सरकार ने रबी की फसलों के दाम बढ़ा दिए हैं. जुलाई में खरीफ का एमएसपी भी बढ़ाया था.
इस खबर को कैसे समझें.
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देश की फसलों को आम तौर पर तीन भागों में बांटा जाता है. रबी, खरीफ और जायद.
1 रबी- रबी की फसलों में आता है गेहूं, चना, जौ, मसूर और सरसों. ऐसी फसलों को बोने के लिए तापमान कम चाहिए होता है. आम तौर पर ये फसल अक्टूबर के आखिर से लेकर 15 दिसंबर तक बोई जाती है. इसके कटने का समय मार्च के अंत से लेकर 20 अप्रैल तक होता है.

गेहूं, चना और जौ रबी की मुख्य फसलें हैं.
2 खरीफ- खरीफ की फसलों में आता है धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, मूंग, मूंगफली, गन्ना जैसी फसलें. इन फसलों को बोने के दौरान तापमान ज्यादा चाहिए होता है और काटने के वक्त कम. इसलिए फसल जून-जुलाई के बीच बोई जाती है. इसे काटने का समय अक्टूबर आखिरी से लेकर नवंबर तक होता है.

खरीफ की फसलों में धान, बाजरा और गन्ने जैसी फसलें हैं.
3 जायद- जायद की फसल में आते हैं खीरा, तरबूज और ककड़ी. ये फसलें गर्मी झेल लेती हैं, इसलिए इन्हें मार्च- अप्रैल में बोया जाता है. मई-जून में फसलें तैयार हो जाती हैं और इन्हें तोड़कर बाजार में बेचा जाने लगता है.

जायद की फसल में तरबूज, खीरा और ककड़ी जैसी सब्जियां हैं.
अब जानें सरकार का फैसला क्या है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमिटी ने रबी की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा दिया है. रबी की सबसे प्रमुख फसल गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य में छह फीसदी का इजाफा हुआ है. पहले गेहूं का मूल्य 1735 रुपये था, जिसे बढ़ाकर 1840 रुपये कर दिया गया है. इसके अलावा और भी फसलों के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी हुई है.

किसानों को इस न्यूनतम समर्थन मूल्य से कुछ खास फायदा नहीं होना है.
तो क्या किसान मुस्कुरा रहा है नहीं. क्योंकि किसानों की लागत और उनकी एमएसपी के बीच इतना अंतर है कि मुनाफे के नाम पर किसानों को कुछ नहीं मिल पाएगा.

आप लागत का खेल समझें. तो सब राम कहानी समझ आ जाएगी. मान लीजिए कि एक किसान को एक एकड़ खेत पर गेंहू उगाना है. अपना खेत नहीं है. किराए पर लिया है. अब देखिए खर्चा और कमाई
1 खेत की कीमत – 12,000 रुपये 2 बीज – 2400 रुपये (60 किलो बीज 40 रुपये प्रति किलो के हिसाब से) 3 जुताई– 2000 रुपये 4 बुवाई-2000 रुपये 5 यूरिया – 330 रुपये (करीब 50 किलो यूरिया लगता है एक एकड़ में) 6 डाई एथिल फास्फेट-1300 रुपये (50 किलो डाई एथिल फास्फेट का इस्तेमाल होता है) 7 पोटाश – 900 रुपये (50 किलो की एक बोरी लग जाती है) 8 पानी का किराया– 3000 रुपये (अगर किसान के पास अपना ट्यूबवेल नहीं है, तो वो किराए के ट्यूबवेल का इस्तेमाल करता है.) 9 डीजल – 3600 रुपये (एक बार की सिंचाई में 10 लीटर डीज़ल लगता है. पांच बार सिंचाई होती है और डीजल 72 रुपये लीटर माना गया है) 10 हार्वेस्टिंग – 1500 रुपये 11 ढुलाई – 500 रुपये (खेत से खलिहान तक लाने का खर्च)
यानी एक एकड़ फसल को तैयार करने की कुल लागत है-
12,000+2400+2000+2000+330+1300+900+3000+3600+1500+500= 29,530 रुपए
अगर एक एकड़ में फसल शानदार हुई तो उपज होगी 20-25 क्विंटल
सरकारी एमएसपी है 1840 रुपये
किसान को मिलेगा 1840*22 = 40,480 रुपये
किसान को मुनाफा होगा-40,480-29,530 = 10,950 रुपये

एक एकड़ गेहूं की खेती में एक किसान को करीब 11,000 रुपये का मुनाफा होता है.
ये एक किसान परिवार के चार महीने की कुल आमदनी होगी. यानी अगर महीने का औसत निकालें को करीब 2500 रुपये. अब इसी 2500 रुपये में किसान को अपना पेट भी पालना है, घर चलाना है, बच्चों को पढ़ाना है और दूसरे खर्चे करने हैं. अगर किसान बढ़ा है और उसके पास खेत ज्यादा हैं तो उसे तो अच्छा खासा मुनाफा हो जाता है. लेकिन छोटे किसान जो किराए पर खेत लेते हैं वो मुश्किल से एक एकड़ या दो एकड़ खेत पर खेती करते हैं. ऐसे में उनकी आमदमी बस इतनी होती है कि वो जिंदा रह पाते हैं.
सिर्फ 105 रुपये की बढ़ोतरी, इतनी तो महंगाई बढ़ गई है

अब सरकार कह रही है कि उसने गेहूं के समर्थन मूल्य में 105 रुपये की बढ़ोतरी की है. यानी कि हर एकड़ पर किसान को पिछले साल की तुलना में मिलेंगे करीब 2520 रुपये. लेकिन पिछले साल की तुलना में इस साल की लागत का भी अंतर देख लीजिए. पिछले साल गेहूं में पड़ने वाली खाद डीएपी का रेट 900 रुपये प्रति 50 किलो था, जो अब बढ़कर 1300 रुपये हो गया है. इसके अलावा डीज़ल 54 रुपये प्रति लीटर था, जो अब बढ़कर 74 रुपये हो गया है. यानी कि एक लीटर पर 20 रुपये बढ़ा है. अब एक एकड़ गेहूं की बुवाई में करीब 50 लीटर डीज़ल का खर्च है. ऐसे में 1000 रुपये तो सिर्फ डीज़ल में खर्च हो गए. सीधा सा मतलब है कि 1400 रुपये तो डीज़ल और खाद में ही खर्च हो गए. तो किसान को पिछले साल की तुलना में इस साल मिल रहे हैं सिर्फ और सिर्फ 1120 रुपये. अब अगर 1120 रुपये देकर सरकार कह रही है कि उसने किसानों के लिए तोहफा दे दिया है और लोग बता रहे हैं तो वो लोग भोले हैं, किसान नहीं. जो किसान देश का पेट भरता है, वो तो इस बात को बखूबी समझता है.
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