फातिमा जिन्ना वो खातून थीं, जिन्होंने अलग देश पाकिस्तान बनाने में भी अहम रोल निभाया. वो डेंटल सर्जन थीं. यूनिवर्सिटी ऑफ़ कलकत्ता से ग्रेजुएशन करने के बाद पहले डॉ. आर अहमद डेंटल कॉलेज जॉइन किया. उसके बाद 1923 में बांबे में उन्होंने अपना क्लिनिक खोल लिया था. रत्तनबाई पेटिट से शादी हुई थी. पति की मौत के बाद 1929 में वो अपने भाई मोहम्मद अली जिन्ना के घर आ गईं. फातिमा जिन्ना 19 साल तक मोहम्मद अली जिन्ना के हमराह रहीं. ये साथ तब छूटा जब 11 सितंबर 1948 को मोहम्मद अली जिन्ना की मौत हो गई. उनके बाद बागडोर फातिमा जिन्ना ने संभाल ली. देश के बंटवारे के दौरान मुहाजिरों को बसाने की ज़िम्मेदारी निभाने में अहम किरदार निभाया. लेकिन जिन्ना की मौत के बाद उन्हें सियासत से दूर रखने की भरपूर कोशिश की गई.

मोहम्मद अली जिन्ना के साथ फातिमा जिन्ना.
जिन्ना की मौत के बाद फातिमा का भाषण रेडियो पर प्रसारित नहीं होने दिया गया
डॉन न्यूज़ के लिए अख्तर बलूच ने एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने बताया कि हुकूमत और इन्तज़ामिया किसी भी हाल में नहीं चाहते थे कि जिन्ना के बाद फातिमा अपने ख्यालात का इज़हार करें. और उन्हें ऐसा करने से रोकने के लिए पाकिस्तान रेडियो पर उनका भाषण नहीं चलने दिया.कुदरत अल्लाह शहाब ने अपनी किताब शहाबनामा में लिखा है, 'कायदे आजम की मौत के बाद फातिमा जिन्ना और हुकूमत के बीच एक गुबार छाया था. क़ायदे आज़म यानी जिन्ना की दो बरसी गुज़र गईं. दोनों बार फातिमा जिन्ना ने कौम से मुखातिब होने से इसलिए इंकार कर दिया क्योंकि उनके सामने शर्त ये रखी जाती थी कि ब्रॉडकास्ट होने से पहले अपना भाषण दिखाएंगी. लेकिन उन्हें ये मंज़ूर नहीं था. हुकूमत को ये खौफ था न जाने फातिमा जिन्ना न जाने अपनी तकरीर में क्या बोल दें, जिससे हुकूमत पर मुसीबत आ जाए.'

फातिमा जिन्ना
भाषण न दिए जाने पर खूब हंगामा था. मोहम्मद अली जिन्ना की जब तीसरी बरसी आई तो फातिमा जिन्ना का रेडियो पर भाषण देना मुक़र्रर हुआ. फातिमा ने बोलना शुरू किया. रेडियो पर लोग सुन रहे थे. तभी अचानक ट्रांसमिशन बंद हो गई. कुछ लम्हे तक ट्रांसमिशन बंद रही. बाद में मालूम हुआ कि फातिमा की तहरीर में कुछ जुमले ऐसे थे जो हुकूमत को निशाने पर लेते. फातिमा तो माइक पर बोलती गईं लेकिन ट्रांसमिशन बंद करके उनकी आवाज़ को दबा दिया गया. इस बात से पाकिस्तानी अवाम भड़क गई. जितना नुकसान हुकूमत को फातिमा के जुमले न पहुंचाते उतना ट्रांसमिशन बंद होने हो गया. बहाना लिया गया कि बिजली चली गई थी. लेकिन कोई इस बात पर यकीन करने को राज़ी नहीं था. लोगों को लगा फातिमा की तकरीर में ज़रूर कोई ऐसी बात थी. तभी उसे नहीं चलने दिया गया.
2 जनवरी 1965 में चुनाव हुए. तब मुखालिफ सियासतदानों ने सोचा भी नहीं था कि फातिमा कामयाब हो जाएंगी. लेकिन इलेक्शन कमीशन के मुताबिक अय्यूब को कामयाब घोषित किया गया. सियासी मुश्किलों का दौर चलता रहा. और फिर 9 जुलाई 1967 को फातिमा का इंतकाल हो गया.

source : Dawn
जनाज़े में हो गया लाठीचार्ज
आगा अशरफ ने अपनी किताब 'मादर-ए-मिल्लत मोहतरमा फातिमा जिन्ना' में लिखा है,'फातिमा जिन्ना ने अपनी जिंदगी में ये ख्वाहिश ज़ाहिर की थी कि मरने के बाद उन्हें कायदे आज़म के पास दफन किया जाए. फातिमा की मौत के बाद ये मसला सामने आया कि उन्हें कहां दफन किया जाए. मिर्ज़ा अबुल हसन अस्फहानी के मुताबिक उस वक़्त की हुकूमत फातिमा को मेव शाह कब्रिस्तान में दफनाना चाहती थी. जिसकी मुखालफत की गई. और कमिश्नर कराची को आगाह किया गया कि अगर फातिमा को जिन्ना की मज़ार के करीब न दफ़न किया गया तो बलवा हो जाएगा.'कराची कमिश्नर फातिमा के परिवार से मिले. दफन करने को लेकर बैठकों का दौर चला. और फिर आधी रात को हुकूमत ने तय किया कि फातिमा को जिन्ना की कब्र के करीब ही दफन कर दिया जाए. बीस लोग कब्र खोदने में लगे. क्योंकि ज़मीन पथरीली थी.
फातिमा का जनाज़ा दफन करने के लिए ले जाया गया. जनाज़े के पीछे सदर अय्यूब खान के नुमाइंदे शम्सुल ज़ुहा चल रहे थे. उनके साथ कमांडर इन चीफ एम अहसन के अलावा सूबों के गवर्नर, मिलिट्री सेक्रेटरी, कराची के कमिश्नर, डीआईजी कराची और बहुत से नेता थे. जैसे जैसे जनाज़ा जिन्ना के मजार की तरफ बढ़ रहा था, लोगों का हुजूम बढ़ता जा रहा था. रास्ते में छतों से औरतें फूल बरसा रही थीं. नमाज़े जनाज़ा फातिमा जिन्ना की दो बार पढ़ाई गई. जो पोलो ग्राउंड में हुई. वहां से जनाज़ा गाड़ी में रखकर जिन्ना की मज़ार की तरफ ले जाया गया.
औरतों और बच्चों का एक हुजूम मोहम्मद अली जिन्ना के मज़ार की तरफ बढ़ रहा था. लाखों की तादाद में भीड़ थी. पुलिस के लिए रास्ता बनाना मुश्किल हो रहा था. बताया जाता है कि दोपहर के 12 बजे होंगे. लोगों की तादाद 6 लाख के करीब थी. अचानक कुछ लोगों ने जिन्ना की मज़ार पर पहुंचकर जनाज़े के करीब जाने की कोशिश की. वो फातिमा के चेहरे को आखिरी बार देखना चाहते थे. पुलिस ने पीछे हटाना चाहा तो हंगामा हो गया.

पेट्रोल पंप में आग लगाई गई. एक बस को जला दिया गया. (Source : Dawn)
हालात काबू से बाहर होते देख पुलिस ने लाठीचार्ज कर दी. हंगामा इतना बढ़ गया था कि आंसू गैस का इस्तेमाल करना पड़ा. इसके जवाब में भीड़ ने पुलिस पर पथराव कर दिया. कई पुलिस वाले ज़ख़्मी हुए. एक पेट्रोल पंप और एक डबल डेकर बस को आग लगा दी गई. इस संघर्ष में एक शख्स की मौत हो गई. बच्चे और औरतें ज़ख़्मी हो गईं.
इस हंगामे के बाद ये बात हुई कि फातिमा की मौत खुद से नहीं हुई, बल्कि उनको क़त्ल किया गया है. इसके लिए कोर्ट में भी मामला चला. कहा गया कि मरने से दो दिन पहले वो एक शादी में शामिल हुई थीं. तब वो एकदम ठीक थीं. और 9 जुलाई को उनके मरने की घोषणा कर दी गई. मरने के बाद आवाम को उनका आखिरी दीदार भी नहीं करने दिया गया. जब कुछ लोगों ने उन्हें देखना चाहा तो उनपर लाठीचार्ज किया गया. अख़बारों में ये ख़बरें खूब छपी कि ऐसी क्या वजह थी, जो लोगों को फातिमा जिन्ना का आखिरी दीदार नहीं करने दिया गया? अफवाहें ये भी फैली कि फातिमा के जिस्म पर ज़ख्मों के निशान थे. कई नेताओं ने मर्डर की होने की आशंका जताई. अय्यूब खान पर इस मर्डर के इलज़ाम लगे. लेकिन कोई जांच नहीं हुई.
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