जिस आंदोलन की लहर पर सवार होकर ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में वामपंथी शासन को उखाड़कर सत्ता हासिल की थी, अब उन्होंने उससे पल्ला झाड़ लिया है. राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि टाटा मोटर्स के नैनो प्लांट को राज्य से भगाने में उनका कोई हाथ नहीं था, उन्होंने तो बस किसानों से ज़बरदस्ती छीनी गई उनकी ज़मीनें वापिस दिलवाने के लिए आंदोलन किया था.
टाटा को बंगाल से किसने भगाया?
ममता ने कहा - "हमने नहीं भगाया", लेकिन उनकी वेबसाइट पर क्या लिखा मिला?

ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल से नैनो कार प्लांट हटाने की पूरी तोहमत मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPI-M) पर लगा दी है. बुधवार, 19 अक्टूबर को सिलिगुड़ी के एक कार्यक्रम में ममता बनर्जी ये जताती दिखीं कि सिंगूर के लोगों को उनकी जमीनें लौटाने के अलावा उन्होंने किया ही क्या है! TMC प्रमुख ने कहा कि 2006 में बुद्धदेब भट्टाचार्य के नेतृत्व वाली वामपंथी सरकार ने सिंगूर के लोगों की ज़बरदस्ती उनकी ज़मीनें ले ली थीं ताकि टाटा मोटर्स की नैनो फैक्ट्री लगाई जा सके.
मैंने क्या किया, कुछ भी तो नहीं!इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक ममता बनर्जी ने कहा,
"कुछ लोग हैं जो झूठी अफवाहें फैला रहे हैं कि मैंने टाटा को बंगाल से निकाल दिया. मैंने उन्हें मजबूर नहीं किया, बल्कि CPI(M) की वजह से उन्हें जाना पड़ा. आपने (मतलब CPI-M) परियोजना के लिए जबरन लोगों से उनकी जमीनें ले लीं, हमने उन्हें वापस कर दीं. हमने कई परियोजनाएं चलाई हैं, लेकिन कभी जबरदस्ती किसी की जमीन नहीं ली. जमीन पर जबरन कब्जा क्यों हो? यहां जमीन की कोई कमी नहीं है."
विपक्षी दलों ने TMC प्रमुख के दावे को "बहुत बड़ा झूठ" करार दिया है. CPI(M) का कहना है कि सिंगूर स्थित टाटा कंपनी की फैक्ट्री वाली जगह के पास नेशनल हाईवे पर ममता बनर्जी के धरने के चलते ही टाटा कंपनी को अपनी परियोजना बंगाल से कहीं और शिफ्ट करनी पड़ी थी. CPI(M) के मुताबिक ऐसा ना होता तो बंगाल में हजारों नौकरियां पैदा हो सकती थीं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पार्टी की केंद्रीय समिति के नेता सुजान चक्रवर्ती ने ममता बनर्जी पर तंज कसते हुए कहा कि उन्हें झूठ बोलने में “डॉक्टरेट की उपाधि” दी जानी चाहिए. सुजान ने कहा,
"हां, सिंगूर में धरना देने ममता बनर्जी नहीं बुद्धदेव भट्टाचार्य जी बैठे थे. ममता बनर्जी के शासन में बंगाल में विकास की ऐसी सुनामी आ रही है कि यहां के लोग काम के लिए दूसरे राज्यों में जा रहे हैं. झूठ बोलने के बजाय उन्हें शर्म से अपना सिर झुका लेना चाहिए कि राज्य में नौकरियां नहीं हैं."
बीजेपी ने भी ममता के बयान को लेकर उन पर हमला बोला. पार्टी ने एक बयान जारी कर कहा कि टाटा के सिंगूर से जाने के फैसले की वजह से सिंगूर के लाखों लोग नौकरियों से वंचित हो गए. बयान में हुगली से बीजेपी की सांसद लॉकेट चटर्जी के हवाले से लिखा है,
सिंगूर की लड़ाई से सत्ता तक पहुंचीं ममता बनर्जी"हर कोई जानता है कि ममता बनर्जी के उग्र आंदोलन ने टाटा मोटर्स को परियोजना खत्म करने पर मजबूर किया था. इसने लाखों शिक्षित और कुशल युवाओं को नौकरियों से वंचित कर दिया और राज्य के बाहर जाने पर मजबूर किया."
पश्चिम बंगाल के हुगली जिले का सिंगूर शहर ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस (TMC) के लिए राजनीतिक रूप से बेहद खास है. यहां नैनो कार के निर्माण के लिए प्लांट लगाने को लेकर टाटा मोटर्स और TMC के बीच हुए बवाल को ममता बनर्जी के राजनीतिक उत्थान की बड़ी वजहों में से एक माना जाता है. टाटा मोटर्स को सिंगूर से जाने के लिए मजबूर करके ममता बनर्जी ने बंगाल के किसानों के बीच अपनी राजनीतिक छवि इतनी मजबूत कर ली कि आज बंगाल का कोई और नेता उनकी टक्कर में नजर नहीं आता. अब भले TMC प्रमुख बंगाल से टाटा मोटर्स की विदाई के लिए CPI(M) को जिम्मेदार ठहरा रही हैं, लेकिन अक्टूबर 2008 में सिंगूर में बनी कार फैक्ट्री को कहीं और शिफ्ट करने की घोषणा करते हुए खुद रतन टाटा ने कहा था कि उन्होंने ये फैसला इस प्रोजेक्ट के खिलाफ चल रहे आंदोलन की वजह से लिया है.
ये सब जानते हैं कि उस आंदोलन में ममता बनर्जी और उनकी पार्टी की बहुत बड़ी भूमिका थी. यहां तक कि TMC की आधिकारिक वेबसाइट पर सिंगूर आंदोलन पर एक लंबा आर्टिकल उपलब्ध है. 26 सितंबर, 2011 से वेबसाइट पर मौजूद इस आर्टिकल में बताया गया है कि नैनो प्लांट के चलते सिंगूर के किसानों और बाकी लोगों से ली गई जमीनें उनको वापस दिलाने के लिए ममता बनर्जी और उनकी पार्टी ने क्या-क्या किया.
“Singur Movement:The full story – The struggle of Ma, Mati, Manush” टाइटल वाले इस आर्टिकल (आर्काइव लिंक) में TMC ने लिखा है,
# टाटा मोटर्स की फैक्ट्री के लिए सिंगूर के लोगों से जबरदस्ती जमीनें हासिल की गई थीं, जिसके खिलाफ ममता बनर्जी ने आंदोलन छेड़ा था. मई 2006 में CPI(M) के नेतृत्व वाली तत्कालीन बंगाल सरकार ने करीब 1000 एकड़ जमीन टाटा मोटर्स की स्मॉल कार फैक्ट्री के लिए अधिग्रहित करने का फैसला किया था. TMC लिखती है कि इस फैसले की वजह से ना सिर्फ इन लोगों की जमीनें चली गईं, बल्कि उन पर आजीविका का संकट भी खड़ा हो गया था.
# TMC के मुताबिक 18 मई, 2006 को रतन टाटा ने पहली बार सिंगूर प्रोजेक्ट की जानकारी सार्वजनिक की थी. इसके तुरंत बाद सिंगूर के लोगों ने प्लांट के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया था. 25 मई, 2006 को जब टाटा मोटर्स के प्रतिनिधि जमीन देखने सिंगूर पहुंचे तो स्थानीय लोगों ने भूमि अधिग्रहण को लेकर उनका जमकर विरोध किया. उन्होंने जमीन के बदले नौकरी देने की मांग के साथ अपना आंदोलन जारी रखने की चेतावनी दी.
# 17 जुलाई, 2006 से फैक्ट्री के लिए जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हुई. इसके खिलाफ सिंगूर से TMC के तत्कालीन विधायक रबींद्रनाथ भट्टाचार्य के नेतृत्व में किसानों ने राज्य सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. इन लोगों का आरोप था कि बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार सिंगूर के लोगों से उनकी जमीनें छीनना चाहती है. आंदोलन के साथ और लोग जुड़ते गए और 24 जुलाई, 2006 को दुर्गापुर एक्सप्रेसवे पर स्थानीय निवासियों समेत हजारों लोगों ने प्रदर्शन किया. 22 अगस्त को फिर हजारों आंदोलनकारियों ने स्थानीय ब्लॉक डेवलपमेंट अधिकारी के कार्यालय का घेराव किया.
# सितंबर 2006 के अंत तक परियोजना को लेकर स्थानीय ग्रामीणों और सरकारी विभागों के बीच का संघर्ष हिंसक रूप ले लेता है. भूमि अधिग्रहण के खिलाफ किसानों और अन्य आंदोलनकारियों के साथ ममता बनर्जी और अन्य TMC नेता धरने पर बैठते हैं. लेकिन देर रात रैपिड ऐक्शन फोर्स (RAF) और पुलिस की टीमें प्रदर्शन कर रहे लोगों पर हमला कर देती हैं. आरोप था कि राज्य सरकार के आदेश पर उन्हें धरनास्थल से हटाने के लिए बल प्रयोग किया गया जिसमें कई लोग घायल हुए. पुलिस ने 78 लोगों को गिरफ्तार किया जिनमें ममता बनर्जी और उनके विधायक रबींद्रनाथ भट्टाचार्य भी शामिल थे.
# इसके बाद सिंगूर आंदोलन में TMC की भूमिका बढ़ती चली गई. 9 अक्टूबर 2006 को ममता बनर्जी ने सिंगूर के भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आम हड़ताल का ऐलान कर दिया. वो मांग करती हैं कि टाटा अपनी परियोजना को सिंगूर से कहीं और ले जाए. इस पर उन्हें कांग्रेस समेत कई अन्य राजनीतिक दलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों का समर्थन मिलता है. इसी बीच इस संघर्ष के चलते पहली मौत की खबर सामने आती है. 25 सितंबर को हुई पुलिसिया कार्रवाई में घायल हुए एक प्रदर्शनकारी राजकुमार इलाज के दौरान दम तोड़ देते हैं. इसके बाद TMC बंगाल की सभी सड़कों और रेलवे लाइनों पर विरोध प्रदर्शन करने की घोषणा करती है.
# बवाल के बीच 5 नवंबर, 2006 को ममता बनर्जी टाटा मोटर्स से कहती हैं कि अपना कार प्रोजेक्ट सिंगूर से कहीं और ले जाओ. साथ ही बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार को अल्टीमेटम देती हैं कि वो 12 दिन के अंदर ये घोषणा करे कि खेती की जमीन पर इंडस्ट्री नहीं लगाई जाएगी. हालात बिगड़ते देख CPI(M) सरकार भारी सुरक्षा बल सिंगूर में तैनात करवा देती है. यहां तक कि इलाके की कई जगहों पर पुलिस और RAF के कैंप लगे दिखाई देते हैं. इसके खिलाफ 19 नवंबर को किसान एक रैली निकालते हैं और पुलिस पर उन्हें "आतंकित" करने का आरोप लगाते हैं.
# 25 नवंबर को ममता बनर्जी ऐलान करती हैं कि वो सिंगूर में एक आंदोलन का नेतृत्व करते हुए वहां आलू की खेती करेंगी. उन्हें रोकने के लिए राज्य सरकार बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात करती है. 30 नवंबर को जब ममता आंदोलन के लिए निकल रही थीं तो पुलिस उन्हें वहां जाने से रोक लेती है. इसके चार दिन बाद TMC प्रमुख कोलकाता में ही भूख हड़ताल पर बैठ जाती हैं. वो घोषणा करती हैं कि 6 दिसंबर को उनकी पार्टी पूरे बंगाल में सड़कें ब्लॉक करेगी और 7 दिसंबर को सिंगूर के लिए कूच होगा.
# ममता बनर्जी 25 दिनों तक भूख हड़ताल पर बैठती हैं. इस दौरान बहुत बड़ी संख्या में लोग उनके आंदोलन में शामिल हुए जिनमें बंगाल की कई चर्चित हस्तियां शामिल थीं. उनके आंदोलन से CPI-M सरकार की मुश्किलें बढ़ती चली गईं. उसकी तमाम कोशिशों के बाद भी ममता बनर्जी नहीं मानीं. भूख हड़ताल के चलते उनकी हालत भी बिगड़ रही थी. ऐसे में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पत्र लिखकर TMC प्रमुख से भूख हड़ताल खत्म करने की अपील की. तब जाकर दिसंबर 2006 के अंत में TMC प्रमुख ने हड़ताल खत्म की.
# अब सीधा जून 2007 पर आते हैं. बंगाल में वामपंथी राजनीति के दिग्गज और राज्य के पूर्व सीएम ज्योति बसु सिंगूर आंदोलन का समाधान निकालने के लिए ममता बनर्जी को न्योता देते हैं. हालांकि ये कोशिश भी नाकाम साबित होती है. ममता बनर्जी और उनकी TMC सिंगूर में नैनो प्लांट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी रखते हैं. इस दौरान 10 फरवरी, 2008 को एक प्रदर्शनकारी की भूख हड़ताल के चलते मौत हो जाती है. अप्रैल-मई के दौरान राज्य में पंचायत चुनाव होते हैं जिसके परिणाम TMC के पक्ष में जाते हैं. पार्टी लिखती है कि सिंगूर आंदोलन के चलते लोगों के बीच TMC के प्रति विश्वास बढ़ा था.
# लेकिन पंचायत चुनाव के बाद ममता बनर्जी के रुख में कुछ बदलाव आता है. 28 मई 2008 को वो कहती हैं कि अगर राज्य सरकार उन किसानों की अधिग्रहित जमीन लौटा देती है जिन्हें जमीन के बदले मुआवजा नहीं चाहिए, तो उन्हें सिंगूर में टाटा मोटर्स के प्रोजेक्ट से कोई आपत्ति नहीं होगी. तब TMC प्रमुख ने कहा था,
"मैंने पहले भी कहा है और फिर कह रही हूं कि हम इंडस्ट्री के खिलाफ नहीं हैं. ये हमारे लिए बहुत जरूरी है. सिंगूर में कुछ लोगों ने शायद अपनी जमीन बेच दी होगी, क्योंकि उन्हें पैसे की जरूरत थी. मुझे इस बारे में कुछ नहीं कहना है. लेकिन मैं चाहती हूं कि सरकार दूसरे किसानों को उनकी जमीन वापस कर दे. अगर ये होता है तो फैक्ट्री लगाई जा सकती हैं."
इसी मांग के साथ 14 जून को एक रैली में ममता बनर्जी कहती हैं कि सिंगूर के मुद्दे पर टाटा कंपनी के साथ कोई सहयोग नहीं किया जाएगा. वो सरकार को डेडलाइन देती हैं कि अगस्त 2008 तक सिंगूर के किसानों को उनकी जमीनें वापस की जाएं वर्ना सिंगूर में फिर विरोध प्रदर्शन शुरू किया जाएगा.
आखिरकार अक्टूबर 2008 आते-आते टाटा कंपनी हाथ खड़े करते हुए सिंगूर प्रोजेक्ट से पीछे हट जाती है. 3 अक्टूबर को कंपनी अपने नैनो प्रोजेक्ट को बंगाल से बाहर ले जाने का ऐलान कर देती है.
इसके बाद कंपनी को गुजरात से बुलावा आता है. नरेंद्र मोदी का. जो उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे. उन्होंने टाटा को न्योता दिया कि साहब हमारे यहां प्लांट लगाइए, नैनो बनाइए, स्वागत होगा, फुल सपोर्ट मिलेगा.
2008 में ही बंगाल के सिंगूर से निकल कर टाटा ने गुजरात के साणंद में नैनो प्लांट शुरू किया. कुछ ही समय बाद रतन टाटा नैनो कार चलाकर लोगों के सामने आए. लेकिन उनकी लखटकिया मार्केट में चली नहीं. इसके कई फैक्टर्स बताए गए. कार की क्वालिटी का लेवल, सिक्योरिटी के अलावा प्लांट के रीलोकेशन को भी इसकी एक वजह माना जाता है. नतीजा, टाटा कंपनी नैनो बेचने के लिए अपने टारगेट को हासिल नहीं कर पाई. कंपनी की सेल तेजी से गिरी जिससे प्रोजेक्ट को बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ. 2018 आते-आते टाटा ने नैनो का प्रोडक्शन रोक दिया. अब साणंद स्थित कार प्लांट में दूसरी कंपनियों की कारें बनती हैं.
खैर, टाटा की कार तो नहीं चली, लेकिन बंगाल में ममता बनर्जी की राजनीति ऐसी चली कि राज्य की सत्ता में तीन दशकों से काबिज CPI(M) को बाहर का रास्ता दिखा दिया. 2011 के चुनाव में उन्होंने 294 सीटों वाली विधानसभा की 184 सीटों पर जीत हासिल कर बहुमत वाली सरकार बनाई. 20 मई, 2011 को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद ममता सरकार सिंगूर भूमि पुनर्वास एवं विकास विधेयक लेकर आई. उसे पास किया. 20 जून को सीएम ने बिल पर साइन किए. छह दिन बाद यानी 26 जून को सिंगूर के लोगों को जमीन वापस करने से जुड़े फॉर्म दे दिए गए.
तब से अब तक, यानी पिछले 11 सालों से बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी सत्ता में बनी हुई है जिसमें पार्टी के सिंगूर आंदोलन का बहुत बड़ा हाथ है. लेकिन अब ममता बनर्जी कह रही हैं- मैंने क्या किया?
तारीख: कहानी सिंगूर आंदोलन की, जिसने टाटा को बंगाल छोड़ने पर मजबूर किया