The Lallantop

सात साल बाद जेल से बाहर आएंगे बम धमाकों के आरोपी असीमानंद!

समझौता एक्सप्रेस, अजमेर दरगाह, और अब मक्का मस्जिद केस में भी राहत.

Advertisement
post-main-image
स्वामी असीमानंद
असीमानंद. समझौता एक्सप्रेस और मक्का मस्जिद बम ब्लास्ट के आरोपी हैं. सात साल बाद जेल से बाहर आने वाले हैं. क्योंकि हैदराबाद की कोर्ट ने जमानत दे दी है. अजमेर दरगाह बम ब्लास्ट में बरी हो चुके हैं. समझौता एक्सप्रेस धमाके में पहले ही ज़मानत मिल चुकी है. अब मक्का मस्जिद धमाके में भी ज़मानत मिल गई है. कौन है असीमानंद? पढ़िए रिपोर्ट: समझौता एक्सप्रेस 'समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट कांड जिस थ्योरी के तहत हुआ था, वह 'बम का बदला बम' का सिद्धांत था. और इस सिद्धांत को तैयार किया था स्वामी असीमानंद ने. मजहबी हिंसा के विचार ने असीमानंद को इतना क्रूर बना दिया कि उसने 68 मासूम लोगों की जान ले ली.' ये बातें राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए ने 2007 के समझौता एक्सप्रेस विस्फोट कांड में दाखिल चार्जशीट में कही थीं. जो साल 2011 में दाखिल की गई थी. 4 साल की जांच के बाद एनआईए ने इस विस्फोट कांड में स्वामी असीमानंद के अलावा 5 और अन्य लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया था. भारत और पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस ट्रेन में 18 फरवरी 2007 को ब्लास्ट हुआ था जिसमें 68 लोगों की मौत हुई थी. मरने वालों में ज्यादातर पाकिस्तानी थे. असीमानंद समझौता ट्रेन ब्लास्ट के मुख्य आरोपियों में से एक थे. 2014 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने असीमानंद को इस मामले में जमानत दे दी. मक्का मस्जिद 18 मई 2007 को हैदराबाद में बम ब्लास्ट हुआ. यानी समझौता एक्सप्रेस से ठीक तीन महीने बाद. ये ब्लास्ट मक्का मस्जिद में हुआ, जिसमें 14 लोगों की मौत हुई थी. जुमे का दिन था. दोपहर के डेढ़ बजे थे. नमाज़ी नमाज़ पढ़ रहे थे. तभी एक धमाका हुआ. और मस्जिद में लाशें बिछ गईं. इस धमाके में असीमानंद को आरोपी बनाया गया था. उनपर षड्यंत्र रचने का इल्ज़ाम लगा था. इस मामले में भी असीमानंद को राहत मिल गई है. एनआईए को जब बेल की कॉपी मिलेगी, उसके बाद ही एजेंसी ये फैसला करेगी कि असीमानंद की बेल को चैलेंज किया जाना है या नहीं. अजमेर दरगाह मक्का मस्जिद धमाके के तकरीबन पांच महीने बाद राजस्थान की अजमेर शरीफ दरगाह में धमाका हुआ. 11 अक्टूबर, 2007 को रमजान के महीने में दरगाह में आये जायरीन रोजा इफ्तार कर रहे थे. शाम करीब 6:15 बजे हुए धमाके में 3 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 15 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे. ब्लास्ट के लिए दरगाह में दो रिमोट बम प्लांट किए गए थे, जिसमें से एक फट गया था. इस केस में कुल 13 आरोपी थे, जिनमें से असीमानंद समेत सात को संदेह के लाभ की वजह से 8 मार्च 2017 को बरी कर दिया गया था. तीन को सजा सुनाई गई, जबकि तीन अब भी फरार हैं. कोर्ट ने बरी किए आरोपियों को एक लाख रुपए के मुचलके और 50-50 हजार रुपए की जमानतें जमा कराने का आदेश दिया था. इस मामले में देवेंद्र गुप्ता और भावेश पटेल को उम्रकैद सुनाई गयी. कोर्ट ने दोनों को षड़यंत्र करने, धार्मिक भावनाएं भड़काने और विस्फोटक पदार्थ ऐक्ट के अपराध में दोषी करार दिया. तीसरे दोषी की पहले ही मौत हो चुकी है. कब हुए थे गिरफ्तार असीमानंद साल 2010 से जेल में हैं. उन्हें नवंबर 2010 में हरिद्वार से गिरफ्तार किया गया था, जहां वह 'स्वामी ओंकारानंद' के नाम से छिपा हुए थे.अब कुछ औपचरिकताएं पूरी करने के बाद असीमानंद को जेल से रिहा कर दिया जाएगा.साल 2011 में ही अजमेर ब्लास्ट मामले को एनआईए को सौंपा गया था. और एनआईए ने असीमानंद को मास्टरमाइंड बताया था. असीमानंद का असली नाम नभकुमार सरकार है. और ये मूलरूप से पश्चिमी बंगाल में हुगली के रहने वाले हैं. जांच एजेंसियों के मुताबिक 1995 में वो कट्टरपंथी नेता के तौर पर एक्टिव हुए. इस दौरान हिंदू संगठनों के साथ मिलकर गुजरात में हिंदू धर्म जागरण और शुद्धिकरण अभियान चलाया. साल 1990 से 2007 के बीच वो आरएसएस से जुड़ी संस्था वनवासी कल्याण आश्रम के प्रांत प्रचारक प्रमुख भी रहे हैं. जब उन्हें गिरफ्तार किया गया था तब आरोप लगा कि असीमानंद ने शबरी धाम में 2006 में 10 दिन रहकर अजमेर समेत कई जगह बम प्लांट करने की साजिश रची. तब जांच एजेसियों ने दावा किया था कि साल 2011 में असीमानंद ने मजिस्ट्रेट को इकबालिया बयान दिया, जिसमें उन्होंने अजमेर दरगाह, हैदराबाद की मक्का मस्जिद, समझौता एक्सप्रेस समेत कई जगह बम प्लांट कराए. हालांकि बाद में असीमानंद इस बयान के बारे में कहा कि एनआईए ने दबाव बनाकर उनसे इस तरह के बयान लिए.
  ये भी पढ़िए :

अजमेर ब्लास्ट केस: पूर्व RSS प्रचारक देवेंद्र और भावेश को उम्रकैद की सजा

Advertisement

Advertisement
Advertisement
Advertisement