ईरान और इजरायल (Israel-Iran Conflict) के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है. दोनों देश लगातार एक-दूसरे पर हमले कर रहे हैं. इजरायल अब तक ईरान के दर्जनों मिलिट्री कमांडर्स को मार चुका है. वहीं ईरान ने इजरायली शहरों पर बैलिस्टिक मिसाइल्स (Iran Missile Attack) और ड्रोन्स से हमले कर भारी नुकसान पहुंचाया है. यहां गौर करने वाली बात ये है कि ये दोनों देश, एक-दूसरे की नजर में देश ही नहीं हैं. सारे राजनयिक संबंध टूट चुके हैं. फिर भी दोनों जंग के मैदान में आमने-सामने हैं. यानी ईरान और इजरायल ने एक-दूसरे को देश के तौर पर मान्यता नहीं देते. दोनों एक्स से लेकर हर जगह एक-दूसरे के लिए रिजीम (Regime) शब्द का इस्तेमाल करते हैं. तो समझते हैं कि आखिर एक समय एक-दूसरे के ‘खास’ रहे ये दोनों मुल्क, आज क्यों एक-दूसरे को खत्म करने पर तुले हैं.
नतांज़ से लेकर अल-अक्सा तक, ईरान-इजरायल टकराव की पूरी टाइमलाइन समझिए
Iran और Israel ने एक-दूसरे को देश के तौर पर मान्यता नहीं देते. दोनों Social Media से लेकर हर जगह एक-दूसरे के लिए Regime शब्द का इस्तेमाल करते हैं.

1948 में स्थापना के बाद ईरान, इजरायल को मान्यता देने वाले पहले राज्यों में से एक था. इजरायल ईरान को अरब राज्यों के खिलाफ एक सहयोगी के रूप में देखता था. इस बीच, ईरान ने क्षेत्र के अरब देशों के प्रति संतुलन के रूप में अमेरिका समर्थित इजरायल का स्वागत किया. उस समय, इजरायल ने ईरानी एग्रीकल्चर एक्सपर्ट्स को ट्रेनिंग दी, तकनीकी जानकारी से लैस किया और ईरानी फोर्सेज़ के गठन और ट्रेनिंग में मदद की. ईरान के शाह ने इजरायल को तेल के रूप में भुगतान किया.
खेल तब बदला जब 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई. ईरानी इस्लामी क्रांति के बाद अयातुल्ला रूहोल्लाह खोमैनी और उनके धार्मिक क्रांतिकारियों को सत्ता में लाने के बाद, ईरान ने इजरायल के साथ सभी पिछले समझौतों को रद्द कर दिया. खोमैनी फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर कब्जे के लिए इजरायल की तीखी आलोचना करने लगे. धीरे-धीरे, ईरान ने क्षेत्र के अरब राज्यों या कम से कम उनके नागरिकों को पक्ष में करने के उद्देश्य से इजरायल के प्रति और आक्रामक बयानबाजी करने लगे. उनका कहना था कि इजरायल अवैध रूप से कब्जा करने वाला देश है. समय के साथ ये तकरार बढ़ती गई.

इजरायल की सबसे बड़ी टेंशन है ईरान का न्यूक्लियर बम प्रोग्राम. पाकिस्तान के बाद ईरान वो दूसरा इस्लामिक बनने की जुगत में है जो न्यूक्लियर शक्ति से लैस हो. इजरायल को लगता है कि अगर ईरान ने ये बम बना लिया तो उसके अस्तित्व को खतरा हो सकता है. इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू बार-बार इस बात को दोहराते रहे हैं कि अगर ईरान के पास न्यूक्लियर बम आया तो वो इसके इस्तेमाल में बाकी देशों की तरह जिम्मेदारी भरा व्यवहार नहीं करेगा. यही वजह है कि इजरायल अब तक ईरान के दर्जनों मिलिट्री कमांडर्स ऑर न्यूक्लियर साइंटिस्ट्स को मार चुका है.
यहूदी पहचानइजरायल और फिलीस्तीन का विवाद जितना धार्मिक है, उससे कहीं ज्यादा ये जमीन की लड़ाई है. लेकिन इसमें मौजूद धार्मिक एंगल भी एक वजह है. इससे भी फिलीस्तीन को काफी सपोर्ट मिलता है. वजह, इस्लाम में तीसरा सबसे पवित्र स्थल जेरूसलेम में है. इजरायल की यहूदी मुल्क की पहचान उसे बाकी इस्लामिक देशों का नेचुरल दुश्मन बनाती है. इस्लामिक देश इजरायल के अल-अक्सा और जेरूसलेम पर कब्जे को लेकर नाराज रहते हैं. बीते कुछ समय में इजरायल ने सऊदी अरब से बैक चैनल बातचीत करनी शुरू की है. इजिप्ट, जॉर्डन, तुर्किए, UAE बहरीन, मोरक्को, और सूडान जैसे इस्लामिक देशों ने इजरायल को मान्यता भी दी है. लेकिन फिलीस्तीन और अल-अक्सा के मुद्दे पर अब भी इन देशों और इजरायल के बीच सहमति नहीं है. ईरान हमेशा से खुद को फिलीस्तीनियों का हिमायती बताता आया है. यही वजह है कि वो इजरायल को मिटाने की बात करता है.

ईरान ने जब इजरायल पर बैलिस्टिक मिसाइल्स दागनी शुरू की, तब उसने एक संदेश जारी किया था. ईरान ने कहा था कि इजरायली कब्जे किए गए इलाकों को खाली कर दें. 1948 के बाद से इजरायल ने जिन जगहों पर कब्जा किया, वहां उसने यहूदियों को बसाना शुरू किया. इन इलाकों में बनने वाले यहूदी घरों को सेटलमेंट्स कहा जाता है. और इनमें रहने वाले यहूदियों को सेटलर्स. ये फिलीस्तीनियों और बाकी इस्लामिक मुल्कों की नाराजगी का एक बहुत बड़ा कारण है.
इजरायल की ये चिंता है कि ईरान उसके अस्तित्व के लिए खतरा है. खासकर ऐसा ईरान जिसके पास न्यूक्लियर पावर हो. सऊदी और ईरान की तनातनी इस बात पर जगजाहिर है कि इस्लामिक दुनिया की लीडर कौन? ईरान फिलीस्तीन को सपोर्ट कर के ये भी जताना चाहता है कि वो असल में इस्लामिक देशों का रहनुमा है. वो ये दिखाना चाहता है कि सऊदी और जॉर्डन जैसे देश अमेरिका और इजरायल से डरते हैं. ऐसे में वो बम बना कर ये दिखाना चाहता है कि अमेरिकन प्रतिबंधों के बावजूद वो फिलीस्तीन में इजरायली कब्जे के खिलाफ सबसे बड़ी ताकत है.
इन्हीं कारणों से इजरायल लगातार कोशिश करता है कि ईरान के हाथ किसी भी सूरत में ये बम न लगे. नतांज और इश्फान न्यूक्लियर फैसिलिटीज पर हमला कर के उसने अपनी इस कमिटमेंट को और पुख्ता किया है.
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