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'वोट बैंक की राजनीति और मुस्लिम तुष्टिकरण'... NCERT की किताबों में फिर से क्या बदल गया?

NCERT की 11वीं क्लास की पॉलिटिकल साइंस किताब में बदलाव किए गए हैं. धर्मनिरपेक्षता वाले चैप्टर में एक खंड है, ‘भारतीय धर्मनिरपेक्षता की आलोचना’. उसी में दो पैराग्राफ़ जोड़े गए हैं.

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2014 के बाद से ये NCERT पाठ्यपुस्तकों के संशोधन का चौथा दौर है. (फोटो: PTI/सोशल मीडिया)

स्कूलों में नया अकादमिक सत्र शुरू हो चुका है. नई-नई किताबें बाज़ार में आ गई हैं. नई किताबों में केवल जिल्द नया नहीं होता, कुछ समय से कॉन्टेंट मैटर भी नया होने लगा है. जैसे NCERT पाठ्यक्रम का पालन करने वाले CBSE और राज्य बोर्ड्स के छात्रों को अब पढ़ाया जाएगा कि भारत की राजनीतिक पार्टियां वोट बैंक की पॉलिटिक्स करती हैं, अल्पसंख्यक समूहों को प्राथमिकता देती हैं, अल्पसंख्यक तुष्टिकरण करती हैं.

ये पढ़ाया जाएगा NCERT की 11वीं क्लास की पॉलिटिकल साइंस किताब में. इसी किताब के पिछले संस्करण में 'अल्पसंख्यक तुष्टिकरण' वाली बात शामिल नहीं थी.

अबकी नया क्या है?

इंडियन एक्सप्रेस के अभिनय हरिगोविंद की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, पाठ्यपुस्तक के नए और पुराने, दोनों संस्करणों में धर्मनिरपेक्षता वाला चैप्टर है. इसी चैप्टर में एक खंड है, ‘भारतीय धर्मनिरपेक्षता की आलोचना’. इसमें वोट बैंक की राजनीति पर दो पैराग्राफ़ हैं. इस खंड में - दोनों संस्करणों में - लिखा गया है:

अगर अल्पसंख्यकों के वोट मांगने वाले धर्मनिरपेक्ष नेता, उन्हें वो दे भी दें, जैसा वो चाहते हैं, तो ये धर्मनिरपेक्ष प्रोजेक्ट की सफलता है. जिसका उद्देश्य अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करना भी है.

फिर पाठ्यपुस्तक के दोनों संस्करणों में एक ही सवाल पूछा गया है,

लेकिन अगर संबंधित समूह का कल्याण किसी और समूह के कल्याण और अधिकारों की क़ीमत पर हो, तो क्या होगा? क्या होगा अगर ये धर्मनिरपेक्ष नेता बहुसंख्यकों के हितों को कमज़ोर करने लगें? फिर एक नए अन्याय का जन्म होगा.

यहां तक तो दोनों किताबों में कोई बदलाव नहीं है. लेकिन इन सवालों के जवाब दोनों किताबों में अलग-अलग हैं.

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पुराने संस्करण में लिखा है,

क्या आप ऐसे उदाहरणों के बारे में सोच सकते हैं? एक-दो नहीं, बल्कि क्या ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनके बारे में आप दावा कर सकें कि पूरी व्यवस्था अल्पसंख्यकों के पक्ष में है? अगर आप गहराई से सोचें, तो आप पाएंगे कि भारत में ऐसा होने के बहुत कम सबूत हैं. वोट बैंक की राजनीति में कुछ भी ग़लत नहीं है. जिस वोट बैंक राजनीति से अन्याय पैदा हो, वो ग़लत है.

नए संस्करण में लिखा है:

क्या आप ऐसे उदाहरणों के बारे में सोच सकते हैं? सैद्धांतिक रूप से वोट बैंक की राजनीति में कुछ भी ग़लत नहीं है. लेकिन जब वोट बैंक की राजनीति किसी विशेष उम्मीदवार या पार्टी के लिए एक सोशल ग्रुप को सामूहिक रूप से वोट देने के लिए प्रेरित करती है, तो ये चुनावी राजनीति के लिए ठीक नहीं. यहां ज़रूरी बात ये है कि मतदान के दौरान पूरा समूह एक अखंड इकाई बन जाता है और वैसे ही काम करता है. इकाई के भीतर भले ही विविधता हो, वोट बैंक की ऐसी राजनीति करने वाली पार्टी या नेता ये विश्वास बनाने की कोशिश करता है कि समूह का हित एक है.

...भारत में वोट बैंक की राजनीति भी अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण से जुड़ी हुई है. राजनीतिक पार्टियां अल्पसंख्यक समूह के हितों को प्राथमिकता देती हैं और सभी नागरिकों की समानता के सिद्धांत की अवहेलना करती हैं. ये विडंबना है कि इससे अल्पसंख्यक समूह का अलगाव बढ़ा है और वो हाशिए की तरफ़ में बढ़ रहे हैं. चूंकि वोट बैंक की राजनीति अल्पसंख्यक समूह के भीतर विविधता को स्वीकार करने में विफल रही है, इसलिए इन समूहों के भीतर सामाजिक सुधार के मुद्दों को उठाना भी मुश्किल साबित हुआ है.

दी प्रिंट के सौरव रॉय बर्मन की रिपोर्ट के मुताबिक़, NCERT ने अपने आधिकारिक रिकॉर्ड में कहा है कि ये संशोधन बहुत ज़रूरी थे. इन संशोधनों के बिना ये चैप्टर वोट बैंक की राजनीति को कहीं न कहीं सही ठहरा रहा था.

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सितंबर, 2021 में NCERT पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों को व्यापक स्तर पर बदलने की प्रक्रिया शुरू हुई थी. राज्यों, संवैधानिक निकायों और एक्सपर्ट ग्रुप्स से इनपुट्स मांगे गए थे. वो प्रक्रिया अभी भी पूरी नहीं हो पाई है. माना जा रहा है कि 2025-26 वाले शैक्षणिक सत्र तक ये तैयार होंगी.

2014 के बाद से ये NCERT पाठ्यपुस्तकों के संशोधन का चौथा दौर है, और ये जो हालिया बदलाव हैं, ये उस औपचारिक प्रक्रिया से बिल्कुल अलग है. 

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