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'पुरानी पेंशन स्कीम की जरूरत नहीं... ' रघुराम राजन ने ऐसा क्यों कहा? बाकी अर्थशास्त्री क्या बोले?

UPS Pension Scheme आ गई है, लेकिन पेंशन स्कीम्स को लेकर रघुराम राजन और अन्य अर्थशात्री क्या सोचते हैं?

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केंद्र सरकार ने साफ कह दिया कि OPS पर लौटने का कोई विचार नहीं है. (India Today)

सरकार ने एक नई पेंशन स्कीम का एलान किया है. नाम है UPS- UPS- Unified Pension Scheme. इसे नेशनल पेंशन स्‍कीम (NPS) के समांतर पेश किया गया है. यानी सरकारी कर्मचारियों के लिए NPS और UPS चुनने का विकल्‍प रहेगा. माना जा रहा है कि ये नई स्कीम कर्मचारियों की नाराजगी दूर कर सकती है. और इससे ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) की मांग भी बंद हो सकती है.

ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) और NPS पर छिड़ी बहस में RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का कहना है कि वो NPS के समर्थन में हैं. दी लल्लनटॉप की खास पेशकश ‘गेस्ट इन द न्यूज़रूम’ में आए रघुराम राजन का मानना है कि सरकारी कर्मचारियों के लिए OPS की जरूरत नहीं है. इसके लिए उन्होंने तर्क भी दिए. क्या कहा उन्होंने आगे जानते हैं. उन्होंने कहा,

"वो लोग, जो सरकारी नौकरियों में हैं, उनके लिए एक बड़े डायरेक्ट ट्रांसफर करने की अभी जरूरत नहीं है. सरकारी कर्मचारी आर्थिक रूप से ठीक हैसियत रखते हैं. मैं तो NPS के पक्ष में हूं."

रघुराम राजन NPS के पक्ष में, बाकी एक्सपर्ट?

OPS का मुद्दा पिछले कुछ सालों से एक बार फिर चर्चा में लौट आया है. इसकी वजह है राज्यों के चुनाव में गैर-NDA पार्टियों का पुरानी पेंशन पद्धति पर लौटने का वादा. पिछले डेढ़-दो साल में जिस राज्य में चुनाव हुए या जहां कांग्रेस शासन में थी, OPS का वादा किया गया. हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और पंजाब में OPS को वापस लाया जा चुका है. लेकिन केंद्र सरकार और बीजेपी इस मुद्दे से दूर नज़र आती है. बीजेपी ने किसी राज्य में OPS का वादा नहीं किया. और केंद्र की तरफ से भी ये साफ कर दिया गया है कि फिलहाल सरकार का OPS पर लौटने का कोई इरादा नहीं है.

OPS को रद्द करते हुए NPS स्कीम जनवरी 2004 से लागू हुई थी. ये फैसला भी NDA की अटल  बिहारी वाजपेई की सरकार में लिया गया था. OPS के तहत किसी भी कर्मचारी की नौकरी के आखिरी महीने में जो तन्ख्वाह होगी, रिटायरमेंट के बाद उसकी आधी पेंशन दी जाएगी. कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी को 30 प्रतिशत पेंशन दी जाएगी. इस व्यवस्था को दिसंबर 2003 से समाप्त कर दिया गया था.

NPS की बात करें तो इसमें नौकरी के दौरान हर महीने कर्मचारी को अपनी सैलरी का 10 प्रतिशत जमा कराना होगा. सरकार इसके साथ 14 प्रतिशत जमा करेगी. रिटायमेंट के बाद ये पैसा कर्मचारी का होगा. इसी से पेंशन मिलेगी. लेकिन इस व्यवस्था में OPS की तरह ये तय नहीं है कि पेंशन कितनी मिलेगी.

OPS बनाम NPS की डिबेट में रघुराम राजन का तर्क हमने देखा. आइए एक नज़र डालते हैं कि दूसरे अर्थशास्त्री इस विषय पर क्या राय रखते हैं.

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प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समूह की सदस्य शमिका रवि ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में इस पर एक लेखा लिखा है. शमिका के मुताबिक,

"OPS पर लौटने का मतलब है जो पैसा राज्य के विकास में खर्च होना है, जिससे गरीबों को फायदा होगा, उस पैसे को एक छोटे समूह के लोगों को दे दिया जाए जो कि पूरी नौकरी के दौरान आर्थिक रूप से सुरक्षित और प्रिविलेज्ड रहे हैं. इससे इंफ्रास्ट्रक्चर और दूसरे विकास के कामों पर असर पड़ेगा और उत्पादकता में कमी आएगी. अगर आर्थिक तौर पर देखा जाए तो भविष्य की संभावनाएं कम होंगी. संक्षेप में कहें, तो OPS पर वापस लौटने से राज्यों में असमानता बढ़ेगी और आर्थिक विकास कम होगा."

शमिका की तरह ही एक्सिस बैंक के चीफ इकॉनमिस्ट सौगत भट्टाचार्य का भी मानना है कि OPS वापस लाने से हम उन्हें ही लाभ दे रहे हैं जो पहले से लाभ ले रहे हैं. बिज़नेस टुडे की एक समिट में सौगत कहते हैं,

"ओपीएस के साथ समस्या यह है कि इससे उन लोगों के एक समूह को फायदा हो रहा है जो पहले से शीर्ष पर हैं. अगर आप OPS के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाएंगे तो विकास के प्रति आपकी प्रतिबद्धता प्रभावित होगी. यह लंबे समय तक टिकने वाला नहीं है."

वहीं CRISIL (Credit Rating Information Services of India Limited) के चीफ इकॉनमिस्ट डीके जोशी कहते हैं,

"OPS एक ऐसी व्यवस्था में जिसमें कोई फंड नहीं है. इसलिए इसमें ज्यादा भार पड़ता है. वैश्विक स्तर पर इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि अनफंडेड पेंशन योजनाएं एक समय पर वित्तीय तनाव का कारण बन जाती हैं. NPS योजना काफी बेहतर है. कम से कम इसके लिए फंड तो है."

वहीं, बैंक ऑफ बड़ौदा के चीफ इकॉनमिस्ट मदन सबनवीस इन सबसे इतर राय रखते हैं. उनका कहना है-

"जैसे सब्सिडी और बाकी खर्च हैं, वैसे ही OPS को प्रतिबद्धता से लागू किया जाना चाहिए. यह एक राजनीतिक मुद्दे से कहीं ज्यादा है. आखिरकार, निम्न आय वर्ग का ध्यान रखना सरकार की ही जिम्मेदारी है."

सबनवीस जिस जिम्मेदारी की याद दिला रहे हैं, सरकार उससे बढ़ते आर्थिक बोझ की वजह से कतरा रही है. पिछले 30 सालों में सभी राज्यों को मिलाकर देखा जाए तो पेंशन का खर्च 100 गुना से ज्यादा बढ़ गया है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक 1990-91 में पेंशन पर कुल खर्च रु. 3,131 करोड़ था. जो 2020-21 में बढ़कर रु. 3 लाख 86,001 करोड़ हो गया. कुछ राज्य तो ऐसे हैं जहां राजस्व का बड़ा हिस्सा पेंशन में जा रहा है. सबसे ज्यादा हिमाचल प्रदेश, जहां राजस्व का 80 प्रतिशत हिस्सा पेंशन में जा रहा है. वहीं पंजाब में 35 प्रतिशत, राजस्थान में 30 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में 24 प्रतिशत खर्च हो रहा है.

OPS समेत अन्य आर्थिक मसलों पर पूर्व RBI गवर्नर ने क्या कहा, उसके लिए आपको ‘गेस्ट इन द न्यूज़रूम’ का हालिया एपिसोड देखना होगा. 16 दिसंबर को वेबसाइट पर और 17 दिसंबर को undefined पर.

वीडियो: पुरानी पेंशन स्कीम पर RBI ने डरा दिया, नई स्कीम की तुलना में राज्यों का खर्च कितना बढ़ेगा?