सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही एक फैसले को गलत माना है. एक महिला की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने अपने ही 10 महीने पुराने फैसले को पलट दिया. महिला ने अपने 12 साल के बेटे की कस्टडी के लिए याचिका दायर की थी. कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए बच्चे की कस्टडी को पिता से दोबारा मां को सौंप दिया. इंडिया टुडे से जुड़े संजय शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसा करते हुए कोर्ट ने यह माना कि उसके पुराने फैसले में बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज किया गया था.
12 साल के बच्चे को पिता के हवाले कर पछताया सुप्रीम कोर्ट, गलती मान वापस मां को सौंपा
साल 2015 में बच्चे के माता-पिता का आपसी सहमति से तलाक हो गया था और बेटे की कस्टडी मां को दी गई थी. कुछ समय बाद मां ने दूसरी शादी कर ली और अपने पति और पहली शादी से हुए दो बच्चों के साथ रहने लगीं. इस शादी से उन्हें एक और बच्चा हुआ.
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इस मामले की सुनवाई जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने एक ओपेन कोर्ट में की. बार एंड बेंच में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2015 में बच्चे के माता-पिता का आपसी सहमति से तलाक हो गया था और बेटे की कस्टडी मां को दी गई थी. कुछ समय बाद मां ने दूसरी शादी कर ली और अपने पति और पहली शादी से हुए दो बच्चों के साथ रहने लगीं. इस शादी से उन्हें एक और बच्चा हुआ.
चूंकि महिला का दूसरा पति मलेशिया में नौकरी करता था इसलिए साल 2019 में उसने बच्चे के साथ मलेशिया में बसने की इच्छा जताई. इस पर बच्चे के पिता ने आपत्ति जताई. पिता ने फैमिली कोर्ट में बच्चे की स्थायी कस्टडी की मांग की. इसके अलावा उन्होंने आरोप लगाए कि बच्चे की मर्जी और जानकारी के बिना उसके धर्म को हिंदू से ईसाई में बदल दिया. साल 2022 में फैमिली कोर्ट ने उनकी मांग को खारिज कर मां को ही कस्टडी सौंप दी.
इसके बाद बच्चे के पिता ने फैमिली कोर्ट के इस फैसले को केरल हाई कोर्ट में चुनौती दी. हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को पलटते हुए बच्चे की कस्टडी को पिता को सौंप दी. इस पर मां ने सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी. लेकिन अगस्त 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी याचिका खारिज कर दी.
इसके बाद महिला ने वेल्लोर के CMC अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग की रिपोर्ट के साथ एक पुनर्विचार याचिका दायर की. 15 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका को स्वीकार कर लिया. इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपनी गलती स्वीकार की. दरअसल मां द्वारा पेश की गई इस रिपोर्ट में बच्चे में ‘सेपरेशन एंग्जायटी डिसऑर्डर’ और 'एंग्जाइटी' पर चिंता जताते हुए उसे उसके मौजूदा परिवार से अलग न करने की सलाह दी गई थी.
इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि कस्टडी में बदलाव से बच्चे की मानसिक सेहत पर "हानिकारक प्रभाव" पड़ा है. कोर्ट ने यह भी माना कि केरल हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखने के फैसले से बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को नजरअंदाज किया गया. कोर्ट ने कहा, “रिकॉर्ड में ऐसा कुछ नहीं है जिससे यह लगे कि मां की दूसरी शादी या दूसरे बच्चे के जन्म से मां की अपने बेटे के प्रति प्यार में कोई कमी आई हो.”
बेंच ने सुनवाई के दौरान इस तर्क को भी खारिज किया कि बच्चे की मनोवैज्ञानिक रिपोर्ट पक्षपाती है. कोर्ट ने कहा कि सात महीनों में चार निष्पक्ष जांचों ने बच्चे की परेशानी की पुष्टि की है. कोर्ट ने यह भी कहा, “कस्टडी के मामलों में बच्चे का पक्ष सर्वोपरि है.”
कोर्ट ने मां को कस्टडी दोबारा देते हुए पिता को हफ्ते में एक बार मिलने और दो बार वीडियो कॉल का अधिकार दिया, लेकिन उनके यहां रात भर रुकने की अनुमति नहीं दी गई है. कोर्ट ने बच्चे की काउंसलिंग जारी रखने के आदेश दिए हैं. साथ ही उसके पिता को भी इन सत्रों में भाग लेने को कहा है ताकि बच्चे से उनके रिश्ते सुधर सकें.
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