अटलांटिक महासागर में हजारों फीट की गहराई पर पनडुब्बी टाइटन के साथ हुए हादसे की असल वजह क्या थी, ये तो एक व्यापक जांच के बाद ही मालूम चलेगा. अनेक अनुमान लगाए गए हैं, लेकिन एक थ्योरी पर सबसे ज़्यादा ज़ोर है - इंप्लोजन. माने एक उलटा विस्फोट, जो अंदर की तरफ हुआ. समंदर के पानी के भारी-भरकम दबाव ने जैसे पनडुब्बी को मसल दिया. इसके बाद उसमें मौजूद हवा इस तेज़ी से कंप्रेस हुई कि आग का गोला बन गया. अलग अलग लगने वाली ये घटनाएं इतनी तेज़ी से हुईं कि पल-भर में पांचों लोगों की मौत हो गई. टाइटन के साथ हुए हादसे के बाद टाइटैनिक फिल्म के डायरेक्टर जेम्स कैमरन ने दावा किया है कि उन्होंने पहले ही ये आशंका जताई थी कि टाइटन इंप्लोज़न का शिकार हुई है.
क्या टाइटन के पायलट ने वही गलती की, जो टाइटैनिक के कैप्टन ने की थी?
टाइटैनिक पर फिल्म बनाने वाले जेम्स कैमरन ने टाइटन हादसे पर जो खुलासे किए हैं, वो परेशान करने वाले हैं.

कैमरन की 'ट्राइटन सबमरींस' नाम की कंपनी में हिस्सेदारी है. ये कंपनी रिसर्च और टूरिजम के लिए पनडुब्बियां बनाती है. कैमरन खुद भी कई बार टाइटैनिक का मलबा देखने जा चुके हैं. कैमरन का कहना है कि उन्होंने आशंका जताई थी कि टाइटन का पानी के ऊपर अपनी सपोर्ट शिप से जब संपर्क टूटा, उसके कुछ ही देर बाद इसमें इंप्लोजन हो गया था. कैमरन का कहना है कि उनका ये निष्कर्ष उनके सोर्सेज़ से मिली जानकारी के आधार पर है.
न्यूज़ एजेंसी AFP के मुताबिक, ABC न्यूज़ से बात करते हुए कैमरन कहते हैं,
"हमें एक घंटे के अंदर पक्की जानकारी मिल गई थी कि जब सबमरीन (टाइटन)से संपर्क टूटा तब उसमें एक जोरदार धमाका हुआ था. हाइड्रोफ़ोन पर तेज धमाका हुआ. (हाइड्रोफ़ोन समुद्र के अंदर की आवाजें रिकॉर्ड करने वाली मशीन होती है) ट्रांसपॉन्डर (रेडियो सिग्नल भेजने वाली डिवाइस) को नुकसान हुआ और संपर्क टूट गया. मुझे पता है क्या हुआ था. सबमरीन में इंप्लोजन हुआ था."
किसी पनडुब्बी में जब ये उलटा धमाका (इंप्लोज़न) होता है, तब पानी सारी दिशाओं से तुरंत अंदर आता है. इससे पनडुब्बी के भीतर मौजूद गैसें भारी दबाव में गर्म हो जाती हैं. और एक फ्लैश फायर पैदा होती है - माने आग का एक ऐसा धमाका, जो पलभर में ओझल हो जाता है. ऐसे मामलों में भीतर कोई भी चीज़ साबूत बचे, इसकी संभावना नगण्य हो जाती है. अतः टाइटन के मृतकों के अवशेष खोजना टेढ़ी खीर बन सकती है. संभव है कि वो कभी न मिलें.
टाइटन पनडुब्बी ओशनगेट नाम की कंपनी ने बनाई थी. जेम्स कैमरन कहते हैं कि उन्हें मिश्रित कार्बन फाइबर और टाइटेनियम के हल (स्ट्रक्चर) वाली पनडुब्बी को लेकर पहले से संदेह था. कैमरन ने कहा,
"मेरे हिसाब से ये एक डरावना आइडिया था. काश उस वक़्त मैंने कुछ कहा होता, लेकिन मैंने मान लिया था कि कोई मुझसे भी ज्यादा महारत रखता है. आप जानते हैं, मैंने उस तकनीक के साथ कभी प्रयोग नहीं किया, लेकिन ये तो पहली नजर में ही खराब लग रहा था."
बीबीसी से बात करते हुए कैमरन ने कहा,
‘’ओशनगेट ने टाइटन को कभी सर्टीफाई नहीं करवाया. क्योंकि वो जानते थे कि उन्हें (सुरक्षा) सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा. मैं तो कभी उस पनडुब्बी में नहीं बैठता.''
कैमरन ने टाइटैनिक के डूबने और टाइटन के साथ हुए हादसे को एक जैसा बताया है. उन्होंने कहा कि दोनों ही मामलों में नेतृत्व कर रहे लोगों ने चेतावनियों को नजरंदाज किया. जिससे लोगों की जान खतरे में पड़ी. टाइटन पनडुब्बी की सेफ्टी को लेकर पहले भी कुछ खुलासे हुए थे. यहां पढ़ सकते हैं.
कैमरन कहते हैं,
"मुझे आश्चर्य है कि दोनों ही घटनाओं में समानता है. टाइटैनिक के कप्तान को भी बार-बार आगाह किया गया था कि जहाज के आगे बर्फ है. फिर भी उसने जहाज को तेज स्पीड से आगे बढ़ाना जारी रखा. नतीजतन कई लोग मारे गए. पूरी दुनिया में ऐसे मिशन होते रहे हैं, लेकिन ठीक उसी जगह पर वैसी ही त्रासदी हुई है, क्योंकि चेतावनियों पर ध्यान नहीं दिया गया."
बता दें कि टाइटैनिक का मलबा अटलांटिक सागर में लगभग चार हज़ार मीटर नीचे है. वैज्ञानिकों और एक्सप्लोरर्स ने रिसर्च के मकसद से कई बार इस मलबे का मुआयना किया. 2010 के दशक में मलबे तक पहुंचने और मलबे को देखने की रेस सी शुरू हो गई. कुछ कंपनियों ने टाइटैनिक टूरिज्म की शुरुआत की. ओशनगेट उन्हीं में से एक है. टाइटन में ओशनगेट कंपनी के फाउंडर और CEO स्टॉकटन रश और उनके अलावा 4 और लोग सवार थे. स्टॉकटन रश, पनडुब्बी के पायलट भी थे. माने वो ही इसे चला रहे थे. हादसे में इन सभी की मौत हो गई.
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