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ज़करबर्ग ने अपनी बहन रैंडी को बधाई दी, हिंदी, उर्दू, नेपाली जानने वाले घिनौनी हरकत करने लगे

विराट + अनुष्का = विरुष्का, रणबीर + दीपिका = ?

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फोटो - thelallantop

विराट और अनुष्का की शादी के बाद अगर कपल को 'विरुष्का' कहा जाता है तो रणबीर और दीपिका की शादी के बाद उस कपल को क्या कहा जाना चाहिए?


ज़रा लॉजिक लगाइए? ध्यान से एनोलॉजी सेट कीजिए... अगर आपने कहा 'रणपिका' तो आप न केवल लॉजिकली यानी तार्किक रूप से सही हैं, बल्कि आपके दिमाग में अक्ल के साथ-साथ आपके हृदय में संवेदनशीलता भी भरपूर मात्रा में है. अपने को शाबाशी दीजिए, क्यूंकि हर कोई आपके बराबर संवेदनशील नहीं. और इसी असंवेदनशीलता का परिचय हममें से कुछ लोगों ने फिर से दिया है. हुआ क्या, चलिए वो बताते हैं- मार्क ज़करबर्ग, वही फेसबुक वाले, उनकी बहन ने दो म्यूज़िक अवार्ड जीते थे. बहन का नाम रैंडी ज़करबर्ग. तो इसी जीत के लिए मार्क ज़करबर्ग ने उनको (अपनी बहन को) फेसबुक पर बधाई दी-
अब आगे बढ़ने से पहले मैं कहता होता कि 'नाम में क्या रखा है'. लेकिन इस,  'नाम में क्या रखा है' वाले, कोट के नीचे भी इसके लेखक का नाम (शेक्सपियर) लिखा होता है. तो नाम बड़ी चीज़ है, उसे तोड़-मरोड़ के पेश करने से क्या ही फायदा होगा. हां नुकसान बेशक होगा, आपका या मेरा नहीं तो उसका जिसका नाम है. और अबकी तो नाम को तोड़-मरोड़ के लोग अपनी क्रिएटिविटी भी सिद्ध नहीं कर पा रहे थे. सिद्ध कर पा रहे थे तो अपनी मानसिकता. अपनी सोच. आप समझदार हैं, लोगों के कमेंट पढ़कर अंदाज़ा लगाइए, किस तरह के अर्थ का अनर्थ निकाल रहे हैं लोग. किसी के एवज़ में ठहाके लगा रहे हैं- Verma - 1  

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Never

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Randi - 1 # ये कह रहे हैं कि हर कोई भारतीय इसे गलत पढ़ेगा. क्या वाकई हर भारतीय की ज़िम्मेवारी इन्हें लेनी थी? आपकी, मेरी भी? - Facebook - 2 # और भारतीयों से पाकिस्तान वाले कैसे पीछे रह सकते थे- Pakistan Pakistan - 1 # पीछे-पीछे बांग्लादेशी भी चले आए- Bangla # सार्क देशों की ये एकता, किसी और मुद्दे पर नहीं दिखती. लेकिन बात अभद्रता की थी तो देखिए नेपाल भी आ गया- Nepal # जैसा कि हर भीड़ में पाए जाते हैं यहां भी कुछ लोग समझदार निकले हैं- Saving # अब इनको देखें. इनकी बाकी अंग्रेज़ी तो कमाल की है लेकिन इनको Randi तीन बार ज़रूर बोलना था- 3 Times मुझे एक चुटकुला याद आता है जिसमें 'पाद' का अर्थ पैर और 'दस्त' का अर्थ हाथ था. इसलिए अब थोड़ी फिलॉसफी की बात. फिलॉसफी की एक शाखा है- हर्म्युनिटिक्स. इसमें शब्दों और उसकी व्याख्या के ऊपर ध्यान दिया जाता है. और अंत में बड़े-बड़े फिलॉसफर इसी बात पर एकमत हैं कि, 'शब्द, शब्दों के बाहर की कोई बात नहीं कह सकते.' मतलब कि शब्द मात्र एक टूल हैं, उनपर तूल देकर, किसी को 5 बार विश्वेश्वरैया कहने पर विश्वेश मत कीजिए. आई मीन विवश मत कीजिए. और हास्य, व्यंग, पन, क्रिएटिविटी सब ठीक है. लेकिन किसी के एवज़ में नहीं. वैसे निजी तौर पर मुझे 'उस विशेष शब्द' का गाली होना या गलत होना भी गलत लगता है. किसी की मजबूरी, या फिर चॉइस ही सही, गाली नहीं हो सकती. जीने का एक ढंग, जीवन के प्रति थोड़ा अलग नज़रिया गाली नहीं हो सकता, हां शायद कभी-कभी डेयरिंग ज़रूर कहा जा सकता है, एडवेंचरस.
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