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'ईमानदारी' पर रिसर्च कर रही थी प्रोफेसर, रिसर्च में ही ऐसी 'बेईमानी' कर दी कि नौकरी चली गई

प्रोफेसर ने ‘नैतिक व्यवहार’ और ‘ईमानदारी’ जैसे विषयों पर कई लेख और किताबें लिखी हैं. उन पर आरोप लगे हैं कि उन्होंने अपने रिसर्च में दिए आंकड़ों में फर्जीवाड़ा किया और गलत तरीके से पेश किया. क्या है ये पूरा मामला?

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प्रोफेसर को नौकरी से निकाल दिया गया है. (फाइल फोटो: एजेंसी)

'ईमानदारी' पर रिसर्च करने वाली हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) की एक प्रोफेसर को नौकरी से निकाल दिया गया है. उन पर आरोप लगे थे कि उन्होंने अपने रिसर्च में आंकड़ों को गलत तरीके से पेश किया था. लगभग 80 साल की अवधि में ये पहला मौका है जब हार्वर्ड ने अपने किसी स्थायी प्रोफेसर को बर्खास्त किया है.

इस महिला प्रोफेसर का नाम फ्रांसेस्का जीनो है. उन्होंने ‘नैतिक व्यवहार’ और ‘ईमानदारी’ जैसे विषयों पर कई लेख और किताबें लिखी हैं. हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में वो बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की प्रोफेसर थीं. उनके नाम से कई शोध छपे हैं. उन्होंने अपने रिसर्च के जरिए बताया कि छोटे-छोटे बदलावों से इंसानों के व्यवहार प्रभावित होते हैं. उदाहरण के तौर पर, वो एक ऐसे शोध की को-राइटर थीं जिसमें बताया गया था, ‘आज क्या खाना है? ये तय करने से पहले 10 तक की गिनती गिनने से इंसान हेल्दी खाना चुन सकता है.’ 

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 से 2023 के बीच फ्रांसेस्का जीनो पर आरोप लगे कि उन्होंने अपने एकेडमिक पेपर्स में आंकड़ों को गलत तरीके से पेश किया है. ये आरोप कुछ प्रोफेसर्स ने ‘डेटा कोलाडा’ नाम के ब्लॉग साइट के जरिए लगाए थे. जीनो ने इन आरोपों को खारिज कर दिया था. लेकिन हार्वर्ड ने 2023 में उनको छुट्टी पर भेज दिया था.

जिस रिसर्च पेपर को लेकर कार्रवाई की गई है, वो 2012 में छपी थी. इस पेपर के लिए एक प्रयोग किया गया था. इसमें प्रतिभागियों को टैक्स और इंश्योरेंस संबंधी फॉर्म्स भरने को कहा गया. इसी में एक पेज था जिस पर ये घोषणा करनी थी कि फॉर्म भरने वाले ने जो जानकारी दी है, वो सब सच है (सत्यनिष्ठा की घोषणा). 

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इस रिसर्च के निष्कर्ष में लिखा गया, ‘पेज के ऊपर ही जिनसे सत्यनिष्ठा की घोषणा के लिए साइन करवाए गए, उन्होंने अपनी जानकारी ज्यादा ईमानदारी के साथ भरी. जिनसे पेज के नीचे साइन करवाए गए, उन्होंने कम ईमानदारी दिखाई.’

आरोप लगे कि इस रिसर्च के परिणाम गलत थे. इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए उन्होंने आंकड़ों में गड़बड़ी की.

विश्वविद्यालय के प्रवक्ता ने पुष्टि की है कि 27 मई को महिला प्रोफेसर का ‘कार्यकाल’ समाप्त कर दिया गया. यानी कि उनकी नौकरी समाप्त हो गई. 1940 के दशक में ‘अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी प्रोफेसर्स’ ने ये 'कार्यकाल' वाली व्यवस्था बनाई थी. इसके तहत एक अवधि तक काम करने के बाद प्रोफेसर्स को नौकरी की सुरक्षा मिलती है.

हार्वर्ड के स्टूडेंट न्यूजपेपर ‘हार्वर्ड क्रिमसन’ ने लिखा है कि 1940 के बाद से विश्वविद्यालय में किसी प्रोफेसर का ‘कार्यकाल’ खत्म नहीं किया गया था.

नौकरी से निकाले जाने के बाद प्रोफेसर ने हार्वर्ड और 'डेटा कोलाडा' के खिलाफ 25 मिलियन डॉलर (214 करोड़ रुपये से ज्यादा) का मुकदमा दायर किया है. उन्होंने विश्वविद्यालय पर मानहानि और अनुचित व्यवहार का आरोप लगाया है.

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