नैनी के पास से निकलते हुए ट्रेन एक मालगाड़ी से जा टकराई. अचानक से हंगामा मच गया. हर तरफ लोग अफरा-तफरी में दिखाई दे रहे थे. किसी को समझ नहीं आ रहा था कि हुआ क्या था.
कैसे हुई भिड़ंत?
ट्रेनें जब स्टेशनों से गुज़रती हैं, तो उनको क्लियरेंस मिलता है. तभी वो आगे बढ़ती हैं. स्टार्टर सिग्नल और एडवांस स्टार्टर सिग्नल मौजूद होते हैं ट्रेन को गाइड करने के लिए. जिस मेन लाइन से ट्रेन गुज़रती है, उस लाइन पर. रिपोर्ट्स बताती हैं कि नैनी जंक्शन के पास इन्हीं दोनों के बीच में मालगाड़ी खड़ी थी. एक्सप्रेस ट्रेन भी वहां से निकली, और जब तक किसी को समझ आता, वो भिड़ गई.
(तस्वीर: रेलयात्री)
इस हादसे के बाद ये चर्चा हुई थी कि इन दोनों सिग्नलों के बीच की दूरी कम कर दी जानी चाहिए. ताकि कोई भी गाड़ी वहां बीच में पार्क न की जा सके. ये भी कहा गया कि स्टेशन की बाउंड्री एडवांस सिग्नल तक मापी जाए. लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. इस हादसे में 50 से ज्यादा लोगों की मौत और 100 से ज्यादा लोगों के घायल होने की खबर रिपोर्ट की गई. 10 अक्टूबर 1977 की शाम तक स्पेशल ट्रेन से उस ट्रेन में घायल हुए लोगों को दिल्ली लाया गया. नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मातम पसर गया था.
इसके बाद नैनी को इस हादसे की वजह से याद किया जाने लगा. उदास और परेशान करने वाली याद के तौर पर. हालांकि नैनी एक और वजह से मशहूर है.
यहां सेंट्रल जेल है. इसे ब्रिटिश राज के समय बनवाया गया था. आज़ादी से पहले यहां कई बड़े स्वतंत्रता सेनानी कैद कर के रखे गए थे. जैसे मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, रफ़ी अहमद किदवई. इंदिरा गांधी भी इस जेल में कैद की गई थीं. इस जेल के बारे में ये कहा जाता है कि ये भुतहा है.
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