शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट (Shah Bano) के फैसले के बाद राजीव गांधी सरकार ने एक कानून बनाया था. हम यहां ‘द मुस्लिम विमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डाइवोर्स) एक्ट, 1986’ की बात कर रहे हैं. तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के गुजारे भत्ते से जुड़ा बिल. जिसके पास होने के बाद राजीव गांधी सरकार पर मुस्लिम महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित करने और ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ का आरोप लगा. इस बिल पर सोनिया गांधी ने राजीव गांधी से आपत्ति जताई थी. बिल पर आपत्ति जताते हुए सोनिया गांधी ने तब राजीव गांधी से क्या कहा था? इससे जुड़े एक किस्से का जिक्र वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने अपनी नई किताब ‘How Prime Ministers Decide’ में किया है.
शाह बानो केस में राजीव को SC के फैसले के खिलाफ जाने से क्यों रोकना चाहती थीं सोनिया?
वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी की किताब उन तमाम बातों का खुलासा करती है, जिसके कारण राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम विमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डाइवोर्स) एक्ट लाने का फैसला किया.

पहले आपको शाह बानो वाला मामला याद दिला देते हैं. इंदौर की शाह बानो ने अपने पति से गुजारा भत्ता पाने के लिए 1978 में कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. निचली अदालत ने शाह बानो को गुजारा भत्ता दिए जाने का फैसला सुनाया, लेकिन इसमें तय की गई रकम काफी नहीं थी. शाह बानो ने पर्याप्त गुजारा भत्ता पाने के लिए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में अपील की.
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 1980 में फैसला सुनाते हुए गुजारे भत्ते की रकम बढ़ा दी. लेकिन हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ शाह बानो के पति ने मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. सुप्रीम कोर्ट ने भी 1985 में शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया. इसके साथ ही कोर्ट ने जजमेंट में धर्म के नाम पर औरतों के साथ किए जाने वाले अत्याचारों पर कठोर टिप्पणी की थी. सरकार को समान नागरिक संहिता बनाने का सुझाव दिया था. मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधार किए जाने की भी बात कही थी.
इसी के चलते मामले ने तूल पकड़ लिया. मुस्लिम उलेमाओं को लगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला उनके धर्म पर हमला है. जगह-जगह प्रदर्शन हुए. फैसले को बदलने के लिए मांग होने लगी.
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राजीव गांधी सरकार नया कानून ले आईइसका राजीव गांधी सरकार पर दबाव पड़ा और सरकार द मुस्लिम विमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डाइवोर्स) एक्ट, 1986 ले आई. इसमें तलाकशुदा मुस्लिम महिला के लिए इद्दत के तीन महीने बाद शौहर की गुजारा भत्ता देने की जिम्मेदारी खत्म होने वाली बात थी. ये बात भी थी कि अगर इद्दत की मियाद के बाद तलाकशुदा औरतें अपना खर्चा नहीं उठा पाएं, तो उनकी जिम्मेदारी उनके किसी रिश्तेदार पर हो सकती है. वो भी ना हो तो स्थानीय वक्फ बोर्ड पर.
नीरजा चौधरी की किताब उन तमाम डिटेल्स का खुलासा करती है, जिसके कारण राजीव गांधी सरकार ने इस बिल को पेश करने का फैसला लिया. ये भी कि इस बिल पर सोनिया गांधी ने राजीव गांधी से क्या कहा था.
सोनिया गांधी ने क्या सुझाव दिया था?किताब में दिवंगत NCP नेता डी. पी. त्रिपाठी के हवाले से बताया गया है कि सोनिया गांधी ने इस बिल पर आपत्ति जताई थी. डी. पी. त्रिपाठी राजीव गांधी के करीबी लोगों में शामिल थे. उनके मुताबिक सोनिया गांधी ने बिल पर राजीव गांधी से कहा था,
"राजीव, अगर आप इस मुस्लिम महिला बिल के बारे में मुझे विश्वास में नहीं ले सकते हैं, तो देश को कैसे लेंगे?''
इस किताब में बताया गया है कि डी. पी. त्रिपाठी की मौजूदगी में सोनिया गांधी ने राजीव गांधी से कहा था,
''आपको (शाह बानो केस में) सुप्रीम कोर्ट के फैसले का साथ देना चाहिए.''
हालांकि, 5 मई, 1986 को संसद में द मुस्लिम विमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डाइवोर्स) एक्ट, 1986 पास हुआ था. इस कानून की समाज के कई वर्गों ने कड़ी आलोचना की थी. विपक्ष ने इसे कांग्रेस की तरफ से अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति "तुष्टिकरण" का कदम बताया था. वहीं इसके बाद आने वाले सालों में सुप्रीम कोर्ट ने कई केसों में इसी एक्ट की व्याख्या करते हुए कहा था कि मुस्लिम महिलाओं को इद्दत के बाद भी गुजारे भत्ते का अधिकार है.
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