सोशल मीडिया पर पिछले हफ्ते एक ऐसी कैंपेन चालू हुई है, जैसी हमारे देश ने शायद ही कभी देखी हो. ये कैंपेन के सेनेटरी पैड पर टैक्स के खिलाफ. और कमाल की बात ये है कि कैंपेन अब सोशल मीडिया से बाहर निकलकर सीधे सत्ता के केंद्र, यानी प्रधानमंत्री मोदी के दफ्तर पहुंचने वाली है. बता दें कि सेनेटरी नैपकिन, जिसे हम आम भाषा में पैड कहते हैं, पर 12 फीसदी GST है. जबकि सेनेटरी पैड देश की हर औरत की जरूरत है. और पैड उतने ही जरूरी हैं जितना एक औरत के लिए कपड़े और रहने के लिए घर की जरूरत होती है. जब हम जरूरी दवाओं और खान पान की चीजों पर सब्सिडी दे सकते हैं, तो सेनेटरी नैपकिन पर क्यों नहीं. और सब्सिडी तो दूर की बात है, यहां तो पैड्स टैक्स के दायरे से भी बाहर नहीं हैं.

ग्वालियर शहर की कुछ सोशल वर्कर्स ने ये कदम उठाया है. इन्होंने एक हजार सेनेटरी पैड्स पर पीरियड को लेकर अपने विचार लिखने शुरू किए हैं. और अब इन पैड्स को प्रधानमंत्री को भेजने वाली हैं.
एक छात्र हरी ओम ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, 'औरतों के हेल्थ प्रोडक्ट्स पर सब्सिडी देने के बजाय उनको लग्जरी आइटम में डाल दिया है. हमारा प्लान है कि 3 मार्च तक प्रधानमंत्री को संदेश लिखे हुए एक हजार पैड्स भेजेंगे.'
वैसे तो सबसे अच्छा यही होता कि ग्रामीण औरतों को फ्री नैपकिन बांटे जाते. जिस तरह गर्भ निरोधन के लिए फ्री कॉन्डम बांटे गए थे. मगर वो तो सपने जैसा लगता है. कम से कम इतना ही हो जाए कि इनसे GST हट जाए.
इधर वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना था कि सेनेटरी पैड पर पहले भी सभी तरह के टैक्स मिलकर लगभग 13 फीसदी टैक्स होता है. उस हिसाब से GST में ये टैक्स कम ही हुआ है. अगर इनसे टैक्स हटा दिया जाए तो इन्हें बनाने वालों को न सिर्फ नुकसान होगा, बल्कि प्रोडक्शन का कॉस्ट भी ज्यादा आएगा.
पीरियड को लेकर समाज में जितनी चुप्पी और डर है, उसको ध्यान में रखते हुए इस तरह का कदम उठाना ही बड़ी बात है.