अब अगर कांग्रिगेशन ये मानता है कि हां भई, जेम्स ने सच में बहुत धार्मिक, निस्वार्थ जीवन जिया, तो वो ये घोषणा कर सकते हैं कि वो कैंडिडेट को स्वीकृति देते हैं. इसका मतलब ये नहीं है कि वो स्वर्ग में हैं. मतलब इसका ये है कि धरती पर रहते हुए भी उन्होंने भगवान के कामों को आगे बढ़ाया. इसके बाद जेम्स जो हैं, वो
पूजित कहलाने लगेंगे. यानी वेनेरेबल (venerable).
ब्लेस्ड यानी 'धन्य' हो जाना
अब ये तो हो गया. ये कैसे साबित किया जाए कि जेम्स जो हैं, वो स्वर्ग में हैं. क्योंकि सेंट कहलाने के लिए ये बेहद ज़रूरी है कि साबित हो कि व्यक्ति स्वर्ग में है. तो ये देखा जाता है कि मौत के बाद उस व्यक्ति के नाम पर कोई चमत्कार हुआ हो. कम से कम दो चमत्कार ज़रूरी हैं. अब कैसा चमत्कार? किसी का अचानक ठीक हो जाना. ये ठीक होना बिल्कुल झटपट होना चाहिए, परमानेंट होना चाहिए, पूरी तरह से होना चाहिए, और इसका कोई मेडिकल एक्सप्लेनेशन नहीं होना चाहिए. पहले डॉक्टर्स चेक करेंगे, फिर धर्म के ज्ञानी इसकी तस्दीक करेंगे, और आखिर में पोप अपनी स्वीकृति देंगे. इसके बाद जेम्स को
ब्लेस्ड (blessed- धन्य) की पदवी मिल जाएगी. इसका मतलब ये है कि कैननाइजेशन से पहले जो
बीटिफिकेशन (beatification) की प्रक्रिया थी वो पूरी हो गई. ब्लेस्ड होने की पूरी प्रक्रिया को ही बीटिफिकेशन कहते हैं. इसके बाद जेम्स को एक सीमित जगह पर या क्षेत्र में पूजा जा सकता है. लेकिन सेंट अभी भी नहीं कहा जाएगा. सेंट की पूजा हर जगह हो जाती है. उसके लिए अभी एक स्टेप बाकी है. पांचवां.

पोप फ्रांसिस इस वक़्त पदवी पर आसीन हैं. संत बनने की प्रक्रिया में कई बार सालों लग जाते हैं. दशक, और कई बार सदियां भी. तस्वीर: विकिमीडिया
एक और चमत्कार- संत बनने की तरफ आखिरी कदम
पांचवां जो स्टेप है, वो है एक और चमत्कार का होना. इस चमत्कार की जांच-पड़ताल भी वैसे ही होगी जैसे पिछले वाले की हुई थी. जब ये भी पूरा हो जाए, तो पोप जेम्स को सेंट घोषित कर देंगे. इसके बाद कैननाइजेशन पूरा होता है. अगर जेम्स धर्म के लिए शहीद हुए होते तो, एक ही चमत्कार में उन्हें सेंट घोषित कर दिया जाता. ये भी एक अपवाद है. अभी तक कैथलिक चर्च ने कम से कम 3000 लोगों को संत की उपाधि दी है.ये कहते हैं कि पोप किसी को संत नहीं बना सकते, वो केवल इस बात को सम्मान देते हैं जो भगवान की तरफ से पहले ही स्वीकृत हो चुकी है.
कब से शुरू हुई ये कहानी?
साल 1234 तक सेंट की उपाधि देने की कोई तयशुदा प्रक्रिया नहीं थी. धर्म युद्ध में लड़ते हुए शहीद होने वाले, और दैवीय माने जाने वाले लोगों की मृत्यु के बाद चर्च उन्हें संत की उपाधि दे दिया करता था. लेकिन इसमें दिक्कत ये थी कि कई बार किवदंती के किरदारों को भी ये उपाधि मिल जाती थी.
एक बार स्वीडन में एक भिक्षु ने शराब पीकर किसी से झगड़ा किया और उसमें उसकी मौत हो गई. वहां के लोकल चर्च ने उसे सेंट की उपाधि दे दी. कि धार्मिक व्यक्ति था, मर गया. धर्म के लिए मरा होगा. इस तरह के कुछ किस्से हुए. तब नियम कड़े हुए.
लेकिन किस तरह के चमत्कार गिनती में आते हैं, सबसे बड़ा झोल यहीं पर है.
बीसवीं सदी के एकदम शुरुआत तक सेंट कहलाने के लिए ये भी टेस्ट किया जाता था कि मौत के बाद कब्र में शरीर सड़ता है या नहीं. इसके लिए दफनाने के सालों बाद शव खोदकर निकाला जाता और देखा जाता था. उसे
‘इनकरप्टिबल’ का तमगा दिया जाता था अगर शरीर सड़ा नहीं होता था तो. कुछ उदाहरण जो अक्सर दिए जाते हैं वो हैं:
- सेंट कैथरीन ऑफ बोलोना.
- सेंट सिल्वान ऑफ क्रोएशिया
- सेंट बर्नार्डेट (इनका शरीर तीन बार खोद कर निकाला गया, तब भी ये डीकम्पोज हुआ नहीं पाया गया.)

सेंट बर्नार्डेट का शरीर जो अभी भी डिस्प्ले पर रखा है. लोग कहते हैं इनके चेहरे और हाथों पर मोम से काम किया गया है, लेकिन फिर भी उस हिसाब से इनका शरीर अभी तक सड़ -गल नहीं गया है.
चमत्कारों की बात की हमने. इन चमत्कारों में ये देखा जाता था कि सेंट के नाम पर किसी की बीमारी अच्छी हुई या नहीं. जैसे:
- मदर टेरेसा के नाम पर भी चमत्कार हुए, ऐसा कहा गया. 1997 में उनके गुज़रने के बाद दो साल में ही उनके सेंटहुड के लिए गुज़ारिश शुरू हो गई थी. चमत्कारों में शामिल उदाहरण थे: अमेरिका में रहने वाली एक फ्रेंच औरत की एक कार एक्सीडेंट में कुछ पसलियां टूट गईं. कथित तौर पर उसके घाव इसलिए भर गए क्योंकि उसने एक मदर टेरेसा का मेडालियन पहना हुआ था. एक दूसरा चमत्कार तब रिपोर्ट किया गया जब मदर टेरेसा एक फिलिस्तीनी लड़की के सपने में आईं, और उससे कहा कि उसका कैंसर ठीक हो गया है.
- एक थीं एडिथ स्टाइन. उनका नाम हुआ सेंट टेरेसिया बेनेडिक्टा. 1997 में उन्हें सेंट की उपाधि दी गई. वेटिकन ने इस बात की कथित तौर पर तस्दीक की कि चमत्कार हुआ है . एक छोटी सी लड़की जिसने घातक मात्रा से सात गुना मात्रा में टैलेनोल पी लिया था, वो अचानक ठीक हो गई. उस लड़की के परिवार ने सिस्टर टेरेसिया से मदद की प्रार्थना की थी, ऐसा कहा गया.
आज भी कई ऐसे वीडियो सामने आते हैं जहां पर भगवान के नाम पर चमत्कार की बात कहकर लोगों को बेवकूफ बनाने की कोशिश की जाती है. किसी बीमारी का नाम लेकर उन्हें अशक्त या विकलांग बताया जाता है. फिर उसके बाद भगवान के नाम पर उन्हें ठीक करने की कोशिश दिखाई जाती है. और वो चुटकियों में ठीक भी हो जाते हैं.
आज के समय में वेरिफिकेशन के लिए हमारे पास सौ तरीके हैं. सवाल उठाने के लिए हजार स्रोत हैं, जवाब ढूंढने के के लिए पूरा इंटरनेट है. लेकिन लोगों की भावनाओं का फायदा उठाकर उन्हें बेवकूफ बनाने वालों की कोई कमी नहीं है. संतों का इतिहास बहुत पुराना रहा है. अधिकतर उनमें से ऐसे रहे जिन्होंने अपने जीवन में अच्छे काम किए. लोगों के लिए अपने स्वार्थ को छोड़ दिया. अपनी कमियों से पार पाया. दूसरों को राह दिखाई. चाहे वो हमारे अपने देश की बात हो, या बाहर की. लेकिन चमत्कारों की बात करके एक बहुत बड़ा हिस्सा जो है आबादी का, वो भटका दिया जाता है. और धर्म की बातों में इंसानियत ढूंढने के बजाय लोग उसमें दैवीयता ढूंढने लगते हैं. जो चंद लोगों के लिए फायदे का सौदा साबित होता है.
सिर्फ चंद लोगों के लिए.
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