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अवॉर्ड वापसी की शुरुआत करने वाले लेखक ने जब राम मंदिर के लिए दिया चंदा, मचा बवाल

उन्होंने फेसबुक पर रसीद शेयर की थी.

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उदय प्रकाश ने राम मंदिर निर्माण के लिए 5400 रुपये का चंदा दिया है. (फोटो उदय प्रकाश के फेसबुक अकाउंट से ली गई हैं)
उदय प्रकाश. शिक्षाविद हैं, कवि हैं, आलोचक हैं. इन्होंने 4 फरवरी को फेसबुक पर कुछ पोस्ट किया. देखिए –
Uday Prakash Fb Post कवि उदय प्रकाश का फेसबुक पोस्ट.

उन्होंने लिखा –
“आज की दान-दक्षिणा. (अपने विचार, अपनी जगह पर सलामत)”
ऐसा लिखते हुए उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए दिए चंदे की रसीद की फोटो पोस्ट की. यूं तो ये बड़ा सीधा सा मामला है. कि साब किसी ने अपनी आस्था से राम मंदिर के लिए चंदा दिया और फोटो अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर की. लेकिन ज़रा कॉमेंट्स पढ़िए. एक यूज़र ने लिखा –
“जब वे समूह में पीछे पड़ते हैं तो अपने आपको बचाना मुश्किल होता है.”
“बड़े-बड़े नाम भी हकीकत में ऐसे ही छोटे निकलते हैं. पहले भी आप अपने विचारों का मुरब्बा बना चुके हैं. कोई हैरत नहीं आदरणीय.”
“अभी ना जाने कितने भ्रम और टूटेंगे. कितने नायकों से भरोसा उठेगा.”
अब आप सोचेंगे कि उनके चंदा देने पर इस तरह के कॉमेंट्स क्यों आ रहे हैं. इसके लिए उदय प्रकाश की लिखी ये कविता पढ़िए –
“6 दिसंबर 1992
स्मृति के घने, गाढ़े धुएं
और सालों से गर्म राख में
लगातार सुलगता कोई अंगार है
घुटने की असहय गांठ है
या रीढ़ में रेंगता धीरे-धीरे कोई दर्द
जाड़े के दिनों में जो और जाग जाता है
अपनी हजार सुइयों के डंक के साथ
दिसंबर का छठवां दिन”
ये उदय प्रकाश की लिखी कविता है. पूरी कविता आप 
सुन सकते हैं. इस कविता पर बात करते हुए साहित्य आजतक के मंच पर उदय प्रकाश ने कहा था –
“6 दिसंबर की घटना से काफी आहत हुआ था. राम किसी लेखन और धर्म से पहले के हैं और उन्हें किसी कस्बे या जिले तक सीमित नहीं किया जा सकता. रामायण को कई लोगों ने और कई तरह से लिखा है जिनके अलग-अलग दृष्टिकोण रहे हैं.  राम को किसी एक दृष्टिकोण से नहीं देखा जा सकता और न ही किसी एक जगह के वो हो सकते हैं.”
इसी वजह से अब जब उदय प्रकाश ने राम मंदिर के लिए चंदा दिया है तो लोगों को हैरत हो रही है. 2015 में उदय प्रकाश ने ‘देश में इन्टॉलरेंस बढ़ रहा है’ कहते हुए अवॉर्ड वापस कर दिया था. उन्होंने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया था. ऐसा करने वाले ये उस समय पहले शख्स थे. इनके ऐसा कदम उठाने के बाद कई कवि, लेखक, कलाकारों, एक्टिविस्ट्स ने उनके इस कदम का समर्थन किया और इसके बाद अवार्ड वापसी की एक प्रथा चल पड़ी थी.

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