ईरान और इजरायल (Iran Israel war) के बीच बढ़ते तनाव के बीच भारत ने अपने नागरिकों को ईरान से निकालने के लिए ‘ऑपरेशन सिंधु’ लॉन्च (Operation Sindhu) किया. इसके तहत अब तक 1700 से ज्यादा भारतीयों को सुरक्षित देश वापस लाया गया है. इसमें सबसे बड़ी संख्या मेडिकल छात्रों की हैं. अब सवाल उठता है कि इतने भारतीय छात्र मेडिकल की पढ़ाई करने ईरान क्यों जाते है?
मेडिकल की पढ़ाई के लिए ईरान क्यों जाते हैं भारतीय स्टूडेंस, खासकर कश्मीर से?
India में पिछले एक दशक में मेडिकल की सीटों में काफी बढ़ोतरी हुई है. साल 2014 में MBBS की लगभग 51 हजार सीट थी, जोकि 2024 में बढ़कर 1 लाख 18 हजार हो चुका है. लेकिन फिर भी हजारों छात्र मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेशों का रुख करते हैं.

विदेश मंत्रालय के अनुमानित आंकड़ों के अनुसार, साल 2022 में ईरान में लगभग 2,050 भारतीय छात्रों ने एडमिशन लिया था. इनमें से अधिकतर छात्रों ने मेडिकल की पढ़ाई के लिए तेहरान यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज, शाहिद बेहेश्टी यूनिवर्सिटी और इस्लामिक आजाद यूनिवर्सिटी जैसे संस्थानों में एडमिशन लिया था. ईरान जाने वाले भारतीय छात्रों में सबसे ज्यादा संख्या कश्मीर से है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में पिछले एक दशक में मेडिकल की सीटों में काफी बढ़ोतरी हुई है. साल 2014 में MBBS की लगभग 51 हजार सीट थी, जोकि 2024 में बढ़कर 1 लाख 18 हजार हो चुका है. लेकिन फिर भी हजारों छात्र मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेशों का रुख करते हैं.
यह ट्रेंड फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एक्जामिनेशन (FMGE) में भी दिखता है. इस एग्जाम में बैठने वाले छात्रों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है. साल 2022 में FMGE की परीक्षा में बैठने वाले छात्रों की संख्या लगभग 52 हजार थी. साल 2023 में यह 61 हजार से ज्यादा हो गया. और साल 2024 में बढ़कर लगभग 79 हजार हो गया. विदेशों में मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद भारत में प्रैक्टिस करने के लिए FMGE क्लियर करना अनिवार्य है.
विदेश क्यों जाते हैं भारतीय छात्रFMGE एग्जाम कंडक्ट करने वाली नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन इन मेडिकल साइंसेज के पूर्व एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. पवनिंद्र लाल ने बताया कि देश में MBBS की सीटें बढ़ी है, लेकिन इस फील्ड में अब भी टफ कंपटीशन है. उन्होंने बताया,
सरकारी कॉलेजों में एंट्री के लिए छात्रों को बहुत अच्छी रैंक लानी होती है. 2024 में 1 लाख से ज्यादा MBBS सीटों के लिए 22.7 लाख से ज्यादा कैंडिडेट NEET-UG की परीक्षा में बैठे. 1 लाख सीटों में से आधी सीटें ही सरकारी कॉलेजों में हैं. बाकी सीटें प्राइवेट संस्थानों में हैं, जिनकी फीस बहुत ज्यादा होती हैं.
डॉ. लाल ने आगे बताया,
कश्मीरी छात्र ईरान क्यों जाते हैं?50 हजार रैंक लाने वाले एक छात्र को अच्छे प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन मिल सकता है. लेकिन उसकी फीस करोड़ों में हो सकती है. देश में कितने लोग इसको एफॉर्ड कर सकते हैं. ये सिंपल इकोनॉमिक्स है जिसके चलते छात्र दूसरे देशों का रुख करते हैं. कुछ देश ऐसे हैं जहां भारत के प्राइवेट संस्थानों में लगने वाली फीस के दसवें हिस्से में मेडिकल डिग्री हासिल की जा सकती है.
भारत के मेडिकल छात्र सस्ती पढ़ाई के लिए यूक्रेन जैसे देशों में जाते हैं. वहीं कश्मीर घाटी के अधिकतर छात्र ईरान को ऑप्शन चुनते हैं. इसके पीछे सिर्फ आर्थिक ही नहीं, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों की भी बड़ी भूमिका है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में फारसी के प्रोफेसर सैयद अख्तर हुसैन बताते हैं,
कश्मीर को लंबे समय से ईरान-ए-सगीर या ईरान माइनर कहा जाता रहा है. घाटी की भौगोलिक स्थिति और संस्कृति ईरान से मिलती जुलती है. 13वीं शताब्दी में मीर सैय्यद अहमद अली हमदानी ईरान से कश्मीर आए थे. वे अपने साथ करीब 200 सैय्यदों को लेकर आए थे. उन लोगों के साथ ईरान से क्राफ्ट और उद्योग भी आया था. जिसमें कागज की लुगदी, सूखे मेवे और केसर शामिल है.
प्रोफेसर हुसैन ने बताया कि दोनों जगहों की धार्मिक समानता भी एक बड़ी वजह है. कश्मीर में शिया लोग की मौजूदगी है और ईरान में भी शिया आबादी सबसे ज्यादा है. ज्यादातर कश्मीरी छात्र तेहरान में मेडिकल की पढ़ाई करते हैं. जबकि कुछ लोग कोम और मशहद जैसे धार्मिक शहरों में ईस्लामिक धर्मशास्त्रों की स्टडी करते हैं.
प्रोफेसर हुसैन के मुताबिक, ईरान कश्मीरी छात्रों को अपने यहां पढ़ाई के लिए स्पेशल ट्रीटमेंट देता है. यहां पढ़ने वाले कश्मीरी छात्रों को वहां पढ़ने के लिए कुछ छूट भी मिलती है. साथ ही शिया होने के चलते उन्हें काफी आसानी से एंट्री मिल जाती है.
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