अंकिता भंडारी की कथित हत्या ने उत्तराखंड के लोगों को हिलाकर रख दिया है. मामले के इतना तूल पकड़ लेने की कई वजहें हैं. मसलन, हत्या के मुख्य आरोपी पुलकित आर्य का अंकिता पर कथित रूप से 'खास सर्विस' के लिए दबाव बनाना, उसके पिता का बीजेपी कनेक्शन, वनतारा रिजॉर्ट पर बुलडोजर कार्रवाई होना, उत्तराखंड की अंदरूनी कानून व्यवस्था की कमजोरियां. इन सब ने इस केस को लेकर अंकिता के परिवार और लोगों के मन में कई सवाल पैदा कर दिए हैं.
अंकिता मर्डर केस : स्पेशल सर्विस मांगने वाला वीआईपी कौन था? बुलडोज़र चलाकर सबूत मिटाए गए?
अंकिता केस के वो सवाल जो आजतक उलझे हुए हैं!

सवाल 1 - रिजॉर्ट पर बुलडोजर क्यों चलाया?
अंकिता भंडारी की हत्या की खबर सामने आने के बाद सत्तारूढ़ बीजेपी और पुष्कर सिंह धामी (Uttarakhand CM Pushkar Singh Dhami) सरकार ऐक्टिव मोड में नजर आई. पार्टी ने पुलकित आर्य के पिता विनोद आर्य को निकाल दिया. वहीं पुलकित के वनतारा रिजॉर्ट (Pulkit's resort) पर सरकार ने बुलडोजर चला दिया. उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने इसकी पुष्टि की. अगले ही दिन रिजॉर्ट के पीछे के हिस्से में भीड़ ने आग लगा दी. इसके बाद सवाल उठने लगे कि क्या ये सब सबूत मिटाने के लिए किया गया.
दरअसल पुलकित आर्य पर रिजॉर्ट में प्रॉस्टिट्यूशन और ड्रग का कारोबार चलाने के अलावा महिलाकर्मियों से जबरदस्ती करने का आरोप लगा है. उसने कथित रूप से अंकिता भंडारी से भी बदतमीजी की और उन पर कथित वीआईपी मेहमानों को 'स्पेशल सर्विस' देने का दबाव बनाया. रिजॉर्ट की एक पूर्व महिला कर्मचारी ने भी पुलकित पर यही आरोप लगाए हैं.
ये जानकारियां सामने आईं तो रिजॉर्ट पर हुई बुलडोजर कार्रवाई सवालों के घेरे में आ गई. इसकी एक और वजह है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक जब प्रशासन से पूछा गया कि आखिर पुलकित के रिजॉर्ट पर बुलडोजर चलाने की अनुमति किसने दी, तो उसे पता ही नहीं था कि इसके आदेश किसकी तरफ से दिए गए थे. ये मामले का एक बड़ा एंगल है, जिसमें किसी के पास स्पष्ट तौर पर इस बात के जवाब नहीं थे कि रिज़ॉर्ट पर बुलडोज़र किसके कहने पर चलाया गया.
इस बीच हत्या से गुस्साए लोगों की भीड़ ने रिजॉर्ट के पिछले हिस्से में आग लगा दी. उस तरफ पुलकित की अचार की फैक्ट्री है. उधर भी तोड़फोड़ की गई. इस जनाक्रोश पर भी सवाल उठे. कहा गया कि चूंकि अंकिता रिजॉर्ट में काम करती थी, लिहाजा भीड़ का सहारा लेते हुए रिजॉर्ट में आग लगाकर केस से जुड़े सबूत मिटाने की कोशिश की गई है. अंकिता के परिवार ने भी रिजॉर्ट में तोड़फोड़ और आगजनी के बाद यही आरोप लगाते हुए उनका अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया था.
हालांकि सरकार की तरफ से साफ किया गया था कि केस से जुड़े सबूतों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है. पुलिस के पास पर्याप्त सबूत हैं, ऐसा दावा किया.
सवाल 2 - क्या पटवारी ने मामला दबाया?
उत्तराखंड की कानून व्यवस्था राजस्व विभाग के अधीन रही है. यहां पटवारी, नायब तहसीलदार जैसे पदाधिकारियों को पुलिसकर्मियों वाले अधिकार दिए गए हैं. हालांकि अब ज्यादातर इलाकों में कानून व्यवस्था रेग्युलर पुलिस के पास है. लेकिन पौड़ी जिले के कई इलाकों में अभी भी रेवेन्यू डिपार्टमेंट लॉ एंड ऑर्डर देखता है. अंकिता भंडारी की हत्या के बाद अंग्रेजी शासन के समय की इस कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े हो गए हैं.
दरअसल, इलाके के एक पटवारी वैभव प्रताप पर आरोप है कि उसने अंकिता की गुमशुदगी के दौरान ही मामला दबाने की कोशिश की थी. आजतक की रिपोर्ट के मुताबिक वैभव प्रताप जिले के गंगाभोगपुर तल्ला बनास क्षेत्र का पटवारी है. आरोप है कि उसे अंकिता के गायब होने की खबर पहले ही लग चुकी थी, लेकिन कार्रवाई करने के बजाय वो छुट्टी पर चला गया और एक दूसरे पटवारी विवेक को चार्ज दे गया. बाद में विवेक को लापरवाही के आरोप में सस्पेंड कर दिया गया. लेकिन मामला बढ़ा तो वैभव पर भी निलंबन की गाज गिर गई.
कार्रवाई के बाद आजतक से बातचीत में वैभव का कहना था कि राजस्व विभाग पर राज्य की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी का अतिरिक्त भार क्यों डाला जाता है. उसके मुताबिक पिछले एक साल से विभाग के कर्मचारी इस व्यवस्था को खत्म करने की मांग सरकार से कर रहे हैं.
सवाल 3 - वो वीआईपी कौन है जिसे ‘स्पेशल सर्विस’ देने की बात अंकिता से कही जा रही थी?
फिलहाल इस सवाल का कोई जवाब नहीं है. रिपोर्टों में इस 'वीवीआईपी' के बारे में ऐसी कोई जानकारी भी नहीं है, जिससे अनुमान लगाया जा सके कि ये शख्स कौन है. केवल इतना बताया गया है कि ये कथित वीआईपी व्यक्ति भी रिज़ॉर्ट में ठहरा हुआ था. खबरों की मानें तो वो रिज़ॉर्ट के उसी हिस्से में ठहरा हुआ था, जिस हिस्से में आग और बुलडोजर की कार्रवाई हुई.
सवाल 4 - अंकिता का अंतिम संस्कार जल्दबाजी में क्यों?
आम लोगों के साथ अंकिता की मां ने भी पुलिस-प्रशासन से ये सवाल पूछा है. आजतक से बातचीत में उन्होंने कहा कि परिवार को धोखे में रखकर अंकिता का अंतिम संस्कार किया गया. उन्होंने ये भी कहा है कि उन्हें आखिरी दफा अंकिता का चेहरा नहीं देखने दिया गया. नवभारत टाइम्स की एक खबर के मुताबिक परिजनों ने पहले अंकिता का अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया था. बाद में सीएम पुष्कर सिंह धामी का फोन आने के बाद अंकिता के पिता राजी हुए. लेकिन खबर ये भी बताती है कि अंकित के पिता ने पुलिस पर सबूत मिटाने का आरोप लगाया था.
जानकार क्या कहते हैं?दी लल्लनटॉप ने मामले से जुड़े इन पहुलओं पर एक पूर्व IPS अधिकारी से बात की. हमने उनसे पूछा कि किसी अपराध की जांच के दौरान पुलिस सबूतों की सुरक्षा कैसे करती है. नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर अधिकारी ने हमें बताया,
"प्रॉसिक्यूशन की नजर से देखें तो अपराध वहीं से शुरू हो गया जब आरोपी लड़की को अपने साथ लेकर गए. इस लिहाज से जो रिजॉर्ट है, वो भी सीन ऑफ क्राइम हो जाता है. पुलिस की जांच और सारे सबूत इकट्ठा होने तक हर क्राइमसीन की सुरक्षा की जानी चाहिए. क्योंकि वो वहां से सबूत इकट्ठे करती है. कोई डॉक्युमेंट है, फोटो है. वो सब जब तक रहता है, तब तक वो जगह क्राइमसीन रहती है. उसके बाद उस जगह को रिलीज किया जाता है. प्रक्रिया तो यही है.
वहां (रिजॉर्ट) जो बुलडोजर चलाया गया वो प्रोसीजर भी गैरकानूनी है. अगर वो एक अवैध निर्माण भी था तो भी उस पर कार्रवाई से पहले आपको एक तय प्रक्रिया का पालन करना होता है. ये पता नहीं किस प्रक्रिया में किया गया है? हो सकता था कि वहां मामले से जुड़ा कोई सबूत होता. क्या पता वहां कोई कैमरा मिलता. अंकिता वहां काम करती थी. क्या मालूम उसके कुछ डॉक्युमेंट वहां मिलते. वो रिसेप्शनिस्ट थी. तो इन सबकी जांच करने की जरूरत होती है. कुछ कह नहीं सकते जब तक कि उसे देखते नहीं. ये भी संभावना है कि वहां कोई सबूत नहीं था. लेकिन बुलडोजर कार्रवाई की वजह से अब ये हाइपोथेटिकल सवाल तो बन ही गया है कि क्या वहां कोई सबूत था."
हमने पूर्व IPS से पूछा कि अपराध की जांच में क्राइमसीन की क्या अहमियत है और क्या उससे छेड़छाड़ की जा सकती है. अधिकारी ने बताया,
"क्राइमसीन बहुत जरूरी है. वहीं से साक्ष्य मिलते हैं. अभी तो कुछ भी चल रहा है. लेकिन जब आप प्रॉसिक्यूशन के साथ कोर्ट में जाते हैं तो आपको हर चीज का सबूत देना होता है और वो क्राइम सीन से मिलता है. खाली हवाई थ्योरी के आधार पर तो चालान भी नहीं किया जा सकता. आरोपी छूट जाएगा कोर्ट से. इसलिए पूरे संरक्षण के साथ जब तक क्राइमसीन से सबूत ना लिए जाएं तब तक उससे छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए. हमारे यहां तो शायद क्राइमसीन पर लाइन वगैरह डालने का प्रचलन है नहीं."
पूर्व पुलिस अधिकारी ने कहा कि क्राइमसीन पर पुलिस के पहुंचने से पहले ही सबूत नष्ट कर दिए जाएं तो आगे के प्रॉसिक्यूशन प्रोसेस पर सवाल खड़ा हो जाता है. इसलिए घटनास्थल को सुरक्षित रखना बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा कि इस केस में वनतारा रिजॉर्ट क्राइमसीन बनता है.
हमने ये भी पूछा कि अगर किसी भी वजह से क्राइमसीन पर मौजूद सबूत आंशिक या पूरी तरह से नष्ट हो जाएं तो इसका केस पर क्या असर पड़ेगा. उन्होंने बताया,
“आईपीसी में प्रावधान हैं कि अगर कोई जानबूझकर सबूत मिटाने का काम करता है तो ये अपराध है. लेकिन यहां तो अब पता ही नहीं कि वहां कोई सबूत था भी या नहीं. कोर्ट की प्रक्रिया तो इस पर निर्भर करती है. अब होना ये चाहिए कि जिन्होंने ये काम किया उन पर ऐक्शन होना चाहिए कि आपने बिना प्रोसीजर के कैसे तोड़फोड़ की या किसी को आगजनी करने दी. रिजॉर्ट में आग लगाना भी अपराध है.”
अंकिता भंडारी मर्डर केस ने उत्तराखंड की सुरक्षा और कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं. राज्य में राजस्व विभाग ला एंड ऑर्डर का काम देखता रहा है जिस पर अब आपत्तियां जताई जा रही हैं. इसे लेकर पूर्व आईपीएस ने कहा,
"रेवेन्यू ऐक्ट के तहत उत्तराखंड में बहुत पहले राजस्व विभाग को पुलिस के अधिकार दे दिए गए थे. लेकिन बाद में धीरे-धीरे काफी इलाका राजस्व पुलिस से रेग्युलर पुलिस के पास आने लगा. दूरदराज के इलाकों में पुलिस थाने खुलने लगे. हालांकि आज भी ऐसे इलाके हैं जहां राजस्व पुलिस के अधिकार क्षेत्र में हैं. पटवारी, तहसीलदार को पुलिस जैसे अधिकार होते हैं."
हालांकि अधिकारी ने बताया कि अगर किसी केस में लगता है कि उसकी जांच राजस्व पुलिस नहीं कर पाएगी तो उसे रेग्युलर पुलिस को दे दिया जाता है. उन्होंने कहा कि हेरिटेज सिस्टम के तहत ये पटवारी वाली कानून व्यवस्था अब बिल्कुल कारगर नहीं है.
अंकिता के पिता ने कहा- जब तक पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट नहीं, तब तक अंतिम संस्कार नहीं