BSP सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद से नेशनल को-ऑर्डिनेटर समेत सारे पद छीन लिए (Mayawati Akash Anand). साथ ही ये भी साफ कर दिया कि उनके जीते जी उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा. उन्होंने कहा कि उनके लिए पार्टी और मूवमेंट पहले है. भाई-बहन और उनके बच्चे बाद में. पूर्व CM मायावती के इस बयान के बाद ये चर्चा शुरू हो गई कि क्या उनका ये फैसला ‘परिवारवाद’ पर चोट है या कोई दूसरी वजह है? खैर ये बहस राजनीतिक विश्लेषकों के हवाले छोड़ देते हैं. हम बात करेंगें मायावती और उनके परिवार के बीच उन खट्टे-मीठे रिश्तों की. जिसकी छाप उनके दिलों-दिमाग पर हमेशा के लिए छूट गई.
आकाश आनंद तो अब आए हैं, अपने मां-बाप से भी भिड़ चुकी हैं BSP चीफ मायावती
BSP सुप्रीमो Mayawati ने अपने भतीजे Akash Anand से नेशनल को-ऑर्डिनेटर समेत सारे पद छीन लिए. साथ ही ये भी साफ कर दिया कि उनके जीते जी उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा. मगर ये पहला मौका नहीं है, जब मायावती की उनके परिवार के बीच तकरार हुई हो.

एक किस्सा: जब बेटे की चाह में पिता करना चाहते थे दूसरी शादी
एक वक्त ऐसा था जब चार बार की मुख्यमंत्री रही मायावती को अपने परिवार में ही भेदभाव का सामना करना पड़ा था. उनकी जीवनी ‘बहन जी’ में लेखक अजय बोस लिखते हैं,
“मायावती के पिता प्रभुदास अपने माता- पिता की इकलौती संतान थे. जब लगातार उनकी तीन बेटियां हो गई तो वे दूसरी शादी करने के लिए तैयार हो गए. इस उम्मीद में कि शायद दूसरी पत्नी से उन्हें लड़का हो. लेकिन मायावती के दादा मंगलसेन ने ये शादी नहीं होने दी. इसके बाद घर में बेटा हुआ तो प्रभुदास को अपनी गलती का अहसास हुआ.”

पिता की दूसरी शादी तो नहीं हुई. लेकिन पिता के पुत्र मोह के चलते मायावती को बेटी होने की वजह से भेदभाव का दंश झेलना पड़ा. बचपन से ही परिवार में “बेटा-बेटा” का शोर सुनते हुए बड़ी हुईं मायावती के मन पर पीड़ा की लकीर हमेशा के लिए उभर आई. अजय बोस ने मायावती को एक स्टेटमेंट को शब्दश: अपनी किताब में क्वोट किया है. वे लिखते हैं,
'मेरे पिता जी ने मेरे भाइयों पर तो पैसा लगाकर अच्छा पढ़ाने-लिखाने पर खूब ध्यान दिया. लेकिन इसके विपरीत लड़की होने की वजह से मुझे सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा गया. फिर भी मैं अपनी मेहनत और लगन के आधार पर आगे बढ़ती रही और पढ़ाई में भाइयों के मुकाबले में अच्छा प्रदर्शन करती रही.'
खैर, वक्त का पहिया घूमा और ऐसा घूमा कि मायावती का नाम देश की ताकतवर महिलाओं में गिना जाने लगा. वे उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं. इसी दौरान एक दिन उनसे मिलने के लिए उनके पिता प्रभुदास लखनऊ आए. उन्हें उम्मीद थी कि बिटिया अब CM बन गई है सो उन्होंने अपने क्षेत्र बादलपुर के विकास के लिए कुछ खास योजनाओं का आग्रह किया. अजय बोस किताब में लिखते हैं कि मायावती ने इस पर तंज कसते हुए कहा,
‘आपका वंश तो आपके बेटे चलाने वाले हैं. उन्हें अपने गांव बादलपुर ले जाओ और उन्हीं से गांव की तरक्की करवा लो. सड़कें बनवा लो, बस चलवा लो. स्कूल खुलवा लो, अस्पताल बनवा लो.’
इसके बाद प्रभुदास को अपनी गलती का अहसास हुआ. लेकिन मायावती और उनके पिता के बीच की ये खाईं कभी नहीं भर पाई.'
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मायावती पर लिखी गई किताब ‘माई लाइफ ऑफ स्ट्रगल एंड द पाथ ऑफ द बहुजन मूवमेंट’ में इस किस्से का जिक्र किया गया है. इस किताब में मायावती ने अपने घर इंद्रपुरी के बगल की एक घटना का जिक्र करते हुए बताती हैं,
‘हमारे पड़ोस में घनश्याम सिंह बिरला रहते थे. 10 साल बीतने के बाद भी उनकी पत्नी को कोई बच्चा नहीं हुआ. आसपास की महिलाएं रूढ़िवादी सोच के कारण घनश्याम की पत्नी को किसी बीमारी से ग्रसित मानकर उनके साथ नहीं बैठती थी.’

मायावती आगे बताती हैं,
“एक बार घनश्याम की पत्नी गर्भवती हुई. जिस दिन बच्चा होना था उस दिन घनश्याम घर पर नहीं थे और मैं इत्तेफाक से उस दिन घर पर थी. प्रसव पीड़ा से वह परेशान हो गई. आसपास की कोई भी महिला उनके पास नहीं गई. मैं वहां जाने के लिए उठी तो मेरी मां ने रोका और कहा, 'अभी तो तेरी शादी भी नहीं हुई है, अगर वहां गई तो तुझे भी उसकी बीमारी लग जाएगी.' मैने उनकी बात नहीं सुनी और घनश्याम की पत्नी के पास पहुंच गई.”
मायावती ने तुरंत एक ऑटो बुलाया और महिला को उसमें बैठाकर दिल्ली में करोलबाग इलाके के कपूर अस्पताल ले गईं. कुछ ही देर बाद महिला ने एक बेटे को जन्म दिया. इधर, घनश्याम भी भागकर अस्पताल पहुंच गए. डॉक्टर ने बच्चे को उन्हें थमाने के लिए बढ़ाया तो वह बोले,
" इसे पहले मायावती को दीजिए. वह नहीं होती तो आज मेरी पत्नी और बच्चा जिंदा नहीं होते."
मायावती के जीवन में ऐसे ही तमाम किस्से भरे पड़े हैं. जब उन्होंने अपने धैर्य और हिम्मत का परिचय दिया.
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