इसके बाद पता चला कि उसने जिस आदमी पर गोली चलाई है, उसका नाम संतोष झा है. संतोष झा उत्तरी बिहार का सबसे बड़ा गैंगेस्टर था, जिसकी 28 अगस्त को सीतामढ़ी के सीजेएम कोर्ट में पेशी थी. पुलिस के 11 जवान संतोष झा को कोर्ट में पेश करने के लिए लेकर गए थे. वहां सीजेएम कोर्ट में जज के सामने पेशी के बाद संतोष झा ने पेशी वॉरंट पर सिग्नेचर किए और उसके बाद पुलिस के जवान उसे कोर्ट रूम से लेकर बाहर निकले. अभी पुलिस के जवान संतोष को कोर्ट रूम से बाहर लेकर निकले ही थे कि ताबड़तोड़ फायरिंग होने लगी थी. इतनी फायरिंग कि पुलिस के 11 जवानों को फायरिंग करने का मौका भी नहीं मिला. और जब फायरिंग रुकी, तो संतोष झा की मौत हो चुकी थी, जबकि सीजेएम कोर्ट में काम करने वाले संतोष कुमार सिंह गोली लगने से घायल हो गए.
संतोष झा की हत्या के बाद एक लड़का फरार हो गया था, जबकि दूसरे लड़के को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस के मुताबिक भागे हुए लड़के का नाम आर्यन था, जबकि पकड़े गए लड़के का नाम विकास झा था. विकास के हाथ में भी हथियार था. संतोष को गोली लगने के बाद भीड़ में शामिल विकास ने अपना हथियार फेंक दिया था और भीड़ में शामिल होकर बचने की कोशिश की थी, लेकिन पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद सीतामढ़ी के एसपी विकास वर्मन ने लापरवाही के आरोप में 25 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया.
लेकिन ये संतोष झा कौन था, जिसे कोर्ट में पेश करने के लिए पुलिस के 11 जवानों को लगाना पड़ा था. आखिर वो कौन था, जिसकी हत्या के बाद पुलिस के 25 लोगों को सस्पेंड कर दिया गया. इसकी कहानी जानने के लिए करीब 30 साल पीछे जाना पड़ेगा.

कोर्ट में पेशी के लिए जाता संतोष झा.
पिता की पिटाई हुई तो फैक्ट्री वर्कर से बन गया नक्सली
उत्तरी बिहार में एक जिला है शिवहर. संतोष झा इसी शिवहर के पुरनहिया इलाके के दोस्तिया गांव का रहने वाला था. पिता चंद्रशेखर झा ड्राइवर थे, जो गांव के ही दबंग जमींदार परिवार से ताल्लुक रखने वाले नवल किशोर राय की जीप चलाते थे. तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े संतोष पर घर चलाने की जिम्मेदारी थी. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने की वजह से संतोष हरियाण में एक फैक्ट्री में काम करने लगा. लेकिन इसी दौरान नवल किशोर राय की संतोष झा के पिता चंद्रशेखर से अनबन हो गई और नवल किशोर राय ने चंद्रशेखर झा की पिटाई कर दी. इससे नाराज होकर संतोष झा घर लौट आया और उसने माओवाद का झंडा थाम लिया. उस वक्त इलाके में गौरी शंकर झा नाम के नक्सली का सिक्का चलता था. गौरी शंकर उस वक्त एरिया कमांडर था और उसपर हत्या और बैंक लूट के कई मामले दर्ज थे. संतोष झा भी गौरी शंकर झा की टीम में शामिल हो गया. इलाके में माओवाद का प्रचार-प्रसार करने के साथ ही संतोष झा ने कई हत्याएं और लूट कीं. 2001 में एक मुखिया पर हमले के बाद संतोष झा का नाम अपराधियों की लिस्ट में शामिल हो गया था. 2004 में पहली बार पटना पुलिस ने संतोष झा को हथियारों के साथ गिरफ्तार किया था. करीब तीन साल तक जेल में रहने के बाद संतोष झा जेल से बाहर आया और एक बार फिर से गौरी शंकर झा के साथ काम करने लगा. 2010 आते-आते संतोष झा गौरी शंकर झा की टीम से अलग हो गया और उसने एक नया संगठन बनाया. इसे नाम दिया गया बिहार पीपल्स लिबरेशन आर्मी. इस संगठन में संतोष झा का खास आदमी बन गया था मुकेश पाठक.

मुकेश पाठक अपने चचेरे भाई की हत्या कर अपराध जगत में शामिल हुआ था. जेल में रहने के दौरान सजा काट रही महिला से उसने शादी कर ली थी.
खुद का गैंग बनाया और पिता को पीटने वाले को मार डाला
अलावा संतोष झा की टीम में मुकेश पाठक के अलावा लंकेश झा और चिरंजीवी भगत भी शामिल हो गए. संतोष झा ने संगठन की मदद से लेवी और रंगदारी वसूलनी शुरू कर दी. और इसी के साथ गौरी शंकर झा और संतोष झा के बीच अदावत भी शुरू हो गई. गौरी शंकर झा से अलग होने के बाद संतोष झा ने 15 जनवरी 2010 को शिवहर के पार्षद नवल किशोर राय की उनके घर में घुसकर हत्या कर दी. ये वही नवल किशोर राय थे, जिन्होंने संतोष के पिता चंद्रशेखर की पिटाई की थी. इसके अलावा अक्टूबर 2010 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान माइंस बिछाकर पांच पुलिसवालों की हत्या कर दी गई थी. इसमें भी संतोष झा के गैंग का नाम सामने आया था. फरवरी 2012 में पुलिस ने संतोष झा को एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी मोतिहारी पुलिस ने रांची से की थी. करीब एक महीने जेल में रहने के बाद कोर्ट ने उसे सबूतों के अभाव में रिहा कर दिया.

जिसके साथ नक्सली बना, उसे मारकर बन गया बॉस
दिसंबर 2012 में एक दिन मौका देखकर संतोष झा ने गौरी शंकर झा और उसकी पत्नी देवता देवी को गोली मार दी. इसमें गौरी शंकर झा की मौत हो गई. गौरी शंकर ही संतोष को नक्सलवाद की दुनिया में लेकर आया था. गौरी शंकर की हत्या के बाद संतोष झा का दबदबा कायम हो गया. इसके बाद तो संतोष ने सीतामढ़ी, शिवहर, मोतिहारी, बेतिया, गोपालगंज, दरभंगा और सीवान में कई अपराध किए. इन जिलों में हत्या, लूट और रंगदारी के 36 मुकदमे संतोष झा पर दर्ज हो गए थे.
कॉरपोरेट स्टाइल में चलाता था गैंग
संतोष झा का सबसे करीबी आदमी था मुकेश पाठक. मुकेश पाठक ने पारिवारिक विवाद में अपने चाचा की हत्या कर दी थी. इसके बाद से ही वो अपराध की दुनिया में शामिल हो गया था. संतोष झा और मुकेश पाठक ने मिलकर कॉरपोरेट स्टाइल में गैंग चलाना शुरू कर दिया. गैंग में नए लड़के भर्ती होने लगे. उन्हें 10,000 रुपये से लेकर 40,000 रुपये महीना तक की सैलरी दी जाती थी. नए भर्ती हुए लोगों को जैसे कोई कॉरपोरेट काम सिखाता है, उसी तरह से संतोष और मुकेश उसे हथियार चलाना सिखाते थे. एक महीने की ट्रेनिंग के बाद जो पास हो जाता था, उसे काम पर रख लिया जाता था. इसके बाद भी कॉरपोरेट की तरह प्रोबेशन पीरियड होता था. तीन महीने तक इन्हें छोटे-मोटे काम सौंपे जाते थे. पास होने वाले को बड़ा काम और बड़ी सैलरी दी जाती थी. फेल हो जाने वाले को और ट्रेनिंग दी जाती थी. इसके अलावा स्थानीय लोगों का दावा है कि गैंग में भर्ती लोगों का जीवन बीमा भी करवाया जाता था, ताकि किसी की मौत होने पर उसके परिवार को दिक्कत न हो. संतोष झा सिर्फ मुकेश पाठक को सैलरी नहीं देता था, क्योंकि मुकेश पाठक को होने वाले फायदे में हिस्सा दिया जाता था.

संतोष झा की हत्या के पीछे उसके विरोधी मुकेश पाठक का नाम सामने आ रहा है.
जेल में रहते करवाई थी दो इंजीनियरों की हत्या
फरवरी 2014 में बिहार एसटीएफ ने संतोष झा को गिरफ्तार कर लिया. बिहार एसटीएफ ने संतोष झा को जब गिरफ्तार किया था, तो वह कोलकाता में डॉक्टर बनकर एक फ्लैट में रहता था. जेल में बंद रहने के बाद भी मुकेश झा के कहने पर उसके गैंग ने 26 दिसंबर 2015 को दरभंगा के गंगदह में एक सड़क को बनाने में लगे दो इंजीनियरों मुकेश सिंह और ब्रजेश सिंह की हत्या कर दी थी. समस्तीपुर के वरुणा से दरभंगा के रसियारी तक 120 किलोमीटर के इस प्रोजेक्ट की कीमत 750 करोड़ रुपये थी. संतोष झा ने इसके लिए 50 लाख रुपये की रंगदारी मांगी थी और नहीं मिलने पर दो इंजीनियरों की हत्या कर दी थी. इसके बाद ही बिहार एसटीएफ संतोष झा के गैंग के सफाए में जुट गई थी. इसी के बाद 2016 में मुकेश पाठक को भी एक ट्रेन से गिरफ्तार कर लिया. दोनों पर इंजीनियर की हत्या का मुकदमा चला और फिर दोनों को अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई. इसके बाद उन्हें दरभंगा जेल में भेज दिया गया. इसी बीच वर्चस्व को लेकर संतोष झा और मुकेश पाठक के बीच अदावत हो गई. मुकेश पाठक ने संतोष झा से अलग गैंग बना लिया. इस अदावत की वजह से ही संतोष झा को सीतामढ़ी जेल में भेज दिया गया, जबकि मुकेश पाठक मोतिहारी जेल में बंद है. इसके बाद 28 अगस्त 2018 को संतोष झा की गोली मारकर हत्या कर दी गई.

पुलिस के मुताबिक गैंगवार में संतोष झा की हत्या की गई है.
कहीं पुरानी हत्याओं का बदला तो नहीं
संतोष झा की हत्या के बाद पुलिस ने जिस एक शख्स को गिरफ्तार किया था, उसका नाम विकास झा है. पुलिस के मुताबिक पूछताछ में विकास झा ने बताया है कि उसने अपने पिता विनोद झा की हत्या का बदला लेने के लिए संतोष झा की हत्या की है. 2015 में विनोद की हत्या कर दी गई थी. विकास के मुताबिक संतोष की हत्या की प्लानिंग मोतिहारी जेल में की गई थी. हालांकि पुलिस इसे गैंगवार के नजरिए से भी देख रही है. एसपी आकाश के मुताबिक मुकेश पाठक से पहले दोस्ती और फिर उससे दुश्मनी इस हत्याकांड की वजह हो सकती है.
ये भी पढ़ें:
यूपी के सबसे बड़े गैंगवार की कहानी, दस 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' बन जाए इसमें
मुख्तार अंसारी बनाम ब्रजेश सिंह: यूपी का सबसे बड़ा गैंगवार