The Lallantop

त्रिपुरा महीनों तक देश से कटा रहा, आपको घंटा फर्क पड़ा?

वेस्ट इंडिया में बुलेट ट्रेन चलने वाली है. वहीं ईस्ट इंडिया एक अदद रास्ते को तरस रहा है.

Advertisement
post-main-image
फोटो - thelallantop
'हम हिन्दुस्तानी' इंडोनेशिया के 21 किलोमीटर लम्बे ट्रैफिक जाम को लेकर बड़े चकित थे. पर इस बात पर ध्यान नहीं था कि अपने देश का एक राज्य तीन महीनों से भारी बारिश और बाढ़ के चलते भूख-प्यास से बेहाल था. ये भी याद नहीं था कि इस राज्य को हिंदुस्तान से जोड़ने के लिए सिर्फ एक रोड और एक रेलवे लाइन है. मतलब रोड और रेलवे लाइन काट दो, राज्य हिंदुस्तान से बाहर! ये राज्य है त्रिपुरा. मैप देखिये: tripura 1
वहां मई में ही साइक्लोन 'रोआनू' के चलते प्री-मॉनसून बारिश ज्यादा हो गई. बाढ़ आ गई. पिछले तीन दिन से बारिश नहीं हुई तो थोड़ी राहत हुई. कुछ ट्रक किसी तरह सामान ले के आये. तीन मालगाड़ियां भी पहुंचीं.
त्रिपुरा-बांग्लादेश के बॉर्डर के पास 'सबरूम' से असम के 'करीमगंज' को जोड़नेवाला NH-8 एकमात्र रास्ता है त्रिपुरा से बाकी इंडिया आने का. उसी के पैरेलल एक रेलवे लाइन है. मतलब स्थिति ऐसी है कि 2014-15 में जब रेलवे लाइन के ब्रॉड-गेज कन्वर्जन के लिए मेगा ब्लाक लिया गया था, तब 'इंडिया' से खाने-पीने का सामान बांग्लादेश के नीचे के समुद्री रास्ते से भेजना पड़ा था. tripura rail & road map त्रिपुरा में हर चीज की खेती नहीं हो सकती. वहां हर महीने 30,000 टन खाने-पीने का सामान चाहिए. 2700 टन चीनी, 8500 किलोलीटर पेट्रोल और डीजल, 3276 किलोलीटर केरोसिन भी हर महीने चाहिए. ये सब मेघालय और आसाम के पहाड़ी रास्तों से हो के जाता है. मॉनसून में ये रास्ते बंद हो जाते हैं. तो पूरा त्रिपुरा केंद्र सरकार के रहमो-करम पर आ जाता है. अभी किसी तरह 2600 टन चावल और 1800 टन चीनी और नमक पहुंच पाया है. NH-8 तो बहुत दिन से बर्बाद पड़ा है. लेकिन बारिश के चलते 'लोवेर्पोया' और 'चुराईबारी' के बीच 5 किलोमीटर का रास्ता एकदम ही झंड हो गया है. दलदल की स्थिति हो गई है. हज़ारों ट्रक इसके चलते हाइवे पर अटके पड़े हैं. केंद्र से इसकी मरम्मत के लिए 28 करोड़ रुपये मिले हैं. पर काम बारिश के बाद अक्टूबर से ही शुरू हो पायेगा. पूर्व प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने 'लुक ईस्ट' की पॉलिसी चलाई. फिर प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने इस पॉलिसी को 'ऐक्ट ईस्ट' में बदल दिया. पर लगता है कि सरकारी तंत्र अभी 'लुक ईस्ट' वाले मोड में ही चल रहा है. रास्ते की समस्या है तो इसका कुछ उपाय करना पड़ेगा. वेस्ट इंडिया में बुलेट ट्रेन चलने वाली है. वहीं ईस्ट इंडिया एक अदद रास्ते के लिए तरस रहा है. 'मेन इंडिया' में 30 मिनट में पिज़्ज़ा नहीं पहुंचा तो पैसे वापस हो जाते हैं और त्रिपुरा में चावल के लिए इन्तजार करना पड़ रहा है. इसी में कोई विरोध करेगा तो एंटी-नेशनल हो जायेगा. अभी तो बस खाने-पीने की ही बात हो रही है. सोचिये, प्रेग्नेंट औरतों, दिल के मरीजों का क्या हाल होगा? कोई इमरजेंसी हुई तो कहां जाएंगे?

Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement