
कॉलेज में जीतेंद्र को देखकर आया हीरो बनने का ख्याल अनिरुद्ध पहाड़ी थे. पहाड़ी कहने से मेरा अर्थ देहरादून से था. मिलेनियल्स को हिल स्टेशन घिसा हुआ शब्द लगता है, उनकी कूलनेस 'पहाड़' कहने से बढ़ती है. खैर, देहरादून के विकास नगर में अनिरुद्ध का जन्म 20 दिसंबर, 1949 को हुआ था. पापा पहाड़ी बाज़ार में आलू और राजमा जैसी चीज़ों के डीलर थे. कुल 10 भाई-बहनों में अनिरुद्ध आठवें नंबर पर थे. 1967 में आसाराम इंटर कॉलेज, विकास नगर से 12वीं पास करने के बाद देहरादून के श्री गुरु राम राय कॉलेज में एडमिशन ले लिया. बीएससी (Bachelor Of Science) में. अब कॉलेज घर से 40 किलोमीटर दूर था. आने-जाने में दिक्कत होती थी. इसलिए देहरादून को अपना बेस बना लिया. कॉलेज में पढ़ाई कम पॉलिटिक्स ज़्यादा हो रही थी. कॉलेज में रौब भी खूब चलता. तगड़ी कद-काठी के थे न. इन्हीं दिनों में एक बार जीतेंद्र और अपर्णा सेन देहरादून में फिल्म 'विश्वास' की शूटिंग करने आए. जब अनिरुद्ध उनके होटल उन्हें देखने गए, तो वहां भीड़ देखकर चकरा गए. उन्हें लगा लाइफ में कुछ ऐसा करना है कि अपने को भी पब्लिक देखने आए. फिल्मों के प्रति लगाव बचपन से ही था लेकिन अब वो सीरियस होने लगा था. अब अनिरुद्ध को हीरो बनना था.

अपनी पहली फिल्म 'पुराना मंदिर' के एक सीन में अनिरुद्ध अजय अग्रवाल.
फेल हुए तो कॉलेज छोड़कर मुंबई भाग गए अनिरुद्ध ने देहरादून में सिर्फ एक साल पढ़ाई की. 1968 में उनका सेलेक्शन रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया. उस कॉलेज को अब आईआईटी रुड़की के नाम से जाना जाता है. स्कूल में ड्रामा वगैरह करते थे, वो सब कॉलेज में भी चालू कर दिया. इंजीनियरिंग का पहला साल एकदम मक्खन निकला. लेकिन दूसरे साल आ गई सप्लीमेंट्री. ये देखकर अनिरुद्ध पैनिक कर गए. कुछ समझ नहीं आया, तो कॉलेज में छुट्टी की अर्जी डाल दी. वजह बताई कि आगे की पढ़ाई के लिए पैसे कमाने हैं. 1969 में कॉलेज छोड़ा और मुंबई निकल गए. दादर स्टेशन पर उतरने के बाद किसी तरह देहरादून के एक जानने वाले का घर ढूंढ़ा. कुछ दिन वहां रहे, फिर अपने बड़े भाई के दोस्त के घर चले गए. घरवालों को ये भी नहीं पता कि लड़का फेल हो गया है. उन्हें बस इतना पता है कि भाग गया है. भाई के दोस्त के यहां से निकलकर एक गेस्ट हाउस में शिफ्ट हो गए. लेकिन फिर पैसे खत्म हो गए. न खाने को खाना था, न रहने को छत. कई रातें भूखे पेट स्टेशन पर गुज़ार दिए. खार स्टेशन पर एक दिन कॉलेज का सीनियर मिल गया. हालत देखकर मामला समझ गया. अनिरुद्ध के लिए ट्रेन की टिकट खरीदी और अपने घर मेरठ ले आया. वहां से खिला-नहलाकर देहरादून भेजा.

अपनी जवानी के दिनों में और दूसरी तस्वीर में फिल्मों में आने के बाद वाले अनिरुद्ध.
इंटरव्यू देने गए और मिथुन से पक्की दोस्ती गांठ आए देहरादून लौट आने के बावजूद अनिरुद्ध के सिर से फिल्मों के खुमार नहीं उतरा था. उन्होंने पुणे फिल्म इंस्टिट्यूट में अप्लाई किया. इंटरव्यू और ऑडिशन के मुंबई आए. और इंस्टिट्यूट के लिए चुन लिए गए. अपने एक इंटरव्यू में अनिरुद्ध बताते हैं कि उस ऑडिशन में मिथुन और प्रेमेंद्र जैसे एक्टर्स थे. और उस इंटरव्यू वाली बातचीत के दौरान ही उनकी दोनों से दोस्ती हो गई. लेकिन फैमिली का अलग प्रेशर था. घर से धमकी ये मिली थी कि अगर इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी नहीं की, तो घर से एक पैसा नहीं मिलेगा. मजबूरन अनिरुद्ध को रुड़की लौटना पड़ा. 1974 में वो यहां सिविल इंजीनियर बनकर निकले. लेकिन कॉलेज में बहुत फसाद मचा के आए थे, इसलिए डिसिप्लीन वाले बॉक्स में बोल्ड और कैपिटल में ज़ीरो लिखा हुआ था. अनिरुद्ध को डर लगने लगा कि उन्हें कहीं नौकरी ही नहीं मिलेगी. ये सब सोचा और मुंबई चले गए. वहां अपने एक दोस्त के यहां ठहरे और बिल्डर्स के साथ कंसट्रक्शन बिज़नेस में लग गए. पैसे-वैसे आने लगे थे. लाइफ सेटल हो रही थी.

फिर रियल लाइफ में लोग अनिरुद्ध को देखकर डरने लगे 1978 के आसपास अनिरुद्ध को ये लगने लगा कि लोग उन्हें देखकर डर रहे हैं. पहले तो उन्हें समझ नहीं आया. बहुत गौर करने पर पता चला कि उनके शरीर के कई हिस्से बड़े हो रहे हैं. उनके कान, उंगलियां, पांव और नाक फैलने लगे. और हाइट तो 6 फुट 4 इंच थी ही. जब मेडिकल चेक अप से गुज़रे तब पता चला कि उनके पिट्यूटरी ग्लैंड में ट्यूमर है. इससे शरीर के हिस्से फैलने लगते हैं. अभी ये सब चल ही रहा था कि अचानक एक दिन अनिरुद्ध को एक आदमी मिला. उसने फॉर्मल वाली बातचीत करने के बाद पूछा कि क्या वो फिल्मों में काम करना चाहते हैं. अनिरुद्ध की पुरानी इच्छाएं हिलोरे मारने लगीं. कहा हां करेंगे. फिर उसी आदमी के कहने पर रामसे ब्रदर्स के ऑफिस पहुंच गए. लेकिन वहां कुछ ऐसा हुआ जो अनिरुद्ध ने अपने सपने में भी नहीं सोचा होगा.

फिल्म 'पुराना मंदिर' के एक सीन में अनिरुद्ध. दूसरी तरफ इस फिल्म के मेकर्स यानी अपने पिता के साथ रामसे बंधु.
अनिरुद्ध को देखते ही रामसे ब्रदर्स खुशी से चिल्लाने लगे रामसे ब्रदर्स तब तक 'दो गज ज़मीन के नीचे', 'दरवाज़ा' और 'और कौन?' जैसी फिल्में बना चुके थे. अपनी अगली फिल्म 'पुराना मंदिर' की शूटिंग भी तकरीबन खत्म कर ली थी. बस शैतान वाले पोर्शन शूट करने बाकी थे. ऐसे में अनिरुद्ध रामसे ब्रदर्स के ऑफिस पहुंचे. इन्हें देखते ही रामसे भाई लोग चिल्लाने लगे. खुशी के मारे. क्योंकि 'पुराना मंदिर' के लिए एक भयानक चेहरे वाला आदमी चाहिए था, जिससे लोग डर सकें. अनिरुद्ध के ऑफिस पहुंचने से दो काम हो गए- रामसे भाइयों को शैतान मिल गया और अनिरुद्ध को फिल्मों में काम. 1984 में 'पुराना मंदिर' रिलीज़ हुई और रन अवे हिट रही. लोगों ने उस भूत से दिखने वाले 'सामरी' को भी खूब पसंद किया. इस कैरेक्टर की पॉपुलैरिटी को कैश करने के लिए रामसे ब्रदर्स ने अनिरुद्ध को लीड में लेकर 'सामरी 3डी' नाम की फिल्म बना दी. जो हॉलीवुड में मार्वल्स अभी कर रहा है (कैरेक्टर स्पिन ऑफ), वो रामसे ब्रदर्स ने 90 के दशक में ही कर दिया था. तब अनिरुद्ध फिल्म क्रेडिट में अपना नाम 'अजय अग्रवाल' लिखाते थे. उन्हें अनिरुद्ध भारी लगता था. आम तौर पर अनिरुद्ध को लोग रामसे ब्रदर्स की फिल्मों का एक्टर मान लेते हैं. लेकिन पते की बात ये है कि अनिरुद्ध ने उनके साथ सिर्फ तीन फिल्में ही की थीं. और तीनों में ही शैतान या भूत-प्रेत बने. वो फिल्मों में काम करने के साथ-साथ अपना कंसट्रक्शन बिज़नेस भी हैंडल कर रहे थे. फिल्म 'बंद दरवाज़ा' का एक डरावना सीन आप नीचे देख सकते हैं:

पत्नी नीलम और बेटे असीम के साथ एक्टर और बिज़नेसमैन अनिरुद्ध अग्रवाल.
जब फैल गई अनिरुद्ध के मरने की खबर अनिरुद्ध अग्रवाल को फिल्मों में काम करते देख, उनके जैसी ही बीमारी से जूझ़ने वाले कुछ और लोग फिल्मों में आए. इनमें दो नाम खास थे गोरिल्ला और रणधीर. 1988 में रामसे ब्रदर्स की एक फिल्म रिलीज़ हुई ' वीराना'. इसमें गोरिल्ला ने काम किया था. उनकी भी बॉडी अनिरुद्ध जैसी ही डिफॉर्म हो गई थी. इसलिए लोगों को लगा कि ये गोरिल्ला नहीं अनिरुद्ध ही हैं. कुछ ही दिनों के बाद गैंगरीन की वजह से गोरिल्ला की मौत हो गई. इससे लोगों में ये खबर फैल गई कि अनिरुद्ध की मौत हो गई है. वहीं रणधीर ने 'लोहा' और 'त्रिदेव' जैसी फिल्मों में काम किया. अनिरुद्ध 2000 में मेला की शूटिंग वगैरह निपटाने के बाद भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के साथ बतौर सिविल कॉन्ट्रैक्टर जुड़ गए. उसके बाद उनकी दो-तीन फिल्में रिलीज़ हुईं लेकिन वो फिल्मी दुनिया से बाहर होने लगे थे. अपने एक इंटरव्यू में अनिरुद्ध बताते हैं कि 2010 तक वो भाभा एटॉमिक रिसर्च वाले काम में इतने व्यस्त हो गए कि उनका फिल्मों से संबंध खत्म ही हो गया.

अब ऐसे दिखते हैं अपने समय के सबसे भयावह एक्टर अनिरुद्ध अग्रवाल,
वो एक्टर, जिसे सुपरहिट फिल्में करने का अफसोस है 2018 में रीडर्स डाइजेस्ट में छपे उनके एक इंटरव्यू के मुताबिक वो अपनी फिल्में देखनी बिलकुल पसंद नहीं करते. वो कहते हैं-
''मज़ा नहीं आता. मैं कुछ अलग करना चाहता था, जहां मुझे थोड़ी मेहनत और ऊर्जा खर्च करनी पड़ती. लेकिन किसी को नहीं लगा कि मैं इन रोल्स से इतर भी कुछ कर सकता हूं. कोई मुझे नॉर्मल आदमी के तौर पर अपनी फिल्म में नहीं लेता था.''भले ही उनके निभाए किरदार जनता के दिमाग में बैठ गए हों. उनकी फिल्में खूब देखी गई हों. लेकिन अनिरुद्ध को सामरी और नेवला जैसे कैरेक्टर प्ले करने का बहुत अफसोस है. अनिरुद्ध को लगता है कि वो एक पब्लिक फिगर थे, जो पब्लिक की भीड़ में ही कहीं खो गए.
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