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कोरोना में जान गंवाने वाले डॉक्टरों पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार और बीमा कंपनियों की जिम्मेदारी है कि कोविड-19 के दौरान सेवा में जान गंवाने वाले डॉक्टरों के परिवारों को न्याय और मुआवज़ा मिले.

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कोविड के वक़्त एक हॉस्पिटल का दृश्य

सुप्रीम कोर्ट ने 28 अक्टूबर 2025 को उस केस में फैसला सुरक्षित रख लिया जिसमें बात थी कोरोना टाइम पर जान गंवाने वाले डॉक्टरों की बीमा योजना की. यह केस जस्टिस पी.एस. नारसिम्हा और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच सुन रही थी. कोर्ट ने साफ कहा कि सरकार की जिम्मेदारी है कि वो उन डॉक्टरों का ख्याल रखे जिन्होंने महामारी के वक्त लोगों की जान बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगा दी.

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सुनवाई के दौरान जस्टिस नारसिम्हा ने कहा कि अगर हम अपने डॉक्टरों की फिक्र नहीं करेंगे तो समाज हमें माफ नहीं करेगा. यह टिप्पणी अदालत ने उस समय की जब सरकार की तरफ से पेश हुई एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि इंश्योरेंस की कई तकनीकी शर्तें हैं जिनकी वजह से कई मामलों में बीमा क्लेम को मंजूरी नहीं दी जा सकी.

इस पर कोर्ट ने कहा कि इंश्योरेंस कंपनियों को सही दावों का भुगतान करना ही चाहिए. जस्टिस नारसिम्हा ने यह भी कहा कि अगर कोई डॉक्टर कोरोना के इलाज में लगा था और उसकी मौत कोरोना से हुई, तो इंश्योरेंस कंपनी को पैसा देना पड़ेगा. सिर्फ इसलिए कि वह सरकारी डॉक्टर नहीं था, यह मान लेना गलत है कि वो बस पैसा कमा रहा था. अदालत ने कहा कि ऐसे डॉक्टरों ने भी समाज के लिए उतनी ही बड़ी कुर्बानी दी है जितनी सरकारी सेवा में लगे डॉक्टरों ने दी.

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कोर्ट ने यह भी कहा कि वह हर केस पर अलग-अलग फैसला नहीं देगी, बल्कि एक ऐसा नियम तय करेगी जिससे आगे आने वाले ऐसे मामलों के लिए गाइडलाइन बनाई जा सके. जस्टिस नारसिम्हा ने कहा कि अदालत अब एक प्रिंसिपल तय करेगी ताकि भविष्य में किसी डॉक्टर के परिवार को अपने हक के लिए कोर्ट का दरवाज़ा बार-बार न खटखटाना पड़े.

कोर्ट ने सरकार से यह भी कहा कि प्रधानमंत्री बीमा योजना के अलावा बाकी योजनाओं का डेटा भी कोर्ट को दिया जाए, ताकि एक साफ और एकसमान गाइडलाइन तैयार की जा सके. अदालत ने यह भी जोड़ा कि मुआवज़ा तभी मिलेगा जब यह साबित हो जाए कि डॉक्टर सच में मरीजों का इलाज कर रहा था और उसकी मौत कोरोना से हुई.

ये मामला सिर्फ एक पॉलिसी का नहीं है, बल्कि उन हज़ारों डॉक्टरों की याद का भी है जिन्होंने अपने फर्ज़ के लिए अपनी जान तक दे दी. अदालत की यह बात हर उस डॉक्टर के परिवार के लिए उम्मीद की किरण है जो अब तक अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहा है.

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