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मोदी सरकार ले आई नए 'नियम', लागू हुए तो अदालतों की ये 'बड़ी पावर' खत्म हो जाएगी?

सरकार के मुताबिक, इसका उद्देश्य कोर्ट और सरकार के बीच माहौल को अनुकूल बनाना है. साथ ही अदालत की अवमानना की गुंजाइश को कम करना भी है.

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SOP में कोर्ट की अवमानना पर कार्यवाही को लेकर कई सुझाव दिए गए हैं. (फोटो- PTI)

केंद्र सरकार एक ड्राफ्ट स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) लेकर आई है. इसे सुप्रीम कोर्ट में पेश किया गया है. ड्राफ्ट में केंद्र सरकार ने कोर्ट में पेशी के लिए जाने वाले सरकारी अधिकारियों को लेकर कुछ बातें कही हैं. सरकार का कहना है कि अधिकारियों की पोशाक और सामाजिक पृष्ठभूमि को लेकर जजों को टिप्पणी करने से बचना चाहिए.

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सरकार का कहना है कि सरकारी अधिकारी कोर्ट के कर्मचारी नहीं होते. इसलिए कोर्ट की कार्यवाही के दौरान उनके ड्रेस कोड पर कोई आपत्ति नहीं का जानी चाहिए, जब तक कि वो गैर-पेशेवर न हो.

अवमानना के मामलों को लेकर सुझाव

बार एंड बेंच में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, ड्राफ्ट SOP में सरकार ने कोर्ट की कार्यवाही में ऐसे अधिकारियों की उपस्थिति को लेकर कई सुझाव दिए हैं. इसमें कोर्ट की अवमानना के मामलों में उनकी पेशी भी शामिल है. SOP में कहा गया है कि इन दिशानिर्देशों को सब-ऑर्डिनेट कोर्ट में लागू किया जाना चाहिए.

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सरकार के मुताबिक, इसका उद्देश्य कोर्ट और सरकार के बीच माहौल को अनुकूल बनाना है. साथ ही अदालत की अवमानना की गुंजाइश को कम करना भी है. SOP में कोर्ट और सरकारी संसाधनों के समय को बचाने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सरकारी अधिकारियों को जोड़ने की अनुमति देने की बात भी कही गई है.

‘कोर्ट संयम दिखाए’

SOP में बताया गया है कि कोर्ट की कार्यवाही में सरकारी अधिकारियों की उपस्थिति केवल असाधारण मामलों में ही होनी चाहिए. यही नहीं, SOP में कहा गया है कि रिट कार्यवाही, जनहित याचिका और अवमानना के मामलों में अधिकारियों को तलब करते वक्त कोर्ट को संयम दिखाना चाहिए.

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SOP में ये भी सुझाव दिया गया है कि अधिकारियों के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही केवल कोर्ट में लागू होने वाले आदेशों के संबंध में हो सकती है न कि एग्जीक्यूटिव से संबंधित मामलों में. आगे कहा गया है कि कोर्ट जिस गतिविधि पर अवमानना की कार्यवाही कर रहा है, अगर वो जानबूझकर नहीं की गई है तो अवमानना की कार्यवाही नहीं होनी चाहिए.

यही नहीं, SOP में सुझाव दिया गया है कि अवमानना की कार्यवाही के नतीजे को समीक्षा होने तक निचली अदालत के स्तर पर स्थगित रखना चाहिए. ये भी कहा गया है कि जजों को अपने आदेशों से संबंधित अवमानना की कार्यवाही में नहीं बैठना चाहिए.

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