The Lallantop

मनोज बाजपेयी ने बताया कि जिनका खानदान फिल्म इंडस्ट्री से न हो उनको क्या-क्या सहना पड़ता है

अपने इस इंटरव्यू में मनोज ने जो कहा है उसे संजीदगी से पढ़ा जाना चाहिए.

Advertisement
post-main-image
मनोज बाजपेयी.
1994 में फिल्म 'द्रोहकाल' आई थी. मनोज बाजपेयी ने इस फिल्म से बॉलीवुड में डेब्यू किया था. इसके बाद उन्होंने 'सत्या' (1998), 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' (2012), 'अलीगढ़' (2016 ) जैसी फिल्में दीं. पिछले 25 सालों से हिंदी सिनेमा में एक्टिव मनोज सभी तरह की फिल्मों में नजर आते हैं. हाल ही में उन्होंने न्यूज एजेंसी आईएएनएस को एक इंटरव्यू दिया. यहां उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में बाहरी लोगों के स्ट्रगल और बॉलीवुड में ग्रुपिज्म पर बात की.
मनोज ने कहा,
"बाहरी लोगों के लिए फिल्म इंडस्ट्री असंभव जगह है. और अगर आप एक लड़की हैं और बाहर से आकर इंडस्ट्री में जगह बनाना चाहती हैं, तो ये काम ज्यादा मुश्किल हो जाता है. क्योंकि यहां कई गैंग्स और ग्रुप्स हैं, जो उम्मीद करते हैं कि आप हमेशा उनकी गुड बुक्स में रहें. उनके लिए वफादार बने रहें. फिर चाहे वो आपको काम दें या न दें. अगर आप ऐसे इंसान हैं, जो हार्ड वर्क और टेलेंट पर यकीन करते हैं और लोगों की पसंद-नापसंद, अच्छाई-बुराई के सामने सरेंडर नहीं करते, तो आपका स्ट्रगल और बढ़ जाता है."
1998 में रिलीज सत्या मनोज बाजपेयी की पहली हिट फिल्म थी. फिल्म में उन्होंने भीकू म्हात्रे नाम के गैंगस्टर का रोल किया था.
1998 में रिलीज सत्या मनोज बाजपेयी की पहली हिट फिल्म थी. फिल्म में उन्होंने भीकू म्हात्रे नाम के गैंगस्टर का रोल किया था.

मनोज बिहार के पश्चिमी चंपारण गांव से मुंबई पहुंचे थे. करियर की शुरुआत में उन्होंने छोटे-मोटे रोल किए. अपने स्ट्रगल के दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा,
"जब मैंने फिल्मों में एंट्री की थी, तब मुझे बहुत दिक्कतें हुईं. क्योंकि तब ट्रेडिशनल, कमर्शियल और फॉर्मूला फिल्में बनाने पर ज़ोर था. यहां आना, सर्वाइव करना और थोड़ा-बहुत नाम कमाना भी किसी चमत्कार से कम नहीं था. इसीलिए मैं कहता हूं कि ये इंपॉसिबल इंडस्ट्री है. मैं थोड़ा ज़िद्दी था. बचपन से ही. 'सत्या' के हिट होने के बाद मैं कुछ बेहतर करना चाहता था. कहीं न कहीं मुझे महसूस होने लगा था कि मैं जिस तरह का काम करना चाहता हूं, उसे करने का ये अच्छा मौका है और मैं पूरी शिद्दत से लगा रहा. उस दौरान मुझे जो कमर्शियल और बड़े बजट की फिल्में ऑफर हो रही थीं, उनको न कहने के लिए बहुत सब्र और ज़िद की जरूरत थी. मैं आसानी से पैसा, नाम और फेम कमा सकता था, लेकिन मैंने दूसरा रास्ता चुना. मैं जो करना चाहता था, वो करने का."
मनोज कहते हैं कि इससे न केवल उनका बल्कि कई और एक्टर्स का भला हुआ. क्योंकि जिन फिल्मों को उन्होंने न कहा, वो दूसरों को ऑफर हुईं. उनके मुताबिक अब वो एक्टर्स सुपरस्टार हैं और बेहतरीन जिंदगी जी रहे हैं.
 'मुझे यकीन है कि मैंने उस फिल्म जॉनर की वैल्यू बढ़ाने में थोड़ा-बहुत ही सही लेकिन योगदान दिया ज़रूर है. ये अब उन एक्टर्स के लिए फायदेमंद है, जो टैलेंटेड हैं और कुछ अलग करना चाहते हैं."
इस साल मनोज बाजपेयी को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है. एक और इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि वह किसी भी फिल्म जॉनर को छोटा नहीं मानते है. क्योंकि सभी तरह की फिल्मों में एक्टिंग की जरूरत होती है. वह कहते हैं कि जिस तरह की फिल्में करने वह मुंबई आए थे, वैसे रोल वह 'पिंजर', 'अलीगढ़' और 'गली गुलियां' जैसी फिल्मों में करते हैं. जो उन्हें खुशी देता है.


देखें वीडियो- राम गोपाल वर्मा से गाली खाने के बाद अमिताभ बच्चन का रिएक्शन बेस्ट था

Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement