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1984 दंगा: इंस्पेक्टर ने भीड़ को लानत देते कहा - डूब मरो, तुमसे एक सरदार तक नहीं जलता

भीड़ को केरोसिन डालने के बाद माचिस नहीं मिल रही थी. इंस्पेक्टर ने माचिस बढ़ाई. गुरुद्वारे के प्रेज़िडेंट निर्मल ज़िंदा जला दिए गए.

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सज्जन कुमार कांग्रेस का सांसद था. निचली अदालत ने पहले उसे बरी कर दिया था. मगर अब दिल्ली हाई कोर्ट ने उसे उम्रकैद की सजा दी है.
31 अक्टूबर, 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई. हत्या की उनके दो सिख बॉडीगार्ड्स ने. दो सिखों के किए की सज़ा हज़ारों सिखों को दी गई. सिखों का कत्लेआम हुआ. देश की राजधानी दिल्ली तक में 2,000 से ज़्यादा सिख मार डाले गए. सरकार, पुलिस, प्रशासन, किसी ने उन्हें नहीं बचाया. बल्कि बहुत हद तक इनकी मिलीभगत से इस नरसंहार को अंजाम दिया गया. इस बात को 34 साल बीत गए हैं. 17 दिसंबर, 2018 को दिल्ली हाई कोर्ट ने कांग्रेस के नेता रहे सज्जन कुमार को दंगों का दोषी माना. सज्जन को उम्रकैद की सजा मिली है. सज्जन कुमार के अलावा कैप्टन भागमल, गिरिधारी लाल, पूर्व कांग्रेसी काउंसिलर बलवंत खोखर को भी आजीवन कारावास की सजा मिली है. किशन खोखर और महेंदर यादव को 10 साल की कैद मिली है. कोर्ट के फैसले की कॉपी पढ़कर हम आपको इन दंगों से जुड़ी कुछ कुख्यात वारदातों के बारे में बता रहे हैं. जानिए, भीड़ ने कैसे राज नगर गुरुद्वारे को फूंका और कैसे इस गुरुद्वारे के प्रेजिडेंट निर्मल सिंह को ज़िंदा जला दिया.


प्रॉसिक्यूशन की गवाह नंबर 10 थीं निरप्रीत कौर. उनके पिता निर्मल सिंह को भीड़ ने ज़िंदा जलाकर मार डाला. कोर्ट के फैसले में इस घटना और राज नगर गुरुद्वारे पर हमले की घटना के सिलसिले में निरप्रीत की गवाही है. इस गवाही और बाकी कुछ गवाहियों के आधार पर अदालत ने पूरा घटनाक्रम समझा.
सज्जन कुमार के भतीजे नौकरी मांगने पहुंचे 31 अक्टूबर, 1984. शाम के तकरीबन साढ़े छह बजे थे. सुबह इंदिरा गांधी की हत्या हो चुकी थी. माहौल खराब था. मगर चीजें सामान्य ही चल रही थीं. राज नगर इलाके में अमूमन बाकी रोज़ की ही तरह था सब कुछ. बलवान खोखर और किशन खोखर, दोनों निर्मल सिंह के घर पहुंचे. दोनों ने कहा कि वो सज्जन कुमार के भतीजे हैं. निर्मल की टैक्सी चलती थी. उनका अपना ट्रांसपोर्ट का बिजनस था. बलवान और किशन ने निर्मल से कहा कि वो किशन को अपने यहां ड्राइवर की नौकरी पर रख लें. निर्मल सिंह ने जवाब दिया कि फिलहाल कोई जगह खाली नहीं है. जैसे ही कोई जगह होती है, वो खबर करेंगे. पढ़ें: 1984 के सिख विरोधी दंगों में कांग्रेसी नेता सज्जन कुमार को उम्र कैद हो गई

पुलिस आई और फिर बिना कुछ बताए गायब हो गई आधी रात बाद तारीख बदल गई. 1 नवंबर आ गई थी. रात तकरीबन ढाई से तीन बजे के बीच राजनगर गुरुद्वारे के ग्रंथी निर्मल सिंह के घर आए. निर्मल सिंह राज नगर गुरुद्वारे के अध्यक्ष थे. ग्रंथी ने निर्मल को बताया कि पुलिस के लोग गुरुद्वारे पर आए हैं. निर्मल अपनी पत्नी संपूरण कौर को साथ लेकर गुरुद्वारे पर पहुंचे. पुलिसवालों ने उन्हें बताया कि वो लोग गुरुद्वारे की हिफाजत के लिए आए हैं. क्योंकि सिखों के लिए माहौल बिगड़ा हुआ था. निरप्रीत कौर 1 नवंबर की सुबह 5 से साढ़े पांच बजे के बीच गुरुद्वारे पर पहुंची थीं. उस समय पुलिस के लोग वहां मौजूद थे. गुरुद्वारे में सुबह की अरदास चल ही रही थी कि एकाएक पुलिस के लोग बिना किसी को कुछ बताए वहां से गायब हो गए. भीड़ चीख रही थी- इन सरदारों को मारो सुबह के साढ़े सात से आठ बजे का वक़्त रहा होगा. एक भीड़ गुरुद्वारे पर पहुंची. इस भीड़ के लीडर थे बलवान खोखर और महेंदर यादव. उनके साथ ममता बेकरी का मालिक भी था. भीड़ अपने साथ सरिया, डंडे लेकर आई थी. भीड़ में शामिल लोग नारे लगा रहे थे. इनमें से दो नारों का ज़िक्र कोर्ट के फैसले में भी है-
इंदिरा गांधी अमर रहें. इन सरदारों को मारो, इन्होंने हमारी मां को मारा है.
भीड़ चिल्लाई- इसे मारो, ये सांप का बच्चा है भीड़ को गुरुद्वारे पर धावा बोलते देखकर निरप्रीत अपने भाई निरमोलक सिंह के साथ गुरुद्वारे के अंदर दौड़ीं. उन्हें डर था कि भीड़ गुरु ग्रंथ साहिब के साथ बेअदबी करेगी. भीड़ ने उन्हें पकड़ लिया. मगर बहुत जतन करके वो दोनों भीड़ के हाथों से छूटकर भागने में कामयाब रहे. गवाह नंबर 10 निरप्रीत के मुताबिक-
मैं अपने भाई निरमोलक के साथ घर जा रही थी. तभी महेंदर यादव और ममता बेकरी के मालिक ने हमारी तरफ इशारा करके भीड़ से कहा- इसे मारो, ये सांप का बच्चा है. भीड़ निरप्रीत और निरमोलक के पीछे भागती आई. उनके घर तक पहुंच गई. उन्होंने निर्मल सिंह के घर की दीवारों और गेट को भी नुकसान पहुंचाया. निर्मल और उनकी पत्नी संपूरण अपने बच्चों की मदद के लिए दौड़े.
केवल दिल्ली में ही 2,700 से ज्यादा सिख मारे गए थे. ये तस्वीर 1984 के सिख दंगों के समय की ही है (फोटो: इंडिया टुडे)
केवल दिल्ली में ही 2,700 से ज्यादा सिख मारे गए थे. ये तस्वीर 1984 के सिख दंगों के समय की ही है (फोटो: इंडिया टुडे)

तीन तरफ से हमला हो रहा था, सिख किसी तरह खुद को बचा रहे थे निरप्रीत के मुताबिक, भीड़ में शामिल कुछ लोगों ने एक ट्रक में आग लगा दी. ये ट्रक हरबंस सिंह का था. आग देखकर निर्मल सिंह ने शोर मचाया. आवाज़ सुनकर हरबंस सिंह घर से बाहर आए और किसी तरह आग बुझाई. निरप्रीत ने अदालत को बताया-
भीड़ तीन तरफ से हम पर हमला कर रही थी. हमारे इलाके के सिखों ने दो-तीन घंटों तक खुद को बचाने की कोशिश की. इसके बाद कहीं जाकर पुलिस वहां पहुंची.
समझौता करने के बहाने स्कूटर पर बिठाकर ले गए गवाह नंबर 10 के मुताबिक, बलवान खोखर, महेंदर यादव और किशन खोखर मौके पर पहुंचे. वो किसी किस्म के समझौते की बात कर रहे थे. मगर ये जो भी समझौता था, उस पर निर्मल सिंह और बाकी सिखों की रज़ामंदी नहीं थी. वहां मौजूद पुलिसवालों ने दोनों तरफ के लोगों से कहा कि वो आपस में समझौता कर लें. ये कहकर पुलिस के लोगों ने वहां मौजूद सिखों से उनके कृपाण लिए और वहां से चले गए. इसके बाद बलवान खोखर और महेंदर यादव ने निर्मल सिंह को अपने साथ एक स्कूटर पर बिठाया और वहां से चले गए. इंस्पेक्टर चिल्लाया- तुमसे एक सरदार भी नहीं जलता! निरप्रीत ने पिता को स्कूटर पर जाते देखा. उन्हें डर लगा. कोई खतरा महसूस हुआ. वो स्कूटर के पीछे भागीं. उन्होंने देखा कि स्कूटर एक दुकान के आगे रुक गया. ये दुकान किसी धनराज नाम के शख्स का था. वहां एक भीड़ भी जमा थी. बलवान खोखर ने वहां मौजूद भीड़ से कहा कि वो उस इलाके में बचे आखिरी सिख (निर्मल सिंह) को साथ लाया है. भीड़ ने निर्मल सिंह के ऊपर केरोसिन तेल छिड़क दिया. मगर आग लगाने को उन्हें माचिस नहीं मिली. भीड़ माचिस खोज रही थी. वहां मौजूद कौशिक नाम का एक पुलिस इंस्पेक्टर इस देरी से चिढ़ रहा था. वो भीड़ को लानत देते हुए चिल्लाया-
डूब मरो. तुमसे एक सरदार भी नहीं जलता.
इंस्पेक्टर ने माचिस दी, भीड़ ने सरदार के शरीर में आग लगाई इसके बाद इंस्पेक्टर कौशिक ने भीड़ में शामिल किशन खोखर को माचिस थमाई. किशन खोखर ने निर्मल सिंह के शरीर में आग लगा दी. निर्मल को फूंकने के बाद भीड़ वहां से आगे बढ़ने लगी. इतनी देर में मौका पाकर निर्मल खुद को बचाने के लिए पास के एक नाले में कूद गए. मगर भीड़ ने ये देख लिया. वो वापस वहां लौटी. निर्मल को नाले से निकाला. भीड़ में शामिल कैप्टन (रिटायर्ड) भागमल ने निर्मल को एक टेलिफोन के खंभे से बांध दिया और फिर से उनके शरीर में आग लगा दी. मगर भीड़ जैसे ही आगे बढ़ी, निर्मल किसी तरह दोबारा नाले में कूद गए. 'पिता को जला दिया था. घर जल रहा था, मां बेहोश पड़ी थी' पीछे रह गए किसी आदमी ने भीड़ के लोगों तक ये खबर पहुंचा दी. निर्मल के ज़िंदा बच जाने की बात जानकर भीड़ वापस लौटी. वापस लौटकर बलवान खोखर ने निर्मल सिंह को लोहे के डंडे से खूब पीटा. महेंदर यादव ने निर्मल के ऊपर फॉस्फोरस छिड़क दिया. निरप्रीत छुपकर असहाय सी अपने पिता को जलते देख रही थीं. तभी भीड़ में से कोई चिल्लाया कि निर्मल के परिवार को भी मार दिया जाना चाहिए. ये सुनकर निरप्रीत वापस अपने घर की तरफ भागीं. घर आकर देखा तो घर जल रहा था और मां बेहोश पड़ी थी. निरप्रीत के मुताबिक, पुलिस के कुछ लोग वहीं खड़े थे. मगर उन्होंने कोई मदद नहीं की. निर्मल के परिवार को मदद मिली संतोक सिंह संधू से. जो उस समय वायु सेना में पोस्टेड थे. संतोक सिंह ने निर्मल सिंह के परिवार को एयर फोर्स की गाड़ी में बिठाया और उन्हें अपने साथ पालम एयरपोर्ट ले गए. एक और भी गवाही है... निरप्रीत के दिए इस बयान में दो बातें थीं. एक तो ये कि 1 नवंबर, 1984 की सुबह भीड़ ने कैसे राज नगर गुरुद्वारे पर हमला किया. दूसरा, किस तरह निर्मल सिंह की हत्या की गई. राज नगर गुरुद्वारे को जलाने की घटना से ही जुड़ा है जोगिंदर सिंह का बयान भी. जोगिंदर भी इसी इलाके में रहते थे. उनके मुताबिक, 1 नवंबर की सुबह 07.30 बजे वो अपनी पत्नी के साथ गुरुद्वारे से निकल रहे थे. तभी उन्होंने देखा कि महरौली रोड की तरफ से एक भीड़ उधर की ही तरफ बढ़ी आ रही है. जोगिंदर ने इस भीड़ में से कुछ लोगों की बाद में पहचान भी की. इनके नाम थे- बलवान खोखर, महेंदर यादव, कैप्टन (रिटायर्ड) भागमल और किशन खोखर. साथ में एक राजा राम और गुलाटी नाम के शख्स की भी शिनाख्त की उन्होंने. मदद करने आई पुलिस निहत्था करके चली गई भीड़ अपने साथ लाठी-डंडे, लोहे की सरिया सब लाई थी. जोगिंदर कुछ और सिखों के साथ कृपाण थामे गुरुद्वारे के सामने खड़े हो गए. भीड़ ने किन्हीं जसबीर सिंह का घर लूट लिया. हरबंस सिंह का ट्रक फूंक दिया. पुलिस तकरीबन दो घंटे बाद पहुंची वहां. और मदद करने की जगह सिखों के कृपाण ले गई. पुलिस के जाने के बाद बलवान खोखर, महेंदर यादव और किशन खोखर फिर एक भीड़ को साथ लेकर वहां पहुंचे. इसके बाद बलवान और महेंदर ने निर्मल सिंह को पकड़ा. उनसे कहा कि मामला सुलझाने के लिए बात करनी है. इसी बहाने वो दोनों निर्मल को स्कूटर पर बिठाकर ले गए.
एक बेटी छुपकर बैठी थी. उसकी आंखों के आगे भीड़ उसके पिता को फूंक रही थी. पिता बार-बार बचने की कोशिश कर रहा था. मगर भीड़ ने उसे छोड़ा नहीं. इस देखे हुए के साथ बेटी ज़िंदा रही. सालो-साल कोर्ट में केस चलते देखती रही. कितने ही लोग न्याय की राह देखते-देखते गुज़र गए. ये फैसला बहुत-बहुत देर से आया है. मगर इकलौता संतोष यही है कि फैसला आया तो सही.


सज्जन कुमार को दिल्ली हाइकोर्ट ने 1984 सिख विरोधी दंगों में उम्रकैद