ईरान की संसद ने 'स्ट्रेट ऑफ होर्मुज' को बंद करने की मंजूरी दे दी है. यह फैसला अमेरिका के ईरान पर किए हमलों के बाद आया, जिसमें तीन ईरान के तीन परमाणु ठिकानों- फोर्डो, नतांज और इस्फाहान को निशाना बनाया गया. कुछ ईरानी सांसदों ने पहले ही चेतावनी दी थी कि अगर हालात बिगड़ते हैं, तो ईरान इस रणनीतिक जलमार्ग को पूरी तरह बंद कर सकता है. हालांकि, 'स्ट्रेट ऑफ होर्मुज' को बंद करने का आखिरी फैसला सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल लेगी.
ईरानी संसद ने 'स्ट्रेट ऑफ होर्मुज' को बंद करने की मंजूरी दी, भारत समेत दुनिया पर क्या असर होगा?
Strait of Hormuz तेल शिपिंग का एक अहम रास्ता है. इस रूट से दुनिया का लगभग 20 फीसदी गैस और तेल गुजरता है. Iran ने कई बार 'स्ट्रेट ऑफ होर्मुज' को बंद करने की धमकी दी है, लेकिन अब तक उसने ऐसा नहीं किया.

ईरान के सरकारी मीडिया प्रेस टीवी ने संसद की नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के सदस्य मेजर जनरल कोवसारी के हवाले से बताया कि संसद इस नतीजे पर पहुंची है कि 'स्ट्रेट ऑफ होर्मुज' को बंद कर दिया जाना चाहिए. लेकिन इस संबंध में आखिरी फैसला सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल को लेना है.
'स्ट्रेट ऑफ होर्मुज' ओमान और ईरान के बीच मौजूद एक जलमार्ग है. यह जलमार्ग 'फारस की खाड़ी' को उत्तर में और ओमान की खाड़ी को दक्षिण में जोड़ता है, और फिर उससे आगे अरब सागर को जोड़ता है. यह जलमार्ग अपनी सबसे संकरी जगह पर 33 किलोमीटर चौड़ा है. यहां से जहाजों के गुजरने के लिए जो शिपिंग लेन है, वो सिर्फ 3 किलोमीटर चौड़ी है, यानी दोनों दिशाओं में बहुत संकीर्ण रास्ता है.
'स्ट्रेट ऑफ होर्मुज' तेल शिपिंग का एक अहम रास्ता है. इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इस रूट से दुनिया का लगभग 20 फीसदी गैस और तेल गुजरता है. एनालिटिक्स फर्म वोर्टेक्सा के डेटा से पता चला है कि 2022 की शुरुआत से लेकर पिछले महीने तक हर दिन 1.78 करोड़ से 2.08 करोड़ बैरल कच्चा तेल, कंडेनसेट और ईंधन यहां से होकर गुजरा है. इसका बंद होना वैश्विक ऊर्जा बाजार में गंभीर हलचल पैदा कर सकता है.
भारत पर क्या असर होगा?
भारत के लिए 'स्ट्रेट ऑफ होर्मुज' बहुत अहमियत रखता है, क्योंकि यहां से भारत के कुल तेल आयात का लगभग 40 फीसदी तेल आता है. भारत प्रतिदिन करीब 55 लाख बैरल कच्चे तेल का आयात करता है, जिसमें से 20 लाख बैरल कच्चा तेल 'स्ट्रेट ऑफ होर्मुज' से होकर आता है. अगर इस जलमार्ग को बंद कर दिया जाता है, तो भारत को इसके प्रभावों का सामना करना पड़ सकता है.
लेकिन भारत ने पहले ही अपनी तेल आपूर्ति के स्रोतों को बढ़ा रखा है. रूस, अमेरिका और ब्राजील से तेल आपूर्ति के वैकल्पिक रास्ते मौजूद हैं, जिससे भारत पर इससे ज्यादा असर नहीं पड़ेगा. भारत 'स्ट्रेट ऑफ होर्मुज' के बजाय स्वेज नहर, केप ऑफ गुड होप या प्रशांत महासागर के रास्ते तेल आयात कर सकता है.

गैस की बात करें तो भारत के लिए गैस का सबसे बड़ा सप्लायर कतर है. भारत में गैस सप्लाई करने के लिए कतर 'स्ट्रेट ऑफ होर्मुज' का इस्तेमाल नहीं करता है. इसके अलावा भारत के अन्य गैस स्रोतों में ऑस्ट्रेलिया, रूस और अमेरिका से लिक्विफाइड नेचुरल गैस (LNG) भी शामिल है.
वैश्विक ऊर्जा बाजार पर असर
अगर 'स्ट्रेट ऑफ होर्मुज' बंद होता है, तो वैश्विक ऊर्जा बाजार में उथल-पुथल मच सकती है. 2024 में इस जलमार्ग से हर दिन 2.03 करोड़ बैरल तेल और 29 करोड़ क्यूबिक मीटर LNG की आपूर्ति होती है. अगर यह बंद होता है, तो वैश्विक तेल कीमतों में अचानक उछाल आ सकता है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि तेल की कीमत 80 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है. कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर यह बंद होता है तो कीमतें 90 डॉलर से ऊपर भी जा सकती हैं.
पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन ओपेक (OPEC) के सदस्य सऊदी अरब, ईरान, UAE, कुवैत और इराक अपने ज्यादातर कच्चे तेल का निर्यात 'स्ट्रेट ऑफ होर्मुज' से करते हैं. UAE और सऊदी अरब ने इस जलमार्ग को बायपास करने के लिए दूसरे रास्ते खोजने की कोशिश की है.
यूएस एनर्जी इन्फॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन (US EIA) ने पिछले साल जून में कहा था कि मौजूदा UAE और सऊदी पाइपलाइनों से लगभग 26 लाख बैरल प्रति दिन की गैर-इस्तेमाल क्षमता होर्मुज को बायपास करने के लिए उपलब्ध हो सकती है.
भारत की आपूर्ति रणनीति
भारत के कुल तेल आयात का 40 फीसदी तेल ईराक, सऊदी अरब, यूनाइडेट अरब अमीरात (UAE) और कुवैत जैसे मिडिल ईस्ट देशों से आता है. ये सभी ‘स्ट्रेट ऑफ हार्मुज’ का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन अब भारत के पास कई वैकल्पिक सप्लाई रूट हैं. रूस ने हाल के सालों में भारत के तेल आपूर्ति में अहम जगह बनाई है.
जून में भारत ने रूस से लगभग 20-22 लाख बैरल प्रति दिन तेल आयात किया, जो कि मिडिल ईस्ट देशों से खरीदे गए लगभग 20 लाख बैरल प्रतिदिन तेल आयात से ज्यादा है. इसके अलावा, अमेरिका और अफ्रीका से भी भारत की तेल आपूर्ति में इजाफा हो रहा है. इस बदलाव से भारत की तेल आयात नीति में लचीलापन आया है और इसे वैश्विक आपूर्ति संकट के समय में सहारा मिलेगा.
भारत और अन्य एशियाई देशों पर असर
ईरान के तेल की सबसे बड़ी खरीदार चीन और भारत हैं. यूएस एनर्जी इन्फॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन (US EIA) के मुताबिक, 2022 में 'स्ट्रेट ऑफ होर्मुज' से गुजरने वाले 82 फीसदी कच्चे तेल और कंडेन्सेट का निर्यात एशिया के लिए था. इसमें चीन, भारत, जापान और दक्षिण कोरिया हिस्सा 2022 और 2023 की पहली छमाही में कुल सप्लाई का 67 फीसदी था.
US EIA के अनुसार, चीन ने 2025 की पहली तिमाही में होर्मुज के जरिए 54 लाख बैरल प्रति दिन कच्चे तेल का आयात किया. भारत ने 21 लाख बैरल प्रति दिन कच्चा तेल आयात किया. इसके बाद दक्षिण कोरिया ने 17 लाख बैरल प्रति दिन और जापान ने 16 लाख बैरल प्रति दिन कच्चे तेल का आयात किया.
अगर यह जलमार्ग बंद होता है, तो भारत समेत चीन जैसे एशियाई देशों पर इसका सीधा असर पड़ेगा, क्योंकि ये देश मिडिल ईस्ट से भारी मात्रा में तेल आयात करते हैं.
मिडिल ईस्ट में तेल पर तनाव का इतिहास
- 1973 में सऊदी अरब के नेतृत्व में अरब देशों ने अमेरिका और यूरोप जैसे उन देशों पर तेल आपूर्ति रोक दी थी जो इजरायल का समर्थन कर रहे थे. यह फैसला तब लिया गया था जब इजरायल की मिस्र से लड़ाई चल रही थी.
- उस समय पश्चिमी देश अरब देशों से तेल खरीदने वाले प्रमुख ग्राहक थे. लेकिन आज के समय में ओपेक (OPEC) देशों से निकले तेल का सबसे बड़ा खरीदार एशिया बन गया है.
- पिछले 20 सालों में अमेरिका ने अपने तेल उत्पादन को दोगुना से भी ज्यादा कर लिया है. अब वो दुनिया का सबसे बड़ा तेल आयातक नहीं, बल्कि प्रमुख तेल निर्यातक बन चुका है.
- 1980 से 1988 तक ईरान-इराक युद्ध के दौरान दोनों देशों ने एक-दूसरे के तेल निर्यात को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की थी. इस दौर को 'टैंकर युद्ध' (Tanker War) कहा गया.
- जुलाई 1988 में एक अमेरिकी युद्धपोत ने गलती से (जैसा कि अमेरिका ने कहा) एक ईरानी यात्री विमान को मार गिराया था, जिसमें सभी 290 लोग मारे गए. ईरान का कहना था कि यह हमला जानबूझकर किया गया.
- जनवरी 2012 में ईरान ने अमेरिका और यूरोप के लगाए गए प्रतिबंधों के जवाब में 'स्ट्रेट ऑफ होर्मुज' को बंद करने की धमकी दी थी.
- मई 2019 में UAE के तट के पास 'स्ट्रेट ऑफ होर्मुज' के बाहर चार जहाजों पर हमला हुआ था. इनमें दो सऊदी तेल टैंकर भी शामिल थे.
- 2023 में दो और 2024 में एक, कुल तीन जहाजों को ईरान ने 'स्ट्रेट ऑफ होर्मुज' के पास या उसके अंदर जब्त किया. इन कार्रवाइयों में से कुछ कार्रवाई अमेरिका के ईरान से जुड़े टैंकरों को जब्त करने के जवाब में की गई थीं.
ईरान ने कई बार 'स्ट्रेट ऑफ होर्मुज' को बंद करने की धमकी दी है, लेकिन अब तक उसने ऐसा नहीं किया है. अब देखना होगा कि सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल इसे बंद करने पर क्या फैसला लेती है.
वीडियो: क्या है 'क्लस्टर बम? ईरान ने इसी बम से इजरायल में तबाही मचाई है