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पास की नजर कमजोर है तो चश्मा लगाए रखें, PresVu ड्रॉप पर रोक लग गई है

DGCI suspends PresVu Eye Drop: ड्रॉप बनाने वाली कंपनी का दावा था कि ये भारत की पहली आई ड्रॉप है, जिसे पढ़ने वाले चश्मे को कम करने के लिए बनाया गया है.

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प्रेसवू आई ड्रॉप की प्रतिक्रिया आ गई है. (सांकेतिक फ़ोटो)

उम्र के साथ पास की नज़र कमज़ोर होने की कंडिशन को कहते हैं, प्रेसबायोपिया (presbyopia). बहुत आम स्थिति है. दुनियाभर में एक अरब से भी ज़्यादा लोग प्रेसबायोपिया से ग्रस्त हैं. हाल ही में ख़बर आई थी कि प्रेसबायोपिया के जो मरीज़ चश्मा या लेंस लगाते हैं, उनके लिए एक आई ड्रॉप को मंज़ूरी मिल गई है. दवा का नाम, प्रेस्वू आई ड्रॉप. दाम, 350 रुपये. DGCI यानी ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया की मंज़ूरी के बाद ये दवा अक्टूबर से बिकने वाली थी. इसे चश्मा लगाने वालों के लिए क्रांति के तौर पर बेचा-बताया गया, कि इसके आते ही पढ़ने वाले चश्मे की ज़रूरत ही ख़त्म. मगर अब दवाओं की नियामक एजेंसी, केंद्रीय औषधी मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने इसके बनने और बिकने पर रोक लगा दी है.

रोक क्यों लगी?

तो पिछले हफ़्ते मुंबई की एन्टोड फ़ार्मास्यूटिकल्स ने पिलो-कार्पाइन के इस्तेमाल से बनी प्रेसवू आई ड्रॉप लॉन्च की. इस दावे के साथ कि ये दवा पुतलियों के आकार को कम करके ‘प्रेसबायोपिया’ का इलाज करती है. दावा कि ये भारत की पहली आई ड्रॉप है, जिसे पढ़ने वाले चश्मे को कम करने के लिए बनाया गया है. प्रेस कॉन्फ्रेंस और इंटरव्यू में कंपनी ने यहां तक दावा कर दिया कि दवा की एक बूंद सिर्फ 15 मिनट में असर करना शुरू कर देती है और इसका असर छह घंटों तक रहता है. अगर पहली बूंद के तीन से छह घंटे के भीतर दूसरी बूंद भी डाली जाए, तो असर और लंबे समय तक रहेगा.

बीती 20 अगस्त को DGCI ने इस ड्रॉप बेचने को अनुमति दे दी थी. 3 सितंबर को कंपनी ने प्रेस कॉन्फ़्रेस में दावे कर डाले. फिर कंपनी के इतने भारी-भरकम दावों को देखते हुए 4 सितंबर को नियामक ने कंपनी से सफ़ाई मांगी. जवाब में कंपनी ने कहा कि ये आई ड्रॉप पढ़ने वाले चश्मों का एक विकल्प है. हालांकि, ये जानकारी भी दी गई है कि टेस्ट्स के दौरान प्रतिभागियों ने चश्मा नहीं पहना था.

फिर DGCI ने संज्ञान लिया और अब ही मंज़ूरी पर रोक लगा दी है, क्योंकि कंपनी अपने अतिरंजित दावों को साबित में विफल रही. साथ ही कंपनी ने प्रोडक्ट के लिए इस तरह के दावे करने के लिए केंद्रीय लाइसेंसिंग प्राधिकरण से मंज़ूरी नहीं ली थी.

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एक बात और. 10 सितंबर को जारी DGCI के आदेश में लिखा है कि मीडिया रिपोर्टों को देखते हुए ऐसी संभावना है कि आम जनता कंपनी के दावों से गुमराह हो जाए. कई आधिकारिक स्रोतों के हवाले से ये पुष्टि की गई है कि केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को भी इस प्रोडक्ट के दुरुपयोग की चिंता थी.

फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने इस घटनाक्रम के बाद एन्टोड फ़ार्मास्यूटिकल्स के CEO निखिल मसुरकर से संपर्क किया. उन्होंने कहा कि मीडिया के सामने बताए गए सभी तथ्य हाल ही में DGCI की मंज़ूरी के आधार पर ही थे. उन्होंने इस कार्रवाई पर आपत्ति जताई है. कंपनी का कहना है कि वो इस कार्रवाई के ख़िलाफ़ अदालत जाएंगे. 

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