असम में कथित फर्जी मुठभेड़ों पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. उसने राज्य मानवाधिकार आयोग को असम पुलिस की 171 कथित फर्जी मुठभेड़ों की 'निष्पक्ष और ईमानदारी से' जांच करने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ये आरोप गंभीर हैं और आयोग को निर्देश दिया कि वह एक सार्वजनिक नोटिस जारी करे, ताकि मुठभेड़ों में मारे गए लोगों के परिवार सामने आ सकें.
असम की हिमंता बिस्वा सरमा सरकार को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने एक-एक एनकाउंटर की जांच का आदेश दिया
आरोप है कि मई 2021 में जब हिमंता बिस्वा सरमा मुख्यमंत्री बने, तब से अब तक 80 से ज्यादा मुठभेड़ों में 28 लोगों की मौत और 48 घायल हुए हैं.

इस मुद्दे पर वकील आरिफ यासीन जावदर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इसकी सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा,
“अगर ये आरोप सही साबित होते हैं, तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का उल्लंघन होगा. हालांकि, यह संभव है कि निष्पक्ष जांच के बाद कुछ मुठभेड़ जरूरी और कानूनी रूप से सही पाई जाएं.”
इससे पहले 2023 में गुवाहाटी हाई कोर्ट ने इसी मुद्दे पर आरिफ यासीन की याचिका खारिज कर दी थी. जावदर का आरोप है कि मई 2021 में जब हिमंता बिस्वा सरमा मुख्यमंत्री बने, तब से अब तक 80 से ज्यादा मुठभेड़ों में 28 लोगों की मौत हो चुकी है और 48 घायल हुए हैं.
उनकी याचिका पर गौर करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने असम मानवाधिकार आयोग को कुछ जरूरी निर्देश भी दिए. मसलन, राज्य में ऐसा माहौल बनाने की जरूरत है जिससे पीड़ित परिवार खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें. कोर्ट ने निर्देश दिया कि पीड़ितों और उनके परिवारों को अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया जाए और साथ ही उनकी पहचान गुप्त रखी जाए ताकि भरोसे का माहौल बना रहे. अदालत ने ये भी कहा कि अगर जरूरत हो तो जांच के लिए ईमानदार सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों की मदद ली जा सकती है.
आयोग को जांच सौंपने पर असम सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ऐसी जांच से उन सुरक्षाकर्मियों का मनोबल टूट सकता है जो आतंकवाद और उग्रवाद से देश को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं. हालांकि शीर्ष अदालत ने असम सरकार को आदेश दिया कि वह आयोग को सभी जरूरी दस्तावेज और सुविधाएं उपलब्ध कराए ताकि जांच सही तरीके से हो सके.
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