्डिंग सेट करने में लगे थे. इसका नतीजा 2001 में मिला. केशुभाई को भूकंप के बाद की प्रशासनिक नाकामी और पहले स्थानीय चुनाव और फिर उपचुनाव में हार के चलते पद छोड़ना पड़ा. उनकी जगह आए नरेंद्र मोदी. आए और छाए.

विजय रूपाणी और आनंदीबेन. Source- PTI
अब है साल 2017. मोदी तीन बरस पहले गुजरात छोड़ चुके हैं. देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए. उनके बाद आनंदी बेन आईं. उनकी पहली पसंद. सख्त प्रशासक. मगर न तो संगठन पर मजबूत पकड़ और न ही लोगों के बीच पॉपुलर इमेज. तिस पर पटेल आंदोलन. उन्हें जाना पड़ा. और अमित शाह सीएम की कुर्सी पर ले आए अपने पसंदीदा विजय रूपाणी को. जिन्हें बीजेपी ने इस चुनाव में पार्टी का सीएम फेस डिक्लेयर कर दिया है.
बीजेपी ये चुनाव भी मोदी के नाम पर लड़ेगी. खुद मोदी कुछ रैलियों तक ही महदूद रहेंगे. उनके राइट हैंड अमित शाह का कहना है कि अब तक का सबसे बड़ा बहुमत मिलेगा. उधर कांग्रेस लगातार पांच चुनावों में हार के बाद वापसी की राह देख रही है. उसका घर भी बंटा है. हार्दिक पटेल कभी जेडीयू के पाले में दिखते हैं, तो कभी शिवसेना से गलबहियां करते हैं. और आम आदमी पार्टी. अभी तय नहीं कर पाई है कि गुजरात विधानसभा के लिए ताल ठोंकनी भी है या नहीं.
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