प्रॉसिक्यूशन की गवाह नंबर 10 थीं निरप्रीत कौर. उनके पिता निर्मल सिंह को भीड़ ने ज़िंदा जलाकर मार डाला. कोर्ट के फैसले में इस घटना और राज नगर गुरुद्वारे पर हमले की घटना के सिलसिले में निरप्रीत की गवाही है. इस गवाही और बाकी कुछ गवाहियों के आधार पर अदालत ने पूरा घटनाक्रम समझा.
सज्जन कुमार के भतीजे नौकरी मांगने पहुंचे 31 अक्टूबर, 1984. शाम के तकरीबन साढ़े छह बजे थे. सुबह इंदिरा गांधी की हत्या हो चुकी थी. माहौल खराब था. मगर चीजें सामान्य ही चल रही थीं. राज नगर इलाके में अमूमन बाकी रोज़ की ही तरह था सब कुछ. बलवान खोखर और किशन खोखर, दोनों निर्मल सिंह के घर पहुंचे. दोनों ने कहा कि वो सज्जन कुमार के भतीजे हैं. निर्मल की टैक्सी चलती थी. उनका अपना ट्रांसपोर्ट का बिजनस था. बलवान और किशन ने निर्मल से कहा कि वो किशन को अपने यहां ड्राइवर की नौकरी पर रख लें. निर्मल सिंह ने जवाब दिया कि फिलहाल कोई जगह खाली नहीं है. जैसे ही कोई जगह होती है, वो खबर करेंगे.
पुलिस आई और फिर बिना कुछ बताए गायब हो गई आधी रात बाद तारीख बदल गई. 1 नवंबर आ गई थी. रात तकरीबन ढाई से तीन बजे के बीच राजनगर गुरुद्वारे के ग्रंथी निर्मल सिंह के घर आए. निर्मल सिंह राज नगर गुरुद्वारे के अध्यक्ष थे. ग्रंथी ने निर्मल को बताया कि पुलिस के लोग गुरुद्वारे पर आए हैं. निर्मल अपनी पत्नी संपूरण कौर को साथ लेकर गुरुद्वारे पर पहुंचे. पुलिसवालों ने उन्हें बताया कि वो लोग गुरुद्वारे की हिफाजत के लिए आए हैं. क्योंकि सिखों के लिए माहौल बिगड़ा हुआ था. निरप्रीत कौर 1 नवंबर की सुबह 5 से साढ़े पांच बजे के बीच गुरुद्वारे पर पहुंची थीं. उस समय पुलिस के लोग वहां मौजूद थे. गुरुद्वारे में सुबह की अरदास चल ही रही थी कि एकाएक पुलिस के लोग बिना किसी को कुछ बताए वहां से गायब हो गए.
इंदिरा गांधी अमर रहें. इन सरदारों को मारो, इन्होंने हमारी मां को मारा है.भीड़ चिल्लाई- इसे मारो, ये सांप का बच्चा है भीड़ को गुरुद्वारे पर धावा बोलते देखकर निरप्रीत अपने भाई निरमोलक सिंह के साथ गुरुद्वारे के अंदर दौड़ीं. उन्हें डर था कि भीड़ गुरु ग्रंथ साहिब के साथ बेअदबी करेगी. भीड़ ने उन्हें पकड़ लिया. मगर बहुत जतन करके वो दोनों भीड़ के हाथों से छूटकर भागने में कामयाब रहे. गवाह नंबर 10 निरप्रीत के मुताबिक-
मैं अपने भाई निरमोलक के साथ घर जा रही थी. तभी महेंदर यादव और ममता बेकरी के मालिक ने हमारी तरफ इशारा करके भीड़ से कहा- इसे मारो, ये सांप का बच्चा है. भीड़ निरप्रीत और निरमोलक के पीछे भागती आई. उनके घर तक पहुंच गई. उन्होंने निर्मल सिंह के घर की दीवारों और गेट को भी नुकसान पहुंचाया. निर्मल और उनकी पत्नी संपूरण अपने बच्चों की मदद के लिए दौड़े.

केवल दिल्ली में ही 2,700 से ज्यादा सिख मारे गए थे. ये तस्वीर 1984 के सिख दंगों के समय की ही है (फोटो: इंडिया टुडे)
तीन तरफ से हमला हो रहा था, सिख किसी तरह खुद को बचा रहे थे निरप्रीत के मुताबिक, भीड़ में शामिल कुछ लोगों ने एक ट्रक में आग लगा दी. ये ट्रक हरबंस सिंह का था. आग देखकर निर्मल सिंह ने शोर मचाया. आवाज़ सुनकर हरबंस सिंह घर से बाहर आए और किसी तरह आग बुझाई. निरप्रीत ने अदालत को बताया-
भीड़ तीन तरफ से हम पर हमला कर रही थी. हमारे इलाके के सिखों ने दो-तीन घंटों तक खुद को बचाने की कोशिश की. इसके बाद कहीं जाकर पुलिस वहां पहुंची.समझौता करने के बहाने स्कूटर पर बिठाकर ले गए गवाह नंबर 10 के मुताबिक, बलवान खोखर, महेंदर यादव और किशन खोखर मौके पर पहुंचे. वो किसी किस्म के समझौते की बात कर रहे थे. मगर ये जो भी समझौता था, उस पर निर्मल सिंह और बाकी सिखों की रज़ामंदी नहीं थी. वहां मौजूद पुलिसवालों ने दोनों तरफ के लोगों से कहा कि वो आपस में समझौता कर लें. ये कहकर पुलिस के लोगों ने वहां मौजूद सिखों से उनके कृपाण लिए और वहां से चले गए. इसके बाद बलवान खोखर और महेंदर यादव ने निर्मल सिंह को अपने साथ एक स्कूटर पर बिठाया और वहां से चले गए.
डूब मरो. तुमसे एक सरदार भी नहीं जलता.इंस्पेक्टर ने माचिस दी, भीड़ ने सरदार के शरीर में आग लगाई इसके बाद इंस्पेक्टर कौशिक ने भीड़ में शामिल किशन खोखर को माचिस थमाई. किशन खोखर ने निर्मल सिंह के शरीर में आग लगा दी. निर्मल को फूंकने के बाद भीड़ वहां से आगे बढ़ने लगी. इतनी देर में मौका पाकर निर्मल खुद को बचाने के लिए पास के एक नाले में कूद गए. मगर भीड़ ने ये देख लिया. वो वापस वहां लौटी. निर्मल को नाले से निकाला. भीड़ में शामिल कैप्टन (रिटायर्ड) भागमल ने निर्मल को एक टेलिफोन के खंभे से बांध दिया और फिर से उनके शरीर में आग लगा दी. मगर भीड़ जैसे ही आगे बढ़ी, निर्मल किसी तरह दोबारा नाले में कूद गए.
एक बेटी छुपकर बैठी थी. उसकी आंखों के आगे भीड़ उसके पिता को फूंक रही थी. पिता बार-बार बचने की कोशिश कर रहा था. मगर भीड़ ने उसे छोड़ा नहीं. इस देखे हुए के साथ बेटी ज़िंदा रही. सालो-साल कोर्ट में केस चलते देखती रही. कितने ही लोग न्याय की राह देखते-देखते गुज़र गए. ये फैसला बहुत-बहुत देर से आया है. मगर इकलौता संतोष यही है कि फैसला आया तो सही.
सज्जन कुमार को दिल्ली हाइकोर्ट ने 1984 सिख विरोधी दंगों में उम्रकैद