
अयोध्या भूमि विवाद का पूरा सच, "दी लल्लनटॉप" पर.
राजीव धवन कौन हैं? सबसे पहली बात तो ये कि सुप्रीम कोर्ट में चल रहे बाबरी मस्जिद के मामले में अगली पंक्ति के वकीलों में से एक हैं. सुन्नी वक्फ़ बोर्ड की तरफ से केस लड़ रहे हैं. और बाबरी मस्जिद, उसके इतिहास के साथ खड़े हैं और रामलला विराजमान - मामले के एक और पक्ष - के दावों को ख़ारिज कर रहे हैं.
केस लड़ तो रहे ही हैं, साथ ही धमकियां भी झेल रहे हैं. एक पूर्व सरकारी अधिकारी ने राजीव धवन को ये केस लड़ने के लिए धमकी दी थी, लेकिन राजीव धवन ने अधिकारी के ही खिलाफ कोर्ट में केस दायर कर दिया. साबित करने की कोशिश की कि वे डरते नहीं.
राजीव धवन की कहानी क्या है? साल 1946 में अविभाजित पाकिस्तान में जन्मे राजीव धवन की गिनती सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकीलों में होती है. लेकिन राजीव धवन वकील होने से ज्यादा अपने यूनीक केसों के लिए और अपने हस्तक्षेप के लिए जाने जाते हैं. कई किताबें हैं उनके नाम और कई लेख भी उनके नाम से मकबूल.
कश्मीर मसले पर सुप्रीम कोर्ट को सलाह दे डाली?
कई मौक़ों पर राजीव धवन हर उस एजेंडे के खिलाफ़ दिखाई देते हैं, जिसकी हिमायत देश की सरकार करती है. अयोध्या में राम मंदिर से लेकर कश्मीर से आर्टिकल 370 को निष्प्रभावी क़रार दिए जाने तक. सरकारें और सुप्रीम कोर्ट कई बार एक दूसरे के आमने-सामने होते हैं. कई मुद्दों पर. और ऐसे मौक़ों पर राजीव धवन सरकार की मंशा नहीं, बल्कि क़ानून की पहुंच और मानवाधिकार की ज़रूरत का पक्ष लेते दिखाई देते हैं.
कश्मीर के मुद्दे पर तो "दी कारवां” द्वारा सवाल पूछे जाने पर राजीव धवन ने कहा था,
“अगर ये मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में जाता है, तो सुप्रीम कोर्ट को ये नहीं कहना चाहिए कि कोर्ट इस मसले का हल नहीं निकाल सकती है. क्योंकि मैं यहां ये बात साफ़ करना चाहता हूं कि कोर्ट ज़रूर इस मसले का हल निकाल सकती है. मामले को समझने के लिए कोर्ट को असल आर्टिकल 370 की तह तक जाना होगा, और कोर्ट को इससे जुड़े राष्ट्रपति से आदेश को भी सही तरीक़े से समझना होगा.”वक़ील होने के साथ-साथ राजीव धवन मानवाधिकार कार्यकर्ता भी हैं. और विश्व के मानवाधिकार से जुड़े हुए वकीलों के संगठन इंटरनेशनल कमीशन फ़ोर जुरिस्ट्स के कमिश्नर भी हैं.

शुरुआती पढ़ाई हुई इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से. क़ानून की शुरुआती पढ़ाई यहां से करने के बाद धवन ने रूख किया देश के बाहर. पहले गए केम्ब्रिज विश्वविद्यालय. फिर गए लंदन यूनिवर्सिटी. लंबा समय पढ़ाई करते गुज़ारा. कुछ समय में बड़े संस्थानों में पढ़ाने भी लगे. किन बड़े संस्थानों में? बेलफ़ास्ट की क्वींस यूनिवर्सिटी में, यूनिवर्सिटी ऑफ़ वेस्ट लंदन, यूनिवर्सिटी ऑफ़ विसकोंसिन-मैडिसन, और ऑस्टिन में मौजूद यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्सस में.
कुछ सालों बाद धवन भारत आ गए. और प्रैक्टिस करना शुरू कर दिया. और कुछ सालों बाद यानी 1992 में धवन आ गए सुप्रीम कोर्ट. 46 साल की उम्र में. कुछेक इंटरव्यू में उनके हवाले से लिखा गया है कि वे अभी ख़ुद सोचते हैं कि इस वय में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट आने का रास्ता क्यों चुना, अक्सर ख़ुद राजीव धवन को जवाब नहीं मिलता.
क्या हुआ जब सुप्रीम कोर्ट में आए?
कुछ लोग बताते हैं की सुप्रीम कोर्ट में आते ही धवन के नाम का हल्ला उड़ना शुरू हो गया. कहा गया कि कोर्ट में ऐसा वक़ील आया है जो चुन-चुनकर ऐसे मुद्दे उठाता है, जहां संवैधानिक अधिकार और मानवाधिकार जुड़े रहते हैं. सुप्रीम कोर्ट में आते ही राजीव धवन दो बड़े केसों में शामिल हुए. आरक्षण को लेकर मंडल कमीशन की रिपोर्ट आ चुकी थी और सुप्रीम कोर्ट में लम्बित थी. राजीव धवन इस मामले में शामिल हुए. फिर 1994 में सुप्रीम कोर्ट में बाबरी मस्जिद का भी केस भी आ गया. ये भी राजीव धवन के खाते में आया. और कहते हैं कि इन दो केसों में उनकी दलीलों की बदौलत 1996 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट यानी वरिष्ठ अधिवक्ता का ओहदा मिला.
मंडल कमीशन के केस में राजीव धवन ने अपना स्टैंड साफ़ किया. जाति के आधार पर आरक्षण का तो समर्थन किया, लेकिन इसके राजनीतिक इस्तेमाल की वजह से एक तरह से इसका विरोध भी किया. क्योंकि धवन को साफ़ पता था कि आरक्षण देने या हटाने के नाम पर जातियों का वोट की तरह इस्तेमाल होता रहेगा.

मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करवाने के लिए बड़ा आन्दोलन हुआ
अनुसूचित जातियों और जनजातियों की पदोन्नति के सवाल पर आए नागराज केस में भी सुप्रीम कोर्ट में राजीव धवन कई मौक़ों पर कोर्ट में हुए. चूंकि मंडल केस और कई केसों के दौरान आए फ़ैसलों को संसद में संशोधन बिल लाकर पलट दिया गया था, नागराज केस में राजीव धवन सीधे सरकार के फ़ैसले के खिलाफ़ खड़े नज़र आए. कोर्ट ने धवन की दलीलों का संज्ञान लिया. इस केस में जस्टिस जीवन रेड्डी ने न सिर्फ़ धवन की दलीलें स्वीकार कर लीं, बल्कि उनका हवाला भी दिया. इस केस में फ़ैसला तो आया लेकिन दस सालों से अधिक समय तक संसद से लेकर कोर्ट तक के आरक्षण के तमाम पहलुओं को ध्यान में रखते हुए धवन ने 2008 में “Reserved” नाम से किताब भी लिखी.
और ओहदा तो मिला वरिष्ठ अधिवक्ता का, लेकिन राजीव धवन अपनी आत्मा में वही राजीव धवन रहे. एक बयान में उन्होंने कह दिया,
“एकाध बिरले केस जीत जाने का मतलब ये नहीं है कि वक़ील का बहुत बड़ा बाज़ार बन गया, आप तब भी घास के मैदान में ही बैठकर अपनी रोटी खाते हैं.”किस तरह के केस लड़े? कैसी बातें की?
धीरे-धीरे राजीव धवन का सुप्रीम कोर्ट में वकालती सफ़र आगे निकला. जनहित याचिकाएं दायर कीं. सरिस्का टाइगर रिज़र्व में खनन के खिलाफ़ याचिका दायर करना, सोनभद्र और मध्य प्रदेश में आदिवासियों के अधिकारों को लेकर बनवासी सेवा समिति का केस, सिक्किम की नदी रथोंग चू पर पावर प्रोजेक्ट लगाने के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका, पूर्वोत्तर राज्यों में हथियारबंद सेना की मौजूदगी के केस नए-पुराने केसों में राजीव धवन सुप्रीम कोर्ट में मौजूद रहे.
दो दर्जन से अधिक मामलों में राजीव धवन सुप्रीम कोर्ट के दोस्त, यानी अमीकस क्यूरी रहे. यानी वो शख़्स जो जांच या निर्णय लेने की प्रक्रिया में अदालत का सहयोगी होता है.

अयोध्या मामले में रोजाना सुनवाई चल रही है. और राजीव धवन इस मामले में मुस्लिम पक्ष की ओर से खड़े हैं.
साल 2003. हमने पहले बताया कि केस ही नहीं, उनके रोज़मर्रा के हस्तक्षेप से भी राजीव धवन का हल्ला मचा हुआ था. इस साल अमरीका पहुंच गया ईराक़. लोगों को अमेरिका ने बताया कि जा रहे हैं सद्दाम हुसैन को पकड़ने, लेकिन अंदरखाने से सड़क तक ये बात फैल गयी कि केवल तेल के लिए ऐसा किया जा रहा है. भारत का बड़ा हिस्सा इस मामले पर लगातार चुप था. तब सामने आए राजीव धवन और सुप्रीम कोर्ट के कुछ और वक़ील, जैसे राजिंदर सच्चर, शांति भूषण, पी परमेश्वर राव, कपिल सिब्बल और प्रशांत भूषण. इन सभी ने अमेरिका की कार्रवाई की निंदा की.
लेकिन इसी समय देश का सबसे बड़ा मुद्दा, जिसने राजीव गांधी से लगायत मुरली मनोहर जोशी और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं का भविष्य तय किया, सामने था. 1992 में कारसेवकों ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा दी थी, इस दावे के साथ कि असल में वो जगह राम का जन्मस्थान है. और ये मुद्दा गया इलाहाबाद हाईकोर्ट में. बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी की ओर से इस मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में उठा रहे थे राजीव धवन.
लम्बा खिंचा मामला. हाईकोर्ट से फ़ैसला आया साल 2010 में. कोर्ट ने तीन हिस्सों के बीच विवादित ज़मीन को बाँट दिया था. एक-तिहाई हिस्सा रामलला विराजमान को, एक-तिहाई हिस्सा निर्मोही अखाड़े को और एक-तिहाई को दे दिया सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को. बहुत सारे लोगों ने इस फ़ैसले पर आपत्ति जतायी, लेकिन ख़ुद राजीव धवन ने कहा,
“ये एक तरह का पंचायती फ़ैसला है कि ज़मीन बराबर-बराबर बांट दो. ये मुस्लिमों के क़ानूनी अधिकार छीन लेता है और हिन्दुओं की भावनाओं को क़ानूनी अधिकार में बदल देता है.”
कोर्ट में जजों से भिड़ जाने वाला वक़ील
सुप्रीम कोर्ट में कई ऐसे मौक़े आते रहे हैं जब जजों और वरिष्ठ वकीलों के बीच खींचतान होती है. लेकिन राजीव धवन के साथ तो ऐसा कई मौक़ों पर हो चुका है. और वो भी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिसों के साथ. जज राजीव धवन पर ये आरोप लगाते हैं कि वे आवाज़ ऊंची करके बात करते हैं, लेकिन राजीव धवन के साथ-साथ वकीलों की लॉबी का ये कहना है कि वे न्यायिक प्रक्रिया का तो पूरा सम्मान करते हैं लेकिन कई जजों का वकीलों के प्रति बर्ताव बेहद ख़राब रहा है.

तत्कालीन CJI जस्टिस दीपक मिश्रा से भी भिड़ गए थे राजीव धवन.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा. रंजन गोगोई के ठीक पहले चीफ जस्टिस रहे. कई विवादों में दीपक मिश्रा का नाम आया. केसों के बँटवारे को लेकर सुप्रीम कोर्ट के ही जजों ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स कर दी. साल 2017. राजीव धवन कोर्ट में मौजूद थे. दिल्ली सरकार और दिल्ली के उपराज्यपाल की लड़ाई को लेकर. साथ ही साथ वे अयोध्या मामले में भी कोर्ट में आ रहे थे. दिल्ली मामले की सुनवाई करते हुए एकाध दफ़ा राजीव धवन की आवाज़ ऊंची हो गयी. अयोध्या मामले में राजीव धवन के साथ कपिल सिब्बल भी थे, तो उनसे भी ये ‘ग़लती’ हुई. वकीलों ने कोर्ट में कहा कि उन्हें भरपूर मौक़ा नहीं दिया गया, और कोर्ट से बाहर चले जाने की धमकी दी. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा,
"आवाज़ ऊंची करके बात करने को इस अदालत में टालरेट नहीं किया जाएगा. आप अपने क़ानूनी तथ्यों पर बात करिए. आवाज़ ऊंची करके बात करने का मतलब लगता है कि वरिष्ठ वकीलों के पास क्षमता नहीं है.”इसके बाद दीपक मिश्रा ने कहा,
“अगर बार वकीलों के व्यवहार पर लगाम नहीं लगा सकती है, तो हमें ऐसा करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा.”संभवतः धवन को ये बात बुरी लगी. उन्होंने अपना इस्तीफ़ा लिखा. दीपक मिश्रा के नाम. कड़े शब्दों में. कहा,
“मुझे दिया गया वरिष्ठ वक़ील का चोगा वापिस ले लेने का अधिकार आपके पास है. लेकिन मैं इसे अपने पास अपनी सेवा के वर्षों और एक याद के तौर पर रखना चाहूंगा.”हालांकि बाद में अयोध्या मामले में धवन अदालत में दलीलें पेश कर रहे हैं. इसके पहले भी पूर्व जजों से भी धवन की तीखी बहसें अदालत में हो चुकी हैं. 2013 में 2G स्कैम की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होनी थी. लेकिन जस्टिस जीएस सिंघवी की बेंच ने मामले को मुल्तवी कर दिया. और ख़बरें बताती हैं कि इसी वजह से धवन ने बेंच की आलोचना की.

जे एस खेहर से भी फन गयी थी
इसी मामले में 2014 में भी धवन कोर्ट में आए. जस्टिस केएस राधाकृष्णन और जेएस खेहार की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी. फिर से धवन ने किसी मुद्दे पर आलोचना की और उनके कामकाज के तरीक़ों को लेकर अदालत ने भी गम्भीर टिप्पणी की.
यही मामला गया तत्कालीन चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की बेंच के पास. ख़बरें बताती हैं की 2014 और 2016 में दो मौक़ों पर जस्टिस ठाकुर और धवन के बीच बहस हुई. और इसके बाद जस्टिस ठाकुर ने कहा कि कुछ वक़ील कोर्ट का अपमान करते हैं.
राजीव धवन के पास क़िस्सों, कहानियों, किताबों और लेखों का अंबार है. इंडिया टुडे समेत कई पत्रिकाओं-अख़बारों में राजीव धवन लगातार लिख रहे हैं. उनके कई केसों में क़ानून में संशोधन किया गया है. तभी एक बातचीत में राजीव धवन से पूछा गया कि क्या उन्हें एक वक़ील की तरह याद रखा जाएगा, तो उन्होंने जवाब दिया,
“नहीं. लेकिन कोई भी सिस्टम या संस्थान नयापन लाने की कार्रवाई का हिस्सा होता है. मैं मानना चाहता हूं कि ऐसे कठिन समयों में मैं वो नयापन लाने की कोशिश का हिस्सा था.”
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